श्रीनगर : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करने और इसे दो हिस्सों में विभाजित करने के अपने 'ऐतिहासिक निर्णय' की पहली वर्षगांठ के अवसर पर एक भव्य समारोह के आयोजन की योजना बना रही है. वहीं इसके विपरीत कई विशेषज्ञ मानते हैं कि राज्य के सभी क्षेत्रों के लोग 'भ्रम और भय' के दौर से गुजर रहे हैं.
ईटीवी भारत ने जम्मू कश्मीर के सभी क्षेत्रों के स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों से बात की और उस दिन से सभी घटनाक्रमों को बारीकी से फॉलो किया, जिस दिन से केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को वापस लिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.
लैंड बैंकिंग से वू इनवेस्टर
पिछले साल नवंबर के पहले दो सप्ताह के दौरान जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए निवेशकों को लुभाने के लिए भूमि बैंक बनाना शुरू किया.
केंद्र द्वारा पांच अगस्त को लिए गए इस फैसले के ठीक चार महीने बाद उठाए गए इस कदम ने अफवाहों और खबरों की एक लहर पैदा कर दी थी, जिसमें कहा गया था कि यहां जल्द ही एक और बड़ा विकास हो सकता है.
प्रशासन ने अपने उद्देशय को स्पष्ट करते हुए कहा,'यह आगामी जम्मू-कश्मीर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट -2020 के लिए किया जा रहा है.
निवेशकों को लुभाने के लिए हम दोनों क्षेत्रों (जम्मू और कश्मीर) में 5000 कनाल (लगभग 624 एकड़) से अधिक भूमि बैंकों के निर्माण किया जा रहा है.
जम्मू कश्मीर राज्य औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध निदेशक रविंदर कुमार ने कहा था 'हमने औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भूमि की पहचान की है.'
उन्होंने आगे कहा कि इच्छुक निवेशकों को मार्च में राजधानी श्रीनगर और जम्मू में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन में भाग लेने की उम्मीद है.
कुमार ने कहा था, 'शिखर जम्मू-कश्मीर को औद्योगिक केंद्र बनाने में एक निर्णायक कारक साबित होंगे.'
उन्होंने आगे कहा था कि यह न केवल व्यापार के अनुकूल नीतियों को पेश करने में मदद करेगा, बल्कि जम्मू-कश्मीर की आंतरिक ताकत और विकास और रोजगार के अवसरों की आकांक्षाओं को भी सामंजस्य देगा. आखिरकार इस साल अप्रैल में शिखर सम्मेलन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया.
प्रशासन के बयान के अनुसार,'शिखर सम्मेलन आयोजित करना संभव नहीं होगा. इसे तब तक बंद रखा जाएगा, जब तक कि कोरोना वायरस की स्थिति में सुधार नहीं हो जाता और चीजें वापस सामान्य नहीं हो जाती हैं. हालांकि प्रशासन व्यवसाय से संबंधित पहल करने के लिए अवधि का उपयोग सुधार, औद्योगिक संपदा का निर्माण, केंद्रशासित प्रदेश के साथ-साथ अन्य जिलों में अधिक भूमि की पहचान करने में करेगा.'
घरेलू अधिनियम
इस वर्ष 31 मार्च को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों के अनुकूलन) आदेश, 2020 के माध्यम से केंद्रशासित प्रदेश में अधिवास की नई परिभाषा पेश की.
नया अधिनियम सभी भारतीय नागरिकों को कुछ शर्तों को पूरा करने पर जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है. सरकार ने जम्मू-कश्मीर की पूर्ववर्ती सरकार के 29 कानूनों को भी रद्द कर दिया और 109 अन्य कानूनों को संशोधित किया, जिन्हें पिछले अगस्त में खत्म कर दिया गया था.
केंद्र के इस कदम की घाटी के मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने कड़ी आलोचना की और इसे 'भेदभावपूर्ण' और 'अपमान' करने वाला करार दिया.
2019 तक जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35A के संवैधानिक प्रावधानों के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था, जिसके तहत शेष भारत के किसी भी व्यक्ति को वहां अधिवास की अनुनति नहीं थी. इसका मतलब यह था कि बाहरी लोग स्थानीय सरकार या वहां नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे. हालांक, यह नियम केंद्र सरकार की पोस्टिंग पर लागू नहीं हुआ है.
