दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

छत्तीसगढ़ : कभी बाघिन की वजह से लॉकडाउन हुए थे बस्तर के 25 गांव

छत्तीसगढ़ के बस्तर में 25 साल पहले 25 गांव के लोग शावक और बाघिन के डर से लॉकडाउन हो गए थे. दहशत की वजह से ग्रामीणों ने बाघिन का नाम ज्वालामुखी रख दिया गया था. बाघिन के दोनों शावकों को लोग भूकंप और लावा पुकारने लगे थे. तिरिया- माचकोट के घने जंगलों में एक सप्ताह में काफी मशक्कत करने के बाद इन्हें पकड़ा जा सका था.

ETV BHARAT
बाघिन की वजह से लॉकडाउन

By

Published : May 22, 2020, 7:31 PM IST

रायपुर : कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए पूरे देश में लॉकडाउन किया गया है. लोग इस चिंता में हैं कि कब ये महामारी खत्म हो और वे खुली हवा में पहले की तरह सांस ले सकें. भले हम और आप कोविड 19 के डर से लॉकडाउन हों, लेकिन बस्तर के करीब 25 गांवों ने ये दिन 25 साल पहले ही देख लिए थे. साल 1996 में बाघिन और दो शावकों की दहशत ने ग्रामीणों को घरों में रहने के लिए मजबूर कर दिया था.

25 साल पहले 1996 में 3 जनवरी की सुबह बाघिन के जिंदा पकड़े जाने का इंतजार बस्तर के 25 गांव के हजारों लोगों ने किया था. बाघिन और शावकों को पकड़ने के बाद कुरंदी गांव के रेस्ट हाउस में रखा गया था. इन्हें देखने आने वालों की संख्या इतनी थी कि दो महीने तक बाघिन और शावकों को रेस्ट हाउस में रखा गया था. बाद में तीनों को कानन पेंडारी भेज दिया गया. लगभग तीन महीने तक बाघिन और शावकों की दहशत से ग्रामीणों ने अपने आपको घरों में ही लॉकडाउन कर लिया.

बाघिन की वजह से लॉकडाउन.

नरभक्षी बाघिन का ऐसा प्रकोप
बाघिन के डर से तिरिया- माचकोट के जंगलों के बीच बसे गांव कुरंदी, पुलचा, तिरिया, माचकोट, कावपाल, मार्केल, पुसपाल, जीरा गांव, धनियालूर, सिलयागुड़ा, सिवनागुड़ा और तराईगुड़ा के साथ करीब 25 गांव में रहने वाले लोग दहशत में थे. यहां के 18 लोगों का शिकार बाघिन और दो शावकों ने किया था. इसके साथ ही ग्रामीणों के करीब 2 दर्जन पालतू मवेशी भी इनका निवाला बन चुके थे. इन गांवों में उस समय लगभग 20 से 25 हजार ग्रामीण रहते थे.

दहशत के आधार पर पड़े ये नाम
दहशत की वजह से ग्रामीणों ने बाघिन का नाम ज्वालामुखी रख दिया गया था. बाघिन के दोनों शावकों को भूकंप और लावा पुकारा जाने लगा था. तिरिया- माचकोट के घने जंगलों में एक सप्ताह में काफी मशक्कत करने के बाद इन्हें पकड़ा जा सका था.

ऐसे पकड़ा गया बाघिन को
बाघिन और उसके शावकों को जीवित पकड़ने के उन पलों को याद करते हुए डॉक्टर सतीश बताते हैं कि ज्वालामुखी को पिंजरे में डालकर रेस्ट हाउस लाया गया था. बाघिन को जीवित पकड़ने का कारनामा असम के निवासी जिया उर्रहमान ने किया था, जिन्हें भोपाल से खास इस काम के लिए यहां भेजा गया था. डॉक्टर सतीश बताते हैं कि जिया उर्रहमान ने बाघिन और शावकों को पकड़ कर बाघों को पकड़ने का शतक पूरा किया है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details