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12वीं पुण्यतिथि पर फील्ड मार्शल रहे सैम मानेकशॉ को देश ने किया याद - Field Marshal SHFJ Manekshaw

भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ अपनी निडरता और बहादुरी के लिए जाने जाते थे. यही वजह है कि लोगों ने उन्हें 'सैम बहादुर' नाम भी दिया. वो भारतीय सेना के पहले ऐसे जनरल थे जिनको प्रमोट कर फील्ड मार्शल की रैंक दी गई थी. आज उनकी 12वीं पुण्यतिथि है. नैतिक साहस और अनुकरणीय नेतृत्व गुणों के साथ, वे हमेशा एक प्रेरणास्रोत रहेंगे. पढ़िए फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के बारे में, ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विस्तृत रिपोर्ट में...

12th death anniversary of manekshaw
सैम मानेकशॉ की 12वीं पुण्यतिथि

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Published : Jun 27, 2020, 10:22 PM IST

चेन्नई : सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में देश ने साल 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध जीता था. आज तमिलनाडु के वेलिंगटन में फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशॉ की 12वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया गया.

सैम मानेकशॉ को उनकी सेवाओं और वीरता के लिए सैन्य क्रॉस, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का जन्म 03 अप्रैल 1914 को अमृतसर के पारसी परिवार में हुआ था. द्वितीय विश्व युद्ध में एक युवा कप्तान के रूप में बर्मा अभियान के दौरान सेतांग नदी के तट पर जापानियों से लोहा लेते हुए वे गम्भीर रूप से घायल हो गए थे.

उनकी इस वीरता को देखते हुए उन्हें सैन्य क्रॉस से सम्मानित किया गया था. 1946-47 के दौरान फील्ड मार्शल मानेकशॉ को सैन्य संचालन निदेशालय में तैनात किया गया. उन्होंने जम्मू और कश्मीर के विभाजन से जुड़े और अन्य सैन्य अभियानों से संबंधित विभिन्न मुद्दों की योजना बनाई.

1962 के विभिन्न ऑपरेशनों के दौरान कोर कमांडर के तौर पर उन्होंने नेतृत्व किया. वह महू के इन्फैंट्री स्कूल और वेलिंगटन के डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज के कमांडेंट भी थे. उन्हें 1968 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने 08 जनवरी 1969 को सेनाध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला. उन्होंने 1971 में सेना का नेतृत्व करते हुए भारत की सबसे बड़ी सैन्य टुकड़ी को सफलतापूर्वक तैयार किया, जिसके परिणामस्वरूप 13 दिनों के भीतर बांग्लादेश का निर्माण हुआ. उन्हें 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.

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सशस्त्र बलों और राष्ट्र के लिए किए गए उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए उन्हें 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया. चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद वे सेवानिवृत्त हुए. 1973 में ही सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे तमिलनाडु के वेलिंगटन में बस गए. उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल में 27 जून 2008 को हुई.

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