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2020 राउंडअप : इन बड़े प्रदर्शनों, दंगों और घोटालों का गवाह बना ये साल

साल 2020 में जब पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में था, भारत इसका दूसरा सबसे प्रभावित देश बना. इसके बावजूद देश ने इस साल कुछ बड़े प्रदर्शनों, दंगों और घोटालों का भी सामना किया. देखिए विशेष रिपोर्ट...

2020 राउंडअप: इन बड़े प्रदर्शनों, दंगों और घोटालों का गवाह बना ये साल
2020 राउंडअप: इन बड़े प्रदर्शनों, दंगों और घोटालों का गवाह बना ये साल

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Published : Dec 26, 2020, 6:03 AM IST

हैदराबाद : पूरी दुनिया ने वर्ष 2020 में कोरोना वायरस जैसी अभूतपूर्व वैश्विक महामारी का सामना किया, जिसने सभी प्रमुख सार्वजनिक गतिविधियों को बाधित किया. अमेरिका के बाद कोरोना महामारी से दूसरा सबसे प्रभावित देश भारत ही रहा है, जहां देश ने एक सबसे सख्त लॉकडाउन देखा. इन सबके बीच ये साल कुछ बड़े विरोध प्रदर्शनों और दो बड़े सांप्रदायिक दंगों का गवाह भी बना. आइए ऐसे ही प्रदर्शनों, दंगों और घोटालों पर डालते हैं एक नजर...

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध
  • नए कृषि कानूनों पर किसानों का प्रदर्शन
  • दिल्ली दंगे
  • बेंगलुरु दंगे
  • सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर विवाद
  • केरल सोना तस्करी विवाद
  • जम्मू और कश्मीर रौशनी लैंड स्कैम

नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध

नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध

नागरिकता संशोधन अधिनियम(सीएए) दिसंबर 2019 में अस्तित्व में आया था. प्रारंभिक तौर पर असम से इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, जहां प्रदर्शनकारियों ने इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के साथ जोड़कर देखा. प्रदर्शनकारियों ने 1971 के बाद आए अप्रवासियों को नागरिकता की अनुमति देने के लिए सीएए का विरोध किया. जनवरी आते-आते सीएए यह पूरा विरोध प्रदर्शन दिल्ली में स्थानांतरित हो गया. विशेष रूप से दिल्ली का शाहीन बाग इन प्रदर्शनों का केंद्र बन गया.

यहां, प्रदर्शनकारियों ने सीएए के उन प्रावधानों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुसलमानों को धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने के लिए अयोग्य बना दिया. उन्हें भारत की नागरिकता प्राप्त करने के सामान्य मार्गों से गुजरना पड़ता. विरोध प्रदर्शनों ने अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां भी बटोरी. प्रदर्शनों का हिस्सा रही 82 वर्षीय बिलकिस बानो को टाइम पत्रिका ने सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में भी शामिल किया.

हालांकि कोविड 19 के बढ़ते प्रसार के बाद लगे लॉकडाउन से प्रदर्शन बिखर गया.

नए कृषि कानूनों पर किसानों का प्रदर्शन

नए कृषि कानूनों पर किसानों का प्रदर्शन

कोरोना की मार के बीच देश की राजधानी दिल्ली एक और बड़े प्रदर्शनों का गवाह बनी. इस बार संसद द्वारा लाए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब और हरियाणा के किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया.

ये तीन कानून हैं किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम के किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौते. इन कानूनों में से तीसरा मौजूदा कानून में संशोधन है.

एक साथ मिलकर ये कानून एमएसपी प्रणाली के समानांतर एक तंत्र स्थापित करने के लिए किसानों को एपीएमसी मंडियों के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति देते हैं और व्यापारी इन सरकारी-नियंत्रित बाजारों के बाहर से सीधे खरीद सकते हैं.

आंदोलन की अगुवाई करने वाले किसान संघों का कहना है कि ये कानून अंततः एमएसपी प्रणाली को समाप्त कर देंगे और किसानों को शोषणकारी कॉर्पोरेट घरानों की दया पर छोड़ देंगे. सरकार ने किसानों के दावों को तो खारिज कर दिया लेकिन यह समझाने में भी विफल रही कि नए कृषि कानून लाभकारी सुधार हैं. नतीजतन, हजारों किसान 29 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं.

दिल्ली दंगे

दिल्ली दंगे

दिल्ली में जारी सीएए विरोध प्रदर्शन एक तीव्र रूप लेते हुए फरवरी में पूर्वोत्तर दिल्ली में एक सांप्रदायिक हिंसा में बदल गया. नागरिकता कानून के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें 24 फरवरी से शुरू हुईं. यह नियंत्रण से बाहर हो गई, जिससे कम से कम 53 लोग मारे गए और लगभग 200 लोग घायल हुए.

दिल्ली दंगों के संबंध में कई मामलों की जांच दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही है, जिसने अपनी चार्जशीट में जेएनयू के पूर्व छात्र संघ नेता उमर खालिद और एक अन्य जेएनयू छात्र शारजील इमाम को आरोपी बनाया.

