भरतपुर : भारतीय संस्कृति में भाई दूज का पर्व भाई और बहन के अटूट निश्छल प्रेम का प्रतीक माना जाता है. इस पर्व पर भाई-बहन एक दूजे के सुख सौभाग्य की कामना करते हैं. आज से 260 वर्ष पूर्व सन् 1761 में भाई-बहन के ऐसे ही निश्छल प्रेम का उदाहरण भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल (Maharaja Surajmal) ने पेश किया था. महाराजा सूरजमल ने आगरा के मुस्लिम शासक की कैद से ब्राह्मण कन्या को आजाद कराकर उसकी इज्जत बचाई थी. भाई दूज (Bhai Dooj) के अवसर पर पढ़िए भाई-बहन के अनूठे रिश्ते की कहानी.
ब्राह्मण कन्या को कर लिया था कैद
इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि वर्ष 1760 में आगरा में मोहम्मद शाह (Mohammad Shah) का शासन था. मोहम्मद शाह ने अपने सिपहसालार, रिश्तेदारों को हिन्दू धर्म की शिक्षा देने के लिए एक ब्राह्मण परिवार को साथ रखा था. एक दिन ब्राह्मण की बेटी पर मोहम्मद शाह की नजर पड़ी. मोहम्मद शाह ने ब्राह्मण से उसकी बेटी से निकाह करने की बात कही. ब्राह्मण ने अपनी बेटी से पूछने की बात कही, लेकिन मोहम्मद शाह ने ब्राह्मण की बेटी को कैद (नजरबंद) करवा लिया.
ब्राह्मण कन्या ने भेजा पत्र
ब्राह्मण कन्या को जब मोहम्मद शाह (Mohammad Shah) ने कैद कर लिया तो ब्राह्मण और उसकी बेटी थोड़े घबराए. जब मोहम्मद शाह ने ब्राह्मण की बेटी से निकाह करने की बात कही तो उसने चतुराई दिखाते हुए शाह से कहा कि उसका 4 महीने का व्रत है, उसके बाद वो हर फैसला मानेगी. एक दिन जब युवती के कमरे के पास सफाई करने वाली महिला आई तो ब्राह्मण युवती ने पेन और कागज मंगाया. युवती ने महाराजा सूरजमल (Maharaja Surajmal) को भाई का सम्बोधन कर पत्र लिखा. पत्र में महाराजा सूरजमल से मोहम्मद शाह की ओर से जबरदस्ती निकाह करने की बात बताकर अपनी इज्जत बचाने की गुजारिश की.