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विशेष लेख : दिल्ली में आम आदमी पार्टी का पलड़ा दिख रहा भारी - delhi polls bjp

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार जोरों पर है. राजनीतिक दल दिल्लीवासियोंं के वोट पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. राजनीतिक दल रोज नए वादे कर रहे हैं. दिल्ली चुनावों में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच देखने को मिल रहा है. विशेष लेख में पढ़ें दिल्ली चुनाव में किसका पलड़ा भारी है.....

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Published : Jan 27, 2020, 10:11 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 4:57 AM IST

दिल्ली के मतदाताओं की वर्तमान मनोदशा के आधार पर कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी सत्ता में फिर से लौट रही है. मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा है. कांग्रेस की बात करें, तो उसे अभी 2015 के खराब प्रदर्शन से उबरना बाकी है. तब कांग्रेस को एक सीट भी हासिल नहीं हुई थी. ग्राउंड रिपोर्ट और हाल के कुछ जनमत सर्वेक्षणों ने दावा किया है आप के पक्ष में जमीन तैयार दिखती है. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान आप ने बहुत खराब प्रदर्शन किया था.

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को 57 फीसदी वोट मिले थे. सभी सात सीटों पर पार्टी ने अपना परचम लहराया था. पर ऐसा लगता है कि इस बार जनता ने कुछ और मन बना लिया है. बल्कि आप ये भी कह सकते हैं कि राष्ट्रीय सरकार और स्थानीय सरकार के बीच जनता अंतर समझने लगी है.

अरविंद केजरीवाल

आप अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे क्यों हैं. इसकी एक वजह है उनकी सरकार द्वारा किए गए काम. खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में. उनके कार्यों की स्वीकृति भी हुई है. दूसरी वजह है अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता. भाजपा और कांग्रेस में स्थानीय स्तर पर केजरीवाल की तरह कोई चेहरा नहीं है.

अरविंद केजरीवाल

वैसे, आप ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था. लेकिन जब से पार्टी अस्तित्व में आई है, तब से यह राज्य में सरकार चलाने के लिए दिल्ली के मतदाताओं का एक लोकप्रिय विकल्प जरूर बना गई है. 2013 में दिल्ली में लड़े गए विधानसभा चुनाव में पार्टी को पर्याप्त सीटें नहीं मिली थीं. उसे 28 सीटें मिली थीं. 29.5 फीसदी मत हासिल हुआ था. लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने इतिहास बना डाला. 70 में से 67 सीटें मिली थीं. 54.3 फीसदी वोट हासिल हुए थे.

अरविंद केजरीवाल

इस चुनाव में भाजपा राष्ट्रीय मुद्दों को उठा रही है. नागरिकता संशोधन अधिनियम, अनुच्छेद 370 को निरस्त करना, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और तीन तलाक का समर्थन. लेकिन हाल ही में अलग-अलग राज्यों में हुए विधानसभा के चुनावों ने कुछ और संदेश दिया है. यहां के मतदाताओं ने स्थानीय मुद्दों को वरीयता दी है. लिहाजा, इस चुनाव में भी आप की रणनीति ऐसी ही लगती है. पार्टी के लिए सबसे मुफीद होगा कि उसने पिछले पांच सालों में जो भी कार्य किए हैं, उसका प्रचार करे. झारखंड और हरियाणा में स्थानीय मुद्दे हावी रहे थे. विधानसभा चुनाव में मुझे लगता है कि दिल्ली के मतदाता भी दिल्ली के मुद्दों पर ध्यान रखते हुए मतदान करेंगे और राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं.

अमित शाह

मतदान के दौरान राज्य के मुद्दों के लिए मतदाता की प्राथमिकता आप को उसके प्रतिद्वंद्वी से मजबूती से आगे रखेगी क्योंकि दिल्ली में केजरीवाल सरकार द्वारा किए गए कार्यों की व्यापक स्वीकृति है. सर्वेक्षण के आंकड़े दिल्ली के लोगों को दिल्ली सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मिलने वाले प्रत्यक्ष लाभों को इंगित करते हैं, जो उनके मतदान निर्णय को आकार देने में निर्णायक हो सकते हैं.

