हैदराबाद : 90 के दशक से बिहार में अपराधियों की घुसपैठ राजनीति में हुई. इसके बाद साल दर साल राजनीति में इनकी दखलअंदाजी बढ़ती गई. 2005 में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार आने के बाद भले ही बिहार के ज्यादातर बड़े अपराधी सलाखों के पीछे हैं या फिर राजनीति में अलग-थलग पड़ चुके हैं, मगर सत्ता की चकाचौंध इन्हें राजनीति को छोड़ने नहीं दे रही. यही कारण है कि अपनी पत्नी और बेटे-बेटियों के जरिए राजनीति से जुड़े रहते हैं. राजनीति दल भी इनके मोह को पूरी तरह त्याग नहीं पाए हैं और इनको टिकट दे रहे हैं.
इस बार 2010 और 2015 की तुलना में ज्यादा संख्या में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को राजनीतिक दलों ने टिकट दिया है. खास बात यह है आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट देने से सुशासन बाबू नीतीश कुमार भी खुद को नहीं रोक पाए. हां, लालू यादव की पार्टी राजद से पीछे जरूर हैं. यही हाल भाजपा का भी है. उसने भी कई आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट दिया है. आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को टिकट देने के मामले में राजद अव्वल है. अब देखना यह है कि बिहार की जनता अपराधियों को माननीय बनने का मौका देती है या फिर राजनीतिक दलों के टिकट देने की गलती की सजा देती है.
पहले चरण की 71 सीटों पर कुल 327 उम्मीदवार दागी
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के पहले चरण की 71 सीटों के लिए कुल 1066 उम्मीदवार मैदान में थे. निर्वाचन आयोग के अनुसार पहले चरण में कुल 327 प्रत्याशियों का आपराधिक जीवन रहा है. सबसे अधिक गरुवा में 10 उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के चुनाव मैदान में थे. इनमें से 104 उम्मीदवारों ने अपने आपराधिक जीवन की जानकारी अखबारों में प्रकाशित नहीं कराई. चुनाव आयोग ने सख्त निर्देश जारी किया था कि हर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को निजी तौर पर और उन्हें टिकट देने वाले राजनीतिक दलों को भी मतदान से पहले तीन बार अखबारों में इनकी पूरी जानकारी छपवानी होगी. पहले चरण में राजद के 41 उम्मीदवारों में से 30 दागी थे. भाजपा के 29 उम्मीदवारों में से 21, लोजपा के 41 उम्मीदवारों में से 24, कांग्रेस के 21 उम्मीदवारों में से 12, जदयू के 35 उम्मीदवारों में से 15 उम्मीदवार और बीएसपी के 26 उम्मीदवारों में से आठ ने अपने हलफनामों में खुद के खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की थी.
दूसरे चरण की 94 सीटों पर 502 उम्मीदवार दागी
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए मैदान में 1463 उम्मीदवार डटे हुए हैं. दूसरे चरण की 94 सीटों पर खड़े 1463 उम्मीदवारों में से 502 प्रत्याशियों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है. इनमें से 389 उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों की जानकारी दी है. यह गंभीर मामले गैर जमानती अपराध हैं और इसमें पांच साल से उससे अधिक की सजा हो सकती है. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, आरजेडी के 56 उम्मीदवारों में से 64 प्रतिशत यानी 36 उम्मीदवारों ने चुनावी हलफनामे में अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है और 28 उम्मीदवारों ने गंभीर आपराधिक मामले बताए हैं.
वहीं बीजेपी के 46 उम्मीदवारों में से 29 ने आपराधिक मामले की जानकारी दी है. रिपोर्ट के अनुसार, 20 प्रत्याशियों ने गंभीर आपराधिक मामले अपने हलफनामे में बताए हैं. इधर, एलजेपी के 52 उम्मीदवारों में से 28 ने आपराधिक मामले व 24 ने गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की है. कांग्रेस की बात की जाए, तो इसके 24 उम्मीदवारों में से 14 ने, बीएसपी के 33 में से 16 ने, जेडीयू के 43 में से 20 उम्मीदवारों ने अपने-अपने हलफनामे में आपराधिक मामलों की घोषणा की है. रिपोर्ट के अनुसार, बीएसपी के 14, कांग्रेस के 10 और जेडीयू के 15 उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की है. रिपोर्ट के अनुसार, 49 उम्मीदवारों ने अपने हलफनामे में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की घोषणा की है, जबकि इनमें से चार ने कहा है कि उनके खिलाफ बलात्कार से संबंधित मामले चल रहे हैं.
हलफनामे से मिली जानकारी के अनुसार, 32 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या और 143 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या के प्रयास के मामले लंबित हैं. 94 सीटों में से 84 सीट पर 'रेड अलर्ट' निर्वाचन क्षेत्र घोषित किया गया है. दरअसल, रेड अलर्ट उन निर्वाचन क्षेत्र को घोषित किया जाता है, जहां से तीन या उससे अधिक ऐसे उम्मीदवार चुनाव मैदान में होते हैं, जो अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा करते हैं.
तीसरे चरण की 78 सीटों पर 371 दागी उम्मीदवार
एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसने बिहार में तीसरे चरण का चुनाव लड़ रहे 1204 उम्मीदवारों में से सभी 1195 के स्व-शपथ पत्रों का विश्लेषण किया. इस दौरान उसने पाया कि 371 (31 प्रतिशत) उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. तीसरे चरण के मतदान में राजद के 44 उम्मीदवारों में से 32, भाजपा के 34 उम्मीदवारों में से 26, कांग्रेस के 25 उम्मीदवारों में से 19, एलजेपी के 42 उम्मीदवारों में से 18, जेडीयू के 37 उम्मीदवारों में से 21और बीएसपी के 9 में से 5 उम्मीदवारों ने हलफनामों में अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं. विश्लेषण किए गए सभी उम्मीदवारों में से 24 फीसदी (282) प्रत्याशियों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए, जिनमें बलात्कार, हत्या, हमला और अपहरण शामिल थे. एडीआर के अनुसार बिहार में चुनाव लड़ रही सभी राजनीतिक दलों में से केवल जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और सीपीआई (एम-एल) ने ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी वेबसाइट पर आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों के संबंध में विस्तृत जानकारी अपलोड की है.
दागियों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2020 में जारी किए गए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2020 में जारी निर्देशों के अनुसार, सभी दलों को यह बताना होगा कि पार्टी ने दागी नेता को अपना उम्मीदवार क्यों बनाया है? दूसरी ओर, उम्मीदवारों को पार्टी के उम्मीदवार घोषित होने के 48 घंटे के भीतर स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में अपना पूरा आपराधिक इतिहास प्रकाशित करना होगा और 72 घंटों के भीतर चुनाव आयोग को सारी जानकारी देनी होगी? अदालत ने समाचार पत्रों में प्रकाशन के लिए बिंदु आकार भी तय किया है, जो कम से कम 12 अंक होगा. इसके अलावा, उन्हें सोशल मीडिया हैंडल पर भी यह सारी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बिहार में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. चुनाव आयोग ने राज्य के पंजीकृत 150 दलों को अदालत के आदेश के बारे में एक पत्र भी भेजा है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है. हालांकि, बिहार चुनाव में इसकी अवहेलना खूब देखने को मिली है.