कोरोना वायरस महामारी के संकट की पार्श्व भूमिका में चीन और बाकी दुनिया के बीच लम्बे समय से चली आ रही भरोसे की कमी है. इस भरोसे की कमी की प्रमुख वजह है, चीन की महाद्वीपों पर बढ़ती हुई ताकत, पहुंच और प्रभाव तथा उसकी आर्थिक गुलामी द्वारा दुनिया को जीत लेने की महत्वाकांक्षा. चीन के बारे में सामान्य अंतररराष्ट्रीय राय यह है कि उसकी सौम्य, आर्थिक और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं और अंतरराष्ट्रीय दान और सहायता नीति का विश्व की भू-राजनीति और संरक्षण परिस्थिति पर गंभीर परिणाम आ सकता है. खास तौर पर चीन की 'एक बेल्ट एक रोड' पहल और उससे जुड़ा चीन द्वारा कर्ज का जाल बुने जाने को संदेह की निगाह से देखा जाता है.
अमेरिका और भारत सहित ज्यादातर बड़े देश चीन के साथ बड़े घाटे के वाणिज्य सम्बन्ध और उसके द्वारा व्यवस्थित तरीके से बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विश्व की सरकारी संस्थाओं पर निवेश के माध्यम से बढ़ते हुए प्रभाव से चिंतित हैं. विवादित दक्षिण-चीन सागर में चीन की आक्रामकता को उस क्षेत्र में समुद्री परिवहन और विमानन की स्वतंत्रता के लिए खतरा माना जाता है, जिसके माध्यम से अरबों डॉलर का अंतरराष्ट्रीय व्यापार किया जाता है.
जिस तरह से कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया है और चीन जिस प्रकार से इस संकट का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है, उसके चलते चीन की अंतरराष्ट्रीय छवि और प्रतिष्ठा और गिरेगी तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उसके प्रति और अधिक चौकन्ना कर देगा. इस बारे में हम यहां थोड़ा विस्तार से बात रखेंगे.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कुछ क्षेत्रों में साजिश के सिद्धांतों की बात के बीच, विशेष रूप से अमेरिका में कि वायरस चीन में वुहान लैब में बनाया गया था और दुनिया को कमजोर करने के लिए उसे जान बूझ कर फैलाया गया है, एक व्यापक वैश्विक सहमति बनी कि चीन महामारी के बारे में बाकी दुनिया को सतर्क करने में विफल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन की बड़ी हानि हुई और विश्व अर्थव्यवस्था को एक गंभीर झटका लगा.
चीन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के सफलतापूर्वक हेरफेर का भी आरोप लगाया जा रहा है. डब्लूएचओ महानिदेशक टेड्रोस एडहोम गेब्रेयेसस को चीन के समर्थन से मई 2017 में चुना गया था. इसलिए उनपर आरोप है कि उन्होंने कथित रूप से चीन की विफलता को न केवल ढका बल्कि महामारी के प्रसार के बारे में चीन के कथन का समर्थन किया और महामारी को रोकने के चीन के प्रयासों की सराहना की.
इस बीच चीन इस संकट से भी लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है, इस बात ने उसकी पहले से बदनाम छवि को और धूमिल कर दिया. मीडिया की खबरों से पता चलता है कि चीन ने इटली को वही व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण तब बेचे, जब इटली महामारी का केंद्र बन चुका था, जिसको इटली ने चीन को महामारी के शुरुआती दौर में दान दिए थे. यदि इस कथन में सच्चाई है तो यह बहुत ही शर्मनाक बात है. चीन खराब मेडिकल सामग्री बेचने की फिराक में है ताकि मोटा मुनाफा कमाया जा सके. स्पेन द्वारा चीन को खराब पाए गए कोरोना वायरस की शीघ्र जांच करने वाली 50000 किट लौटा दिए जाने की खबर है. इसी तरह नेदरलैंड्स ने भी सुरक्षा मानकों पर नहीं खरा उतरने वाले चीनी सामानों को लेने से इनकार कर दिया है.
लेकिन इससे भी ज्यादा दूरगामी असर वाले डर की बात यह है कि दुनिया के स्टॉक मार्केट में हाल में जो मंदी आई है, उसका फायदा उठा कर चीन आक्रामक रूप से विदेशी कम्पनियों के स्टॉक खरीद कर उनकी चल-अचल संपत्ति पर कब्ज़ा न कर ले. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अमेरिका और यूरोपीय देश पिछले कुछ समय से चीनी कंपनियों को अपनी टेक्नोलॉजी कंपनियां न बिकने देने का प्रयास कर रहे हैं. महामारी फैलने के बाद इटली, स्पेन और जर्मनी जैसे देशों ने घोषणा कर दी कि वे विदेशी निवेश पर, खास कर चीन से, पैनी नजर रखेंगे. पश्चिमी देशों के कुछ समुदायों ने चीन की भूमिका की जांच की मांग उठाई है और अमेरिका सहित अन्य देशों में चीन से खरबों डॉलर के मुआवजे मांगते हुए मुकदमे भी दायर कर दिए गए हैं कि उसने महामारी के असर को कम दिखा कर भारी नुकसान पहुंचाया है. अमेरिका ने महामारी के बीच शायद टाले जाने वाला जो कदम उठाया है, वह यह कि उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन को देय अपनी आर्थिक हिस्सेदारी में कटौती कर दी है.
भारत की प्रतिक्रिया क्या रही है? भारत ने चीन के खिलाफ विश्व पटल पर व्यक्त की जा रही भावनाओं पर किसी भी प्रकार का आधिकारिक बयान नहीं दिया है. भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की भी खुल कर आलोचना नहीं की है बल्कि जी-20 के आभासीय सम्मलेन में भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार और उसे अधिक मजबूत करने की बात रखी.