हाल के विधानसभा चुनावों के नतीजे संकेत देते हैं- मतदाताओं ने अपने मतदान के फैसले को लेते हुए राज्य के मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों से अधिक महत्वपूर्ण माना. सीएसडीएस द्वारा किए गए अध्ययन से संकेत मिलता है- दिल्ली के मतदाताओं को केंद्र में मोदी द्वारा किए गए कार्यों को देखने के बजाय राजधानी में आप द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर वोट करने की अधिक संभावना है. सर्वेक्षण के अनुसार 15% लोगों ने कहा कि वे केंद्र में मोदी द्वारा किए गए काम के आधार पर मतदान करेंगे. अधिकांश (हर दो मतदाता में से एक से ज्यादा यानि 55 फीसदी) का मत था कि वे आप द्वारा किए गए काम को देखते हुए ही मतदान करेंगे.

अमित शाह और जेपी नड्डा

सीएसडीएस दिल्ली गवर्नेंस सर्वे आप सरकार के साथ मतदाताओं के बीच बहुत अधिक संतुष्टि का संकेत देता है. हालांकि केंद्र सरकार के साथ संतुष्टि का स्तर भी उच्च स्तर पर पाया गया था, लेकिन हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों में, यह बीजेपी के लिए वोटों में तब्दील होता नहीं दिख रहा है. डेटा आप को मतदाताओं की सबसे लोकप्रिय पसंद के रूप में दिखाता है, यहां तक ​​कि उन लोगों के बीच भी जो केंद्र सरकार के प्रदर्शन से पूरी तरह से संतुष्ट हैं. मोदी के नेतृत्व वाले बीजेपी के पिछले छह महीने के प्रदर्शन से पूरी तरह संतुष्ट होने का दावा करने वालों में आप के प्रति मजबूत झुकाव वाले थे.

अरविंद केजरीवाल

आप को अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे रखने के लिए एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर का अभाव है. लोग आम तौर पर खुश लग रहे थे और आप सरकार के खिलाफ किसी भी सत्ता विरोधी लहर के कोई संकेत नहीं हैं. हरियाणा में, भले ही बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर बहुत लोकप्रिय थी, उसने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान 58% वोट शेयर हासिल किया, लेकिन खट्टर सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी ने बीजेपी को बहुमत से वंचित कर दिया. इसी तरह, झारखंड में, रघुबर दास की अलोकप्रियता के कारण, विशेषकर आदिवासियों के बीच, लोकसभा की तुलना में, वोट शार्प ईओफ़ बीजेपी लगभग 22 प्रतिशत अंक (बीजेपी और आजसू के 55.3% के संयुक्त वोट शेयर से) गिरा. यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के राज्य विधानसभा चुनावों में मोदी की लोकप्रियता को पछाड़ दिया. आप सरकार को इस मोर्चे पर कोई कठिनाई नहीं दिख रही है.

आजकल चुनाव के दौरान किसी भी नेता का चेहरा महत्वपूर्ण हो गया है. और स्थानीय स्तर पर यहां आप लीड लेती हुई दिख रही है. भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास केजरीवाल के चेहरे का विकल्प नहीं है. दिल्ली भाजपा के पास कई नेता हैं. लेकिन कोई भी केजरीवाल की कद का नहीं है. लिहाजा, भाजपा मोदी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है. नरेंद्र मोदी अभी भी दिल्ली के मतदाता के बीच बहुत लोकप्रिय है, लेकिन दिल्ली गवर्नेंस स्टडी के निष्कर्षों से पता चलता है- केजरीवाल की लोकप्रियता मोदी के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक है. इस प्रकार, भले ही यह लड़ाई केजरीवाल और मोदी के बीच हो, लेकिन केजरीवाल अपने क्षेत्र में अधिक मजबूत दिखता है.

अमित शाह और नरेंद्र मोदी

दिल्ली के लोगों को आठ फरवरी को अपना वोट डालने से पहले एक सप्ताह से अधिक का समय बचा है, आने वाले दिनों में कुछ कहानी अभी भी सामने आ सकती है, हालांकि, अगर आप स्थानीय मुद्दों के बारे में कथा रखने में सफल होती है, तो उसे एक और जीत का आश्वासन देना चाहिए दिल्ली में.

(प्रोफेसर संजय कुमार, सीएसडीएस)

Last Updated : Feb 28, 2020, 4:57 AM IST

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