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कारगिल विजय दिवस : झुंझुनू जिले के 19 जवान हुए थे शहीद

साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारत के फौजियों ने पाकिस्तान को धूल चटाई थी. कारगिल का यह युद्ध भारतीय सेना के अदम्य साहस और बेजोड़ युद्ध कौशल के लिए विश्व में चर्चित रहा. कई रणबांकुरों ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान की. इन्ही वीरों में राजस्थान झुंझुनू के भी कई फौजी शामिल रहे. जिन्होंने अपनी जिन्दगी भारत माता की रक्षा के लिए कुर्बान कर दी. कारगिल की जीत के आज 21 साल पूरे हो गए हैं जिसको लेकर ईटीवी भारत ने सैनिकों के परिवारों से खास बातचीत की. देखिए झुंझुनू से यह स्पेशल रिपोर्ट...

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कारगिल विजय दिवस

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Published : Jul 26, 2020, 8:29 PM IST

जयपुर : दुनिया की सबसे खराब परिस्थितियों में लड़े जाने वाले कारगिल युद्ध का जिक्र जब जब होगा तब तब राजस्थान के झुंझुनू जिले का नाम गौरव से लिया जाएगा, क्योंकि कारगिल युद्ध में सबसे अधिक शहादत झुंझुनू के फौजी बेटों ने दी. पाक के नापाक मंसूबों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहीद होने वाले राजस्थान के फौजियों में झुंझुनू के बेटे भी शामिल थे. कारगिल की जीत के 21 साल पूरे होने पर ईटीवी भारत ने उस समय कारगिल में तैनात सैनिकों से खास बातचीत की.

जवानों ने सुनाई आपबीती

1999 में भारत-पाक के बीच हुआ था युद्ध
साल 1999 में मई से जुलाई तक भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में हिन्दुस्तान के 527 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे. बता दें कि 527 शहीदों में से राजस्थान के 52 जवान थे. इन 52 में से 19 जवान सिर्फ झुंझुनू जिले के थे. 26 जुलाई के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त करा लिया गया था. युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को अमर करने के लिए 26 जुलाई अब हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

जवानों के साथ खास बातचीत

स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है. राजस्थान के रणबांकुरों ने भी कारगिल युद्ध में अपने युद्ध कौशल और वीरता का पूरे जोश के साथ परिचय दिया.

याद करते हैं अद्वितीय साहस को
भारतीय सेना के जवानों के अद्वितीय साहस को याद करते हुए पूर्व सैनिक बताते हैं कि शहादत देने वाले लाल कोई 20 साल की उम्र का था तो कोई बमुश्किल 25 साल का जवान था. यानी मां भारती की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देने वालों ने अपने जीवन के 30 साल भी पूरे नहीं किए थे.

कारगिल युद्ध में तैनात जवान

दुश्मन की गद्दारी का हिन्दुतानी फौज ने दिया जवाब
बताया जाता है कि भारतीय इतिहास में वह स्वर्णिम दिन, जब दुश्मन की गद्दारी का हिंदुस्तानी फौज के जांबाज जवानों ने यूं जवाब दिया कि पूरी दुनिया थरथरा उठी. मां भारती के रणबांकुर रणचंडिका की वेदी पर शत्रु मुण्डों की माला चढ़ाकर जीत की कहानी लिख रहे थे. मां भारती के इन सपूतों ने भारतीय सेना की शौर्य और बलिदान की उस परम्परा को निभाया, जिसकी कसम हर सिपाही तिरंगे के सामने खाता है.

कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे झुंझुनू के 19 सपूत

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कारगिल विजय दिवस वह दिन है, जब शहीदों को याद कर श्रद्धा-सुमन अर्पित कर सकते हैं, जिन्होंने हंसते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी और उफ तक नहीं किया.

झुंझुनू में हैं 50,000 से ज्यादा सैनिक
भारतीय सेना में योगदान के लिए झुंझुनू जिले का देश में अव्वल नंबर है. वर्तमान में इस जिले के करीब 50 हजार जवान सेना या अन्य बलों में कार्यरत हैं. वहीं 70 हजार भूतपूर्व सैनिक हैं. आजादी के बाद भारतीय सेना की ओर से राष्ट्र की सीमा की रक्षा करते हुए यहां के 422 जवान शहीद हो चुके हैं, जो पूरे देश में किसी एक जिले से सर्वाधिक है. कारगिल युद्ध के बाद से अब तक झुंझुनू जिले के 114 से अधिक सैनिक सीमा पर शहीद हो चुके हैं.

रही है पुरानी परंपरा

झुंझुनू जिले में प्रारम्भ से ही सेना में भर्ती होने की परम्परा रही है और यहां गांवों में हर घर में एक व्यक्ति सैनिक होता था. सेना के प्रति यहां के लगाव के कारण अंग्रेजों ने यहां 'शेखावाटी ब्रिगेड' की स्थापना कर सैनिक छावनी बनाई थी. जिले के वीर जवानों को उनके शौर्यपूर्ण कारनामों के लिए समय-समय पर भारत सरकार की ओर से विभिन्न अलंकरणों से नवाजा जाता रहा है.

अब तक इस जिले के कुल 117 सैनिकों को वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. जो पूरे देश में किसी एक जिले से सर्वाधिक हैं.

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