हैदराबाद : सर्वोच्च न्यायालय ने दो साल पहले कहा था लोकतंत्र में सबसे बुरी चीज जो हो सकती है वह है आपराधिक राजनीति. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के निष्कर्ष से पता चलता है कि वर्ष 2014 तक देश भर के 1581 विधायक और सांसद आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे थे. सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष अदालतों का गठन किया था और मामलों की अद्यतन स्थिति का ब्योरा लिया था. अदालत के निष्पक्ष सलाहकार (एमिकस क्यूरे) हंसारिया ने जिन तथ्यों का खुलासा किया वे चौंकाने वाले थे. एक जनहित याचिका में वर्तमान और पूर्व जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई में तेजी लाने और दोषी नेताओं को जीवन भर के लिए चुनाव लड़ने से वंचित कर देने की मांग की गई थी.
देश में कुल 4,442 पूर्व और वर्तमान विधायकों और सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 2 हजार 556 अभी जनप्रतिनिधि हैं. हर जन प्रतिनिधि के खिलाफ कई आरोप दर्ज हैं और ये आपराधिक राजनीति के मकड़जाल का खुलासा कर रहे हैं. प्रत्येक मामले में कई जन प्रतिनिधियों की भागीदारी है. उत्तर प्रदेश में जितने माननीय जनप्रतिनिधि घृणित आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं वह रिकार्ड अनूठा है. इन अपराधों में उन्हें उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.
बिहार 30 मौजूदा और 43 पूर्व विधायकों के साथ इस तरह के मामलों का सामना करने वाले राज्यों में दूसरे स्थान पर है. एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि वर्ष 1983 से ही मामले बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में अभी तक आपराधिक केस दर्ज नहीं किए गए हैं. निचली अदालत की ओर से जारी किए गए गैर-जमानती वारंट के तामील होने की स्थिति के बारे में कभी जानकारी नहीं मिली. आजीवन कारावास के कुल दर्ज 413 मामलों में से 174 वर्तमान सांसदों और विधायकों के खिलाफ हैं. यह सच्चाई है कि पंजाब में 1983 में हत्या के मामले में 36 साल बाद एक जन प्रतिनिधि के खिलाफ पिछले साल आरोप तय किया गया. यह आपराधिक राजनीति के दुष्परिणाम का एक अकाट्य प्रमाण है.