कोलकाता : जाने-माने लेखक नीरद सी चौधरी ने एक बार लिखा था, बंगाल के लोग आत्म-विस्मृत व्यक्ति हैं. यह टिप्पणी तब की है जब किसी को भी इंग्लिश चैनल को पार करने वाले पहले भारतीय तैराक के बारे में पूछा जाता है. तब मिहिर सेन का नाम आता है.
1958 में सेन के साथ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के एक अन्य व्यक्ति ब्रजेन दास ने भी चैनल पार कर लिया था, लेकिन शायद ही कभी लोग दास को याद करते हैं. जिस तरह आरती साहा का नाम स्मृति से धुंधला पड़ गया. मिहिर सेन के बमुश्किल एक साल बाद इंग्लिश चैनल पार करने वाली साहा पहली एशियाई महिला तैराक थीं.
आज आरती साहा की जयंती है. गूगल ने इस साल साहा को एक विशेष डूडल के साथ सम्मानित किया है. 29 सितंबर को इस उपलब्धि की वर्षगांठ होगी. 1959 में बंगाल की लंबी दूरी तैराक साहा ने चैनल को पार किया था, लेकिन कई लोग यह नहीं जानते हैं कि आरती भी एक ओलंपियन थी. उसने चैनल पार करने से पहले पांच साल का अंतर अर्जित किया था. बच्चे के रूप में आरती ने पहली बार गंगा में डुबकी लगाई थी.
24 सितंबर 1940 को उत्तरी कोलकाता में जन्मी आरती ने दो साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया. पिता पंचगोपाल साहा को ज्यादातर काम के चलते घर से दूर रहना पड़ता था. चाचा की उंगलियां पकड़े हुए आरती पहली बार गंगा में डुबकी लगाने गई थीं और उसे पानी से प्यार हो गया.
आरती अपने चाचा के संरक्षण में तैराकी का प्रशिक्षण ले रही थीं. इसी दौरान हाटकोला क्लब के बिजेन्द्र नाथ बोस ने पहली बार उन्हें देखा और क्लब में स्वागत किया. हाटकोल क्लब के शिविर में सचिन नाग और जैमिनी दास दो दिग्गज प्रशिक्षक थे. दोनों ने आरती को प्रशिक्षण देना शुरू किया.