दिल्ली पुलिस और सरकार पर विपक्ष और कई कार्यकर्ताओं ने निशाना साधते हुए कहा कि दिल्ली में भाजपा नेता रहे कपिल मिश्रा की भूमिका दिल्ली दंगों के संबंध में नहीं बताई जा रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि दंगों के पहले कपिल मिश्रा ने धमकी दी थी कि अगर मामले में विरोधी सीएए प्रदर्शनकारियों ने इलाके में सड़क नाकाबंदी को साफ नहीं किया तो मामले को अपने हाथों में लेंगे, जिसके बाद स्थिति बेकाबू हो गई.

बेंगलुरु दंगे

बेंगलुरु दंगे

बेंगलुरु में कांग्रेस विधायक के रिश्तेदार द्वारा पैगंबर मुहम्मद के बारे में कथित रूप से भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट पर 11 अगस्त की रात दंगे भड़क गए. सैकड़ों आंदोलनकारियों की भीड़ ने बेंगलुरु के डीजे हल्ली और कडुगोंडानहल्ली क्षेत्रों में पुलिस स्टेशनों पर हमला किया.

दंगाइयों के निशाने पर कांग्रेस विधायक आर अखंडा श्रीनिवासा मूर्ति और उनकी बहन थी. शहर में बड़े पैमाने पर आगजनी और हिंसा हुई. दंगों के दौरान चार लोगों की मौत हो गई. दंगों ने पड़ोसी क्षेत्रों में भय और आतंक पैदा कर दिया था.

इस मामले की जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है जो आमतौर पर आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच करती है. एनआईए को मामला सौंपे जाने से पहले, स्थानीय पुलिस ने 300 से अधिक सदस्यों को गिरफ्तार किया था, जिनमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राजनीतिक शाखा, एसडीपीआई से संबंधित थे. एनआईए ने बेंगलुरु दंगों के सिलसिले में कई खोजें कीं और 100 से अधिक व्यक्तियों को गिरफ्तार किया.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर विवाद

सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर विवाद

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत जून में अपने मुंबई के फ्लैट में मृत पाए गए, जिसके बाद इसने एक बड़े राजनीतिक विवाद की शक्ल ले ली. अभिनेता के पिता ने जब मामले में गड़बड़ी की आशंका के बीच बिहार सरकार से संपर्क किया तो बिहार और महाराष्ट्र के प्रशासन एक दूसरे से लड़ते दिखे.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में बिहार पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. जब राज्य के पुलिस अधिकारी मुंबई पहुंचे, तो उन्हें बीएमसी द्वारा क्वांरटाइन कर दिया गया. बिहार सरकार ने इसे जांच में अवरोध करार दिया. बाद में मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया.

बिहार की सीबीआई जांच को चुनौती देते हुए महाराष्ट्र ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखा. इन सबके बीच दो पक्षों में राजनीतिक युद्ध भी जारी रहा, जिसमें एक पक्ष में जदयू और भाजपा थी और दूसरे पक्ष में कांग्रेस और शिवसेना थे.

बाद में, यह अभिनेता कंगना रनौत और शिवसेना के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार के बीच लड़ाई का मुद्दा बन गई.

इस बीच, सुशांत सिंह राजपूत की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती को अवैध ड्रग्स के मामलों में गिरफ्तार किया गया, जो कि चार सप्ताह तक जेल में रही. अब, जांच काफी हद तक बॉलीवुड में मादक पदार्थों के उपयोग पर केंद्रित है.

केरल सोना तस्करी विवाद

केरल सोना तस्करी विवाद

केरल सोना तस्करी विवाद इस साल का सबसे गंभीर राजनीतिक घोटाला था. 30 जून को तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर संयुक्त अरब अमीरात से सीमा शुल्क अधिकारियों को एक राजनयिक सामान के साथ अवैध सोने बरामद हुए.

सोने की तस्करी का नेटवर्क केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के कार्यालय के दरवाजे तक पहुंच गया. सोने की तस्करी मामले का एक मुख्य आरोपी उनके निजी सचिव के संपर्क में पाया गया. पिनारयी विजयन ने संबंधित अधिकारी को बर्खास्त कर दिया और केंद्रीय एजेंसियों को जांच सौंप दी.

अब इस मामले को आतंकवाद के एंगल से देखा जा रहा है और एनआईए और प्रवर्तन निदेशालय के साथ मनी लॉन्ड्रिंग की जांच चल रही है.

जम्मू और कश्मीर रौशनी लैंड स्कैम

जम्मू और कश्मीर रौशनी लैंड स्कैम

साल खत्म होने से पहले जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा घोटाला सामने आया है. यह सरकारी भूमि पर अनधिकृत कब्जे को नियमित करने के लिए 2001 में जम्मू-कश्मीर सरकार के एक फैसले से संबंधित है. जिसमें एक तय फीस के तहत जमीन का मालिकाना हक स्थांतारित किया जाना था.

इस योजना से एकत्रित धन का उपयोग जम्मू और कश्मीर में बिजली परियोजना के लिए किया जाना था. इसलिए, उक्त कानून को रोशनी अधिनियम कहा जाता था. सरकार ने शीर्षक स्वामित्व की फीस से 25,000 करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा.

2014 में, कैग ने पाया कि रोशनी अधिनियम जम्मू और कश्मीर के कई शक्तिशाली लोगों द्वारा भूमि हड़पने का एक उपकरण बन गया. इस साल नवंबर में सीबीआई ने रोशनी जमीन घोटाले में मामला दर्ज किया है.

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