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MP : बच्चों पर ममता लुटा रहीं 'Scooty Wali Madam', रोजाना स्कूल करती हैं पिक एंड ड्रॉप - aruna mahale picks drops children

मध्य प्रदेश के बैतूल के भैंसदेही में एक मैडम बच्चों के लिए मसीहा बनकर आई हैं. यह शिक्षिका अरुणा महाले हैं. अरुणा हर दिन स्कूटी से अपने स्कूल के बच्चों को स्कूल ले जाने खुद उनके घर जाती हैं और छुट्टी होने के बाद उन्हें वापस घर तक छोड़कर आती हैं. गांव के लोग उन्हें स्कूटी वाली मैडम (Scooty Wali Madam) के नाम से जानते हैं. अरुणा महाले पिछले 7 साल से ये काम करती आ रही हैं. इसके अलावा वह बच्चों को रबड़ पेंसिल और कॉपी-किताब भी खरीद कर देती हैं.

Betul Scooty wali madam
बैतूल मैडम अरुणा महाले

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Published : Aug 6, 2022, 1:18 PM IST

बैतूल।आदिवासी अंचल बैतूल के भैंसदेही में ऐसे कई दुर्गम इलाके हैं जहां बच्चों को स्कूल आने जाने में काफी जोखिम उठाने पड़ते हैं. इससे साल दर साल स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार घट रही है. लेकिन भैंसदेही का एक स्कूल ऐसा भी है जहां लगभग बन्द होने की कगार पर आ चुके एक सरकारी स्कूल में दोबारा बच्चों की किलकरियां गूंजने लगी और इस असम्भव को सम्भव कर दिखाया स्कूटी वाली मैडम ने. आपने ऐसी टीचर पहले कभी नहीं देखी होगी. आखिर कौन हैं ये स्कूटी वाली मैडम (Scooty Wali Madam) और कैसे ये सैकड़ों बच्चों के लिए एक फरिश्ते से कम नहीं. तो आपको बता दें कि मैडम का नाम अरुणा महाले है.

बच्चों का भविष्य संवार रही बैतूल 'स्कूटी वाली मैडम' अरुणा महाले

रोजाना घर लेने जाती हैं बच्चों को: आम तौर पर बच्चों को स्कूल तक लाने और वापस ले जाने का काम उनके परिजनों के जिम्मे होता है या फिर बच्चे खुद ही अपने स्कूल आते जाते हैं. लेकिन भैंसदेही की एक ऐसी अनोखी टीचर हैं जो हर दिन अपने स्कूल के बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने खुद उनके घर तक जाती हैं. स्कूल की छुट्टी होने के बाद उन्हें वापस घर तक छोड़कर आती हैं. इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो यह सच है. अरुणा महाले यानी स्कूटी वाली मैडम पिछले 7 साल से ये काम करती आ रही हैं. लेकिन क्यों करती हैं ऐसा जानिये इसके पीछे की वजह.

स्कूल बन्द होने की कगार पर आ गया था स्कूल: अरुणा महाले बैतूल जिले में भैंसदेही विकासखंड के ग्राम धूड़िया में पदस्थ हैं. दुर्गम इलाका होने की वजह से 7 साल पहले स्कूल में केवल 10 बच्चे रह गए थे. स्कूल बन्द होने की कगार पर आ चुका था. ये देखकर अरुणा ने कुछ नया करने की ठानी और अपनी स्कूटी की मदद से बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर लाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे करके अरुणा ने उन सभी बच्चों के पिक एंड ड्राप का काम शुरू कर दिया जो स्कूल नहीं आ रहे थे. नतीजा ये हुआ कि आज इस स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़कर 85 हो गई है. शासन ने इस स्कूल को बन्द करने का फैसला वापस ले लिया है.

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बच्चों पर लुटा रहीं ममता: अरुणा रोजाना सुबह अपनी स्कूटी लेकर कच्चे-पक्के रास्तों से होते हुए छोटे छोटे मजरे टोलों तक पहुंचकर बच्चों को अपने साथ स्कूल लाती हैं. और फिर उन्हें वापस भी छोड़ने जाती हैं. जिससे उनका काफी समय और पैसा खर्च होता है. लेकिन अरुणा की अपनी कोई संतान नहीं है इसलिए वो हर बच्चे पर अपनी ममता लुटा रही हैं. बच्चों और उनके पालकों के लिए तो स्कूटी वाली मैडम एक फरिश्ते की तरह हैं.

बच्चों को खरीदकर देती हैं रबड़, पेंसिल, कॉपी-किताब:शिक्षिका अरुणा महाले ने अपने स्कूल में एक अतिथि शिक्षक भी रखा है. जिसे राशि का भुगतान वह स्वयं अपनी तनख्वाह से करती हैं. इतना ही नहीं स्कूल में अगर किसी बच्चे के पास रबड़ पेंसिल या कॉपी-किताब ना हो तो उन बच्चों को भी वह खरीद कर देती हैं. इन 7 सालों में कभी भी अरुणा महाले ने बच्चों के परिवार से किसी प्रकार की कोई राशि नहीं ली है. स्कूटी वाली मैडम अरुणा बच्चों के जीवन संवारने के लिए जो कुछ कर रही हैं वो किसी सपने की तरह है. आज के दौर में ऐसा शिक्षक मिलना बहुत मुश्किल है. अगर समाज मे ऐसे और भी शिक्षक हों तो शायद ही कोई बच्चा शिक्षा से महरूम रह पाएगा.
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