जयपुर : दुनिया की सबसे खराब परिस्थितियों में लड़े जाने वाले कारगिल युद्ध का जिक्र जब जब होगा तब तब राजस्थान के झुंझुनू जिले का नाम गौरव से लिया जाएगा, क्योंकि कारगिल युद्ध में सबसे अधिक शहादत झुंझुनू के फौजी बेटों ने दी. पाक के नापाक मंसूबों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहीद होने वाले राजस्थान के फौजियों में झुंझुनू के बेटे भी शामिल थे. कारगिल की जीत के 21 साल पूरे होने पर ईटीवी भारत ने उस समय कारगिल में तैनात सैनिकों से खास बातचीत की.
1999 में भारत-पाक के बीच हुआ था युद्ध
साल 1999 में मई से जुलाई तक भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में हिन्दुस्तान के 527 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे. बता दें कि 527 शहीदों में से राजस्थान के 52 जवान थे. इन 52 में से 19 जवान सिर्फ झुंझुनू जिले के थे. 26 जुलाई के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त करा लिया गया था. युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को अमर करने के लिए 26 जुलाई अब हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है. राजस्थान के रणबांकुरों ने भी कारगिल युद्ध में अपने युद्ध कौशल और वीरता का पूरे जोश के साथ परिचय दिया.
याद करते हैं अद्वितीय साहस को
भारतीय सेना के जवानों के अद्वितीय साहस को याद करते हुए पूर्व सैनिक बताते हैं कि शहादत देने वाले लाल कोई 20 साल की उम्र का था तो कोई बमुश्किल 25 साल का जवान था. यानी मां भारती की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देने वालों ने अपने जीवन के 30 साल भी पूरे नहीं किए थे.
दुश्मन की गद्दारी का हिन्दुतानी फौज ने दिया जवाब
बताया जाता है कि भारतीय इतिहास में वह स्वर्णिम दिन, जब दुश्मन की गद्दारी का हिंदुस्तानी फौज के जांबाज जवानों ने यूं जवाब दिया कि पूरी दुनिया थरथरा उठी. मां भारती के रणबांकुर रणचंडिका की वेदी पर शत्रु मुण्डों की माला चढ़ाकर जीत की कहानी लिख रहे थे. मां भारती के इन सपूतों ने भारतीय सेना की शौर्य और बलिदान की उस परम्परा को निभाया, जिसकी कसम हर सिपाही तिरंगे के सामने खाता है.