चेन्नई : तमिलनाडु के नागापट्टिनम गणपति शिक्षक नहीं हैं, लेकिन वह अपने गांव के युवाओं को पारंपरिक मार्शल आर्ट सिखा रहे हैं. वह बच्चों और युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं इसलिए उन्हें 'कुश्ती मास्टर' का नाम दिया गया है.
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन का सही उपयोग नागापट्टिनम जिले के करुवाजकरई मेलैयुर गांव में रहने वाले 81 वर्षीय गणपति ने किया है. वे इस लॉकडाउन में तमिल मार्शल आर्ट्स को जिंदा रख रहे हैं. उन्होंने 12 साल की उम्र में ही मार्शल आर्ट्स सिखा लिया था.
गांव के स्कूल ग्राउंड को प्रशिक्षण केंद्र बना दिया गया है, जहां कुछ युवा 'अरुवा वीकू', 'सिलंबम' की बारीकियां सीख रहे हैं. कोच गणपति हैं, जो खुद पारंपरिक तमिल मार्शल आर्ट में मास्टर हैं.
तमिल पारंपरिक मार्शल आर्ट उनका मानना है कि बच्चे छोटी उम्र में ज्यादा सिखते हैं. छोटी उम्र में उन्हें सिखाया जाए तो आगे भविष्य में वे कमाल कर सकते हैं. उनकी टीम में 20 से अधिक युवा हैं जो अपना बचाव और हमला करना सिख रहे हैं.
कक्षाएं मुफ्त में दी जाती हैं लेकिन प्रशिक्षण कठोर है. गणपति कहते हैं कि आज हर कोई आत्मरक्षा की कला सीखना चाहता है. यह आज की जरुरत है. बावजूद इसके तमिल मार्शल आर्ट जैसे सिलंबम, अरुवा वीचू और रेसलिंग (माल युद) को लोग भूलने लगे हैं. सरकार भी इस कला को संरक्षित करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. उन्होंने कहा कि युवाओं को प्रशिक्षण देने का उनका एक ही उद्देश्य हैं, इस कला को अगली पीढ़ी के लिए संरक्षित करना.
वे कहते हैं कि मार्शल आर्ट में महारत हासिल करने के लिए एक जुनून होना चाहिए. उन्होंने कहा, 'मैंने मार्शल आर्ट सीखा और पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं की. मार्शल आर्ट शरीर और दिमाग को समकालिक करने में मदद करता है.
गणपति ने बताया, 'जब मैं 22 साल का था, तब से युवाओं को प्रशिक्षित कर रहा हूं. अब तक मैंने 2,000 से अधिक युवाओं को मुफ्त में प्रशिक्षित किया है. मैं 7 वर्ष से अधिक और 35 वर्ष से कम आयु वालों को प्रशिक्षण देता हूं. एक दो साल पहले मैंने प्रशिक्षिण देना बंद कर दिया था लेकिन लॉकडाउन में युवाओं को भटकता देख फिर से मार्शल आर्ट्स में प्रशिक्षण देना शुरु कर दिया.
पढ़ें :-लद्दाख गतिरोध : एलएसी पर तैनात थे मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित चीनी सैनिक
गणपति ने 1981 में मदुरै में आयोजित विश्व तमिल सम्मेलन के दौरान अपनी कला का प्रदर्शन किया था. उन्होंने फिल्मों में स्टंट मास्टर के रूप में भी काम किया. उन्होंने कहा कि पारंपरिक मार्शल आर्ट्स, तमिल समाज के गौरव और विरासत हैं. इन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए.