पुरी : भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा नौ दिवसीय प्रवास के लिए गुंडिचा मंदिर में पहुंच गई है. तीन चरणों में मनाए जाने वाला रथ यात्रा महोत्सव अब अपने दूसरे चरण पर पहुंच चुका है. इस चरण में त्रिमूर्ति (भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा) गुंडिचा मंदिर की यात्रा पर (अपनी मौसी के यहां) गए हैं. भगवान जगन्नाथ अपने आभूषण, सिंहासन छोड़कर लकड़ी के रथ पर सवार होकर अपने जन्मस्थल गुंडिचा मंदिर पहुंचे हैं. गुंडिचा मंदिर में भगवान सात दिनों तक 'आडप मंडप' में विराजमान रहते हैं.
इस क्रम में शुक्ल पक्ष के चौथे दिन से नौवें दिन तक गुंडिचा मंदिर में भगवान के लिए चावल पकाया जाता है. देवी लक्ष्मी सालभर अपने कर्तव्य को भगवान की सच्ची सहमति के रूप में निभाती हैं और उन्हें महाप्रसाद (पुरी मंदिर में देवताओं को अर्पित किया जाने वाला पवित्र पका हुआ चावल) बनाकर खिलाती हैं. लेकिन साल के सिर्फ इन छह दिनों के दौरान रानी गुंडिचा, जिन्हें भगवान की मां कहा जाता है, उनके लिए खाना पकाती हैं. इस अवधि में पवित्र पके हुए चावल को 'आडप अबढा' कहा जाता है. इस अवधि में भगवान को अपनी मां द्वारा पकाया गया भोजन ग्रहण करने से संतुष्टि प्राप्त होती है.
कहा जाता है कि ब्राह्मणों को यह 'आडप अबढा' प्रदान करने से उनके पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है. भगवान की मौसी के घर पर (गुंडिचा मंदिर) एक विशेष रसोई भी है, जहां 'आडप अबढा' बनाया जाता है. भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के अगले दिन गुंडिचा मंदिर के 'आडप मंडप' में प्रवेश करते हैं. उसके अगले दिन 'आडप अबढा' पकाया जाता है. इसे भगवान के सामने अर्पित करने के बाद भक्तों में वितरित किया जाता है. माना जाता है कि यदि कोई श्री गुंडिचा मंदिर में भगवान को अपने शानदार मंडप पर देखता है और 'आडप अबढा' ग्रहण करता है तो उसे हजारों जन्मों में किए गए पापों से छुटकारा मिल जाता है.