वर्तमान समय में रक्षा बंधन की ही तरह भाई दूज के पर्व भी लोकप्रिय होता जा रहा है. दोनों ही पर्व भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित हैं. इसलिए आज के समय में भाई दूज के पर्व की लोकप्रियता कम नहीं है. दौड़भाग वाली जिंदगी और बदलते परिवेश में समय के अभाव में हर एक त्योहार मनाने के लिए लोग अपने घर परिवार व रिश्तेदारों के पास नहीं जा पाते हैं, फिर भी लोग रिश्ते निभाने की भरपूर कोशिश करते रहते हैं. आज भी कई जगहों पर लोग इस दिन अपने बहनों के घर जाकर टीका करवाया करते हैं. इसीलिए यह परंपरा आज भी जीवित है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मथुरा में लोग यमुना में स्नान के लिए आज भी आते हैं और इस दिन काफी भीड़ उमड़ती है.
इस पर्व को लेकर हमारे हिन्दू धर्म में कई सारी पौराणिक तथा ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन भाई दूज के पर्व को लेकर जो कहानी सर्वाधिक प्रचलित है, उसमें मृत्युलोक के स्वामी यमराज और उनकी बहन यमुना से संबंधित हैं. ये दोनों कथाएं भाई बहन के प्रेम को प्रदर्शित करती हैं.
यमराज और यमुना की कहानी (Story of Yamuna and Yamraj)
पहली धार्मिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं. पुत्र का नाम यमराज था और पुत्री का नाम यमुना था. यम ने जब अपनी नगरी यमपुरी का निर्माण किया तो उनकी बहन यमुना भी उनके साथ रहने लगीं. यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख काफी दुखी हो जाया करती थीं. इसलिए वह यमपुरी का त्याग कर गोलोक को चली गयीं. यमुना जी अपने भाई यमराज से बहुत अधिक स्नेह करतीं थीं. वह अक्सर अपने घर पर यमराज को आने का निवेदन करती रहती थीं, लेकिन अपने कार्यों में अधिक व्यस्त होने के कारण यमराज कभी अपने बहन के घर नहीं जा पाते थे. ऐसा कहा जाता है कि एक बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यमुना ने अपने भाई यमराज को घर आने के लिए निमंत्रित कर वचनबद्ध कर लिया. अपनी बहन को दिए गए वचन को निभाने के लिए राजी हो गये और यमुना के घर जाने से पहले उन्होंने नर्क में आने वाले सभी जीवों को मुक्त कर दिया.
कहा जाता है कि जैसे ही वह अपने बहन के घर पहुंचे तो उस दिन उनकी बहन यमुना ने अपने भाई यमराज को टीका व चंदन लगाकर सबसे पहले उनकी आरती उतारी. उसके बाद उनको अपने घर में बैठाकर कई प्रकार के पकवानों को अपने भाई के सामने परोस दिया. यमराज ने अपनी बहन के द्वारा परोसी गयी हर एक सामग्री को बहुच चाव से खाया. बहन की आवभगत से खुश होकर यमराज ने अपनी बहन से कोई वरदान मांगने को कहा. इस पर बहन यमुना ने कहा कि हे भद्र आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करें और मुझे ऐसे ही आपके आदर सत्कार का मौका मिलता रहे. साथ ही ऐसा वरदान दीजिए जिससे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जो भी बहन अपने भाई का आदर सत्कार करे और जो भाई अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करे, उसे कभी भी आपका भय ना दिखे. उनकी इस बात को यमराज ने स्वीकार करते हुए तथास्तु कहकर यमलोक की ओर चले गए. तब से हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है. कुछ लोग इसे यम द्वितीया भी कहते हैं.