चेन्नई:अपनी हेमलेटियन दुविधा पर काबू पाने के बाद सुपरस्टार रजनीकांत ने आखिरकार राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया है, जिससे राजनीतिक ताकतों के संभावित पुनर्गठन की उम्मीद बढ़ गई है और कुछ तबकों में यह उम्मीद बढ़ गई है कि वह एमजीआर की अद्भुद घटना को दोहराएंगे. वह एमजीआर की तरह एक बड़े स्तर के फिल्मी हीरो हैं, जिसके प्रशंसकों का एक बड़ा वर्ग है. लेकिन, क्या फिल्म मोगुल अपने फिल्मी करिश्मे की बदौलत इस लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे?
एमजीआर ने वर्ष 1972 में जब से अन्नाद्रमुक (एआईएडीएमके) को शुरू करने के लिए द्रमुक का विभाजन किया, तब से फिल्मी सितारों का राजनीति में इस तरह का बड़ा काम करने के सपने देखना असमान्य बात नहीं है. लेकिन, फिल्मों में एमजीआर की बेहद लोकप्रिय जोड़ीदार रहीं दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता ही केवल सफलता का स्वाद पा सकीं. यहां तक कि फिल्म अभिनेता शिवाजी गणेशन ने कांग्रेस का साथ छोड़कर अपनी पार्टी बनाई लेकिन नाकाम रहे. वह एक बहुत बड़ी नाकामी थी.
अब रजनीकांत भी राजनीति में शामिल होने वाले अभिनेताओं की सूची में आ गए हैं. फिल्मों में उनके साथी कमल हासन अपनी पार्टी मक्कल नीधि मय्यम (एमएनएम) बनाकर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं और अब रजनीकांत नए साल की पूर्व संध्या पर अपनी पार्टी की घोषणा करके राजनीति में कदम रखने जा रहे हैं.
रजनीकांत के आगमन के साथ एमजीआर के साथ उनकी तुलना भी होने लगी है, जिससे अन्नाद्रमुक के नेताओं को बहुत चिढ़ हो रही है. अन्नाद्रमुक के मंत्री और पार्टी के पदाधिकारी कभी भी अपनी पार्टी के उस संस्थापक के साथ तुलना नहीं कर सकते हैं, जिन्हें वे भगवान के अवतार के रूप में मानते थे. इस तरह वे उपहास उड़ाते हुए ऐसी धारणाओं को खारिज कर देते हैं. यहां तक कि अन्नाद्रमुक की प्रतिद्वंद्वी पार्टी द्रमुक भी इससे खुश नहीं है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विचारक और 'ठगलाक' के संपादक एस गुरुमूर्ति का दावा है कि रजनीकांत का राजनीतिक में प्रवेश एमजीआर की तरह प्रभाव पैदा करेगा. उनकी राय में अभिनेता की अपील उनके फिल्मी करिश्मे से कहीं अधिक है. रजनीकांत को लोग केवल एक अभिनेता के रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि एक ऐसे इंसान के रूप में देखते हैं जो ईमानदार है, नेक इरादे वाला है और जो जाति से ऊपर है.
उन्होंने कहा कि रजनीकांत को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, जो बदलाव ला सकता है और एक विकल्प दे सकता है. जयललिता और करुणानिधि की अनुपस्थिति में वर्तमान राजनीतिक शून्य को देखते हुए वह जो बदलाव लाएंगे, वह बहुत भारी होगा. वह खालीपन को भरने से अधिक होगा. दो महापुरुषों की तरह वह अपने आप में एक नेता हैं जो पार्टी की सीमाओं से परे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अभिनेता रजनीकांत राष्ट्रवादी ताकतों के लिए आधार होंगे.
रजनीकांत को लेकर विश्लेषकों की अलग-अलग राय
हालांकि, रजनीकांत को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है और कई लोग उनके प्रभाव के बारे में संदेह जता रहे हैं. द्रविड़ राजनीति से जुड़े स्वर्गीय एमएसएस पांडियन जैसे कई विद्वानों के लिए एमजीआर वाली एक अद्भुत घटना थी. एमजीआर केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व नहीं थे, बल्कि एक फिल्म स्टार और राजनीतिज्ञ भी थे, पांडियन अपनी पुस्तक 'द इमेज ट्रैप' में यह लिखते हैं.
लोकनीति के तमिलनाडु समन्वयक पी रामजयम के विचार से रजनीकांत के पास चिरंजीवी से उलट उनके अभियान की जिम्मेदारी लेने वाला कोई भी व्यक्ति नहीं है. चिरंजीवी के साथ कापुस के साथ अभिनेता विजयकांत भी थे, जिन्हें नायडुओं का समर्थन प्राप्त था. रजनीकांत के सफल होने की संभावना कम जताते हुए उनका कहना है कि एमजीआर ने जब पार्टी शुरू की थी तो दक्षिण तमिलनाडु में एक प्रमुख पिछड़ी जाति के थेवरों समुदाय ने उनके समर्थन की घोषणा की थी. फिर उन्होंने पश्चिम में एक अन्य ओबीसी समुदाय गौंडर्स से संबंध बढ़ाया, जो रजनीकांत के मामले में नहीं है.
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हैदराबाद विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाने वाले आर थिरुनावुक्कारसु का कहना है कि फिल्म उद्योग ने एमजीआर को उनकी छवि से अधिक हासिल करने में मदद की, उनका तर्क है कि अभिनेता ने चतुराई से अपने राजनीतिक करियर का उपयोग किया था. एक बड़े नायक एमजीआर द्रमुक का जनता के बीच एक बड़ चेहरा थे. वह पार्टी से रिश्ता तोड़ने से पहले एक विधायक और डीएमके कोषाध्यक्ष चुने गए थे. राजनीति उनके खून में थी. उनसे इस तरह की तुलना गलत और ओछी है. इसके विपरीत, रजनीकांत की न केवल अभी परीक्षा होनी बाकी है, बल्कि राज्य में वह एक गैर-आधुनिक राजनीतिक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने तमिलनाडु की राजनीति के उदारवादी लोकतांत्रिक लोकाचार को नहीं समझा है. वह कहते हैं कि सुपरस्टार न तो सत्ता-विरोधी लोगों को एकजुट करने के लिए एक केंद्र के रूप में है और न ही किसी विकल्प के अगुआ हैं.