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Published : Dec 4, 2019, 11:01 PM IST

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कैबिनेट से नागरिकता संशोधन विधेयक की मंजूरी के बाद विरोध-प्रदर्शन तेज

असम में विपक्षी दलों सहित कई संगठनों ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध करते हुए व्यापक प्रदर्शन की चेतावनी दी. वहीं ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के नेताओं जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन किया. कांग्रेस और एआईयूडीएफ जैसे राजनीतिक दलों के अलावा एएएसयू, एजेवाईसीपी, केएमएसएस और एएसएस जैसे संगठनों ने कहा है कि वे विधेयक को वापस लिए जाने तक आंदोलन करेंगे. जानें, विस्तार से...

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कैब पर विरोध-प्रदर्शन तेज

नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) को बुधवार को मंजूरी दे दी है, लेकिन इसके कुछ घंटे बाद ही ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के नेताओं तगड़ा विरोध-प्रदर्शन किया.

नई दिल्ली में विधेयक पर केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए आसू नेताओं ने कैब विधेयक के कागजात जलाए.

इस बीच दिल्ली पुलिस ने किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए असम हाउस और संसद भवन के आसपास के क्षेत्रों में लोगों का जमावड़ा प्रतिबंधित करने के लिए धारा 144 लगा दी.

'मुसलमानों को बाहर करने की साजिश'
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर कम्युनिस्ट नेता और पूर्व सांसद हन्नान मोल्लाह ने कहा कि करोड़ो रुपये और समय असम में एनआरसी के नाम पर बर्बाद किया गया. इन लोगों ने सोचा था कि एनआरसी में सिर्फ मुसलमानों का नाम आएगा, लेकिन देखा कि 13 लाख हिन्दुओं का नाम आ गया. अब ये नागरिकता बिल इसलिए ला रहे हैं कि मुसलमानों को बाहर करने की साजिश की जाए. मोहम्मद बिन तुगलक की तरह काम किया जा रहा है. इन लोगों ने पहले असम में राष्ट्रीय नागरिकता विधेयक लाया, फेल होने पर नागरिकता संशोधन विधेयक ला रहे.

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आसू का जोरदार विरोध
इस मसले पर आसू सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा, 'कैबिनेट का फैसला अलोकतांत्रिक है. कैब ऐतिहासिक असम समझौते के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करता है. हम बिल के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.'

आसू सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने ईटीवी भारत से बातचीत की.

उन्होंने कहा कि असम के लोग कैब को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, जोकि अवैध हिन्दू बांग्लादेशी प्रवासियों को संरक्षण देती है.

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तमाम संगठन करेंगे विधेयक के खिलाफ आंदोलन
कांग्रेस और एआईयूडीएफ जैसे राजनीतिक दलों के अलावा, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू), असम जटियाटाबादी युवा-छात्र परिषद (एजेवाईसीपी), कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) और प्रमुख साहित्यिक संस्था असम साहित्य सभा (एएसएस) जैसे संगठनों ने कहा है कि वे विधेयक को वापस लिए जाने तक आंदोलन करेंगे.

इस विधेयक में धार्मिक अत्याचार के कारण बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों को उपयुक्त दस्तावेज नहीं रहने पर भी भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता अधिनियम,1955 में संशोधन का प्रस्ताव है.

पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासियों को भय है कि इन लोगों के आने से उनकी पहचान और आजीविका को खतरा हो सकता है.

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गृहमंत्री से मिले मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा
इस बीच मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने उम्मीद जाहिर की कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक से जुड़ी पूर्वोत्तर के लोगों की सभी चिंताओं का केंद्र सरकार समाधान करेगी.

संगमा ने कहा कि वह कम से कम चार अवसरों पर गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर उन्हें मूल निवासियों की चिंता के बारे में बता चुके हैं.

उन्होंने कहा कि कैबिनेट द्वारा मंजूर विधेयक के प्रावधानों को अभी देखना बाकी है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि इसमें पूर्वोत्तर और खासतौर से मेघालय के लोगों की चिंताओं का ध्यान रखा गया होगा.

सूत्रों के अनुसार, सरकार अब संसद में पारित कराने के लिए सीएबी लाएगी.

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