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सातवें दौर की सैन्य वार्ता 'सकारात्मक' रही, सैनिकों की वापसी पर गतिरोध

भारत और चीन के बीच सातवें दौर की सैन्य वार्ता 'सकारात्मक और रचनात्मक' रही. यह बात दोनों देशों की सेनाओं की ओर से मंगलवार को जारी एक संयुक्त बयान में कही गई. हालांकि, पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की तेजी से वापसी को लेकर कोई सफलता मिलती नहीं दिखी. दोनों पक्ष सैन्य और राजनयिक माध्यम से संवाद और संचार बनाए रखने के लिए सहमत हुए हैं.

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सातवें दौर की सैन्य वार्ता

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Published : Oct 13, 2020, 11:42 PM IST

नई दिल्ली :विगत जून माह से पैदा हुआ भारत और चीन गतिरोध बरकरार है. चीन लगातार अड़ियल रुख अपनाए हुए है. तनाव कम करने के लिए सैन्य और राजनयिक स्तर पर वार्ता भी लगातार जारी है. दोनों देशों के बीच सात दौर की वार्ता हो चुकी है. ताजा घटनाक्रम में सैन्य वार्ता सकारात्मक होने की खबरें सामने आई हैं. दोनों पक्षों ने मतभेदों को विवादों में तब्दील नहीं होने देने को लेकर अपने नेताओं के बीच बनी सहमति को ईमानदारी से लागू करने पर सहमति व्यक्त की.

आधिकारिक सूत्रों ने यहां कहा कि पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की वापसी को लेकर बात महत्वपूर्ण रूप से आगे नहीं बढ़ी. भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच पांच महीने से अधिक समय से सीमा प़र गतिरोध है.

सूत्रों ने कहा कि सैनिकों की वापसी को लेकर वार्ता में कोई सफलता नहीं मिली और भारत ने टकराव वाले सभी बिंदुओं पर अप्रैल से पहले वाली स्थिति बहाली पर जोर दिया. दोनों सेनाओं के बीच टकराव पांच मई को शुरू हुआ था.

सोमवार को लगभग 12 घंटे तक चली वार्ता के बाद दोनों सेनाओं द्वारा जारी एक संयुक्त प्रेस बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष सैन्य और राजनयिक माध्यम से संवाद और संचार बनाए रखने के लिए सहमत हुए हैं. साथ ही दोनों पक्ष 'जितनी जल्दी हो सके' सैनिकों की वापसी के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य हल पर पहुंचने को लेकर सहमत हुए. बयान दिल्ली और बीजिंग दोनों ही जगह जारी किया गया.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने इस बीच, एक बार फिर यह टिप्पणी की कि चीन केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता है. उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत द्वारा बुनियादी ढांचे का निर्माण और चीन के साथ लगती सीमा पर सैन्य तैनाती 'तनाव का मूल कारण' है.

भारत का पुरजोर तरीके से यह कहना है कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख दोनों देश के अभिन्न अंग हैं और चीन को उसके आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए. प्रवक्ता झाओ बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग में पश्चिमी मीडिया के एक पत्रकार द्वारा लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की ओर से कई पुलों के निर्माण को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

चीनी प्रवक्ता ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच हाल में बनी सहमति के आधार पर, किसी भी पक्ष द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए जिससे सीमाक्षेत्र में स्थिति के जटिल बनने की आशंका है, ताकि तनाव कम करने के द्विपक्षीय प्रयास कमजोर नहीं हों. उन्होंने कहा, 'कुछ समय से भारतीय पक्ष चीन के साथ लगती सीमा पर बुनियादी ढांचे का निर्माण और सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है. यह तनाव का मूल कारण है.'

उन्होंने कहा, 'हम भारतीय पक्ष से आग्रह करते हैं कि दोनों पक्षों के बीच बनी आम सहमति को ईमानदारी से लागू करे, ऐसी किसी कार्रवाई बचे जिससे स्थिति जटिल बन सकती है तथा सीमा पर शांति की रक्षा के लिए ठोस उपाय करे.'

कड़ाके की सर्दियों के महीनों के दौरान मौजूदा तैनाती को बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों द्वारा व्यापक रूप से तैयारियों के बीच यह सैन्य वार्ता पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के भारतीय हिस्से चुशुल में हुई.

संयुक्त प्रेस बयान में कहा गया, 'दोनों पक्षों ने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिकों की वापसी को लेकर विचारों का गहन, और रचनात्मक आदान-प्रदान किया.'

इसमें कहा गया कि दोनों पक्षों का यह विचार था ये चर्चा 'सकारात्मक, रचनात्मक' थी और एक-दूसरे की स्थिति को लेकर समझ को बढ़ाने का काम किया.

बयान में कहा गया है, 'दोनों पक्षों ने सैन्य और राजनयिक चैनलों के माध्यम से संवाद और संचार बनाए रखने और जल्द से जल्द सैनिकों की वापसी के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान पर पहुंचने को लेकर सहमति जतायी.'

इसमें कहा गया, 'दोनों पक्षों ने मतभेदों को विवादों में तब्दील नहीं होने देने को लेकर अपने नेताओं के बीच बनी सहमति को ईमानदारी से लागू करने तथा सीमा क्षेत्रों में शांति की संयुक्त रूप से रक्षा करने पर सहमति व्यक्त की.'

अप्रैल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच पहले अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में, दोनों पक्षों ने मतभेदों को विवाद नहीं बनने देने पर जोर दिया था. यह समझ तब से दोनों देशों द्वारा दिये गए कई बयानों में उल्लिखित की गई है.

शिखर सम्मेलन डोकलाम प्रकरण के कई महीनों बाद हुआ था, जिसमें दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था.

सैन्य वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया और इसमें विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) नवीन श्रीवास्तव भी शामिल थे. इसमें लेफ्टिनेंट जनरल पी जी के मेनन भी शामिल थे, जिन्होंने मंगलवार को सिंह के स्थान पर 14वीं कोर के कमांडर का कार्यभार संभाला.

चीनी पक्ष की अगुवाई दक्षिण शिनजियांग सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन ने की.

दिल्ली में सूत्रों ने कहा कि भारत ने साथ ही 'चुनिंदा' नहीं बल्कि व्यापक तौर पर सैनिकों की वापसी पर जोर दिया.

पीएलए, पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर कई रणनीतिक चोटियों से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग कर रहा है ताकि सैनिकों की वापसी प्रक्रिया को शुरू किया जा सके.

गत 29 और 30 अगस्त की दरम्यानी रात को इलाके में पीएलए के सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों को डराने-धमकाने की कोशिश के बाद भारतीय सैनिकों ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तट के आसपास स्थित मुखपारी, रेजांग ला और मगर पहाड़ी इलाकों में नियंत्रण हासिल कर लिया था.

गत 21 सितंबर को छठे दौर की सैन्य वार्ता के बाद, दोनों पक्षों ने कई फैसलों की घोषणा की थी, जिसमें अग्रिम क्षेत्रों में और अधिक सैनिकों को नहीं भेजने, एकतरफा रूप से जमीन पर स्थिति को बदलने से बचने और ऐसी कोई भी कार्रवाई करने से बचना शामिल था जिससे मामला और जटिल हो जाए.

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