हैदराबाद : भारत द्वारा निर्मित पहले मानव रहित उपग्रह आर्यभट्ट की लॉन्चिंग की आज 45वीं वर्षगांठ है. आर्यभट्ट न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए, बल्कि देश के इतिहास में सबसे गौरवपूर्ण क्षणों में एक है.
इस उपग्रह का नामकरण पांचवीं शताब्दी के एक प्रमुख भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था. इसे 19 अप्रैल, 1975 को एक रूस निर्मित रॉकेट द्वारा सोवियत संघ से लॉन्च किया गया था.
आर्यभट्ट का वजन 794 पाउंड (360 किलोग्राम) था और न्यूट्रॉन को मापने के क्रम में पृथ्वी के आयनोस्फीयर की स्थितियों का पता लगाने के लिए इसे तैयार किया गया था.
हालांकि उपग्रह की विद्युत प्रणाली में विफलता के कारण यह केवल पांच दिन ही चल सका, लेकिन इन पांच दिनों में ही वैज्ञानिकों ने इससे काफी उपयोगी जानकारी हासिल की.
भारत में उपग्रह कार्यक्रम ने 1970 के दशक की शुरुआत में ही आकार लेना शुरू कर दिया था, हालांकि स्थानीय वैज्ञानिकों ने स्पुतनिक के समय से ही एक स्वदेशी भारतीय कार्यक्रम का सपना देखा था. जो इसके निर्माण के साथ पूरा हुआ.
दरअसल, 1960 के दशक में भारत निर्मित रोहिणी रॉकेट कार्यक्रम की अंतिम सफलता के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने स्वदेशी उपग्रहों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया और आर्यभट्ट का निर्माण किया.
इसरो के संस्थापक और प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी विक्रम साराभाई की भारत के परमाणु उद्योग के विकास में अहम भूमिका थी. उन्होंने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में 25 इंजीनियरों और शोधकर्ताओं की एक टीम नियुक्त की. इसी टीम का हिस्सा रहे अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. यू.आर. राव के निर्देशन में 100 किलोग्राम वजन के एक उपग्रह को डिजाइन किया गया था.
आर्यभट्ट को इसरो द्वारा एक्स-रे खगोल विज्ञान, एरोनोमिक्स और सौर भौतिकी में प्रयोग करने के लिए बनाया गया था. यह अंतरिक्ष यान एक 26-पक्षीय बहुभुज था, जिसका व्यास 1.4 मीटर था.
इस उपग्रह का नाम आर्यभट्ट भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखा था.
इसरो द्वारा निर्मित 360 किलोग्राम के उपग्रह को रूस ने अपने कपस्टिन यार रॉकेट लॉन्च और विकास स्थल से कोस्मोस -3 एम लॉन्च वाहन का उपयोग करके लॉन्च किया था.