नया नियम केवल जम्मू- कश्मीर मूल के गैर-राजपत्रित फोर्थ ग्रेड की नौकरियों को आरक्षित करता है. यह कुछ शर्तों को भी सूचीबद्ध करता है, जिन्हें एक अधिवास आवेदक के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए पूरा करना चाहिए. आवेदक 15 वर्ष से जम्मू कश्मीर का निवासी होना चाहिए या राज्य में सात साल तक अध्ययन किया हो और या फिर कक्षा 10 या कक्षा 12 परीक्षा दी हो.
केंद्रीय सरकारी अधिकारियों (सेना, अर्धसैनिक बल, IAS, IPS) के बच्चे और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और बैंकों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों आदि के कर्मचारी, जिन्होंने 10 साल तक जम्मू-कश्मीर में सेवा की है, वह भी सरकारी नौकरियों में गैजिट और नॉन गैजिट के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे. इनमें वह लोग भी शामिल हैं, जो राज्य से बाहर काम करते हैं.
राहत और पुनर्वास आयुक्त द्वारा पंजीकृत प्रवासियों को उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा करने की आवश्यकता नहीं है और स्वचालित रूप से अधिवास प्रमाण पत्र के लिए पात्र होंगे.
घाटी के मुख्यधारा के राजनीताओं का कहना है कि सरकार का अधिवास निर्णय ठीक नहीं है और वह इस निर्णय की कड़ी आलोचना कर रहे हैं. आलोचना करने वालों में कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स मूवमेंट और अपनी पार्टी शामिल हैं. इस बीच जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ अधिकारी केंद्र शासित प्रदेश में अधिवास अधिकार पाने वाले पहले अधिकारी बन गए. जम्मू-कश्मीर कैडर के अधिकारी नवीन कुमार चौधरी, जो वर्तमान में कृषि उत्पादन विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में तैनात हैं, को जम्मू से अधिवास प्रमाण पत्र जारी किया गया.
बिहार के दरभंगा जिले के निवासी चौधरी ने कहा कि वह पिछले 26 वर्ष से जम्मू-कश्मीर सरकार में सेवारत हैं. उनकी पहली पोस्टिंग श्रीनगर के सहायक आयुक्त के रूप में हुई थी.
जम्मू के बाहु क्षेत्र के तहसीलदार द्वारा जारी प्रमाण पत्र में लिखा है कि यह प्रमाणित किया जाता है कि वर्तमान में देवकांत चौधरी के बेटे, नवीन के चौधरी, गांधी नगर जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित का अधिवासी हैं.
सशस्त्र बलों के लिए रणनीति
इस वर्ष 17 जुलाई को जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सशस्त्र बलों द्वारा निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए केंद्र शासित प्रदेश के अंदर के कुछ स्थानों को 'रणनीतिक क्षेत्रों' के रूप में अधिसूचित करने का निर्णय लिया. इसके बाद के आदेश ने गृह विभाग से 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' प्राप्त करने की शर्त को हटा दिया. सरकार ने कहा कि रक्षा बलों को क्षेत्र में कहीं भी अचल संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती हैं.
एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि इस कदम को उपराज्यपाल जीसी मुर्मू की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक परिषद ने मंजूरी दी थी.
उन्होंने कहा, 'प्रशासनिक परिषद ने भवन निर्माण संचालन अधिनियम, 1988 और जम्मू-कश्मीर विकास अधिनियम, 1970 में संशोधन के प्रस्ताव को रणनीतिक क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों को पूरा करने के लिए विशेष छूट प्रदान करने के लिए अपनी मंजूरी दी है.'
बयान में कहा गया है कि आवास और शहरी विकास विभाग द्वारा प्रस्तावित संशोधन सशस्त्र बलों की आवश्यकता के संदर्भ में कुछ क्षेत्रों को 'रणनीतिक क्षेत्रों' के रूप में अधिसूचित करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे और ऐसे क्षेत्रों में निर्माण गतिविधि का विनियमन एक विशेष माध्यम से होगा.