नागपुर (महाराष्ट्र): नागपुर के विकलांग उद्यमी जय सिंह चव्हाण ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गलत चिकित्सा के कारण शारीरिक रूप से विकलांग होने के बावजूद खुली आंखों से देखे गए सपनों ने मुझे कभी भी बैठने नहीं दिया, बल्कि उड़ने की प्रेरणा दी. उन्हें केंद्र सरकार के सामाजिक और न्याय विभाग द्वारा देश में सर्वश्रेष्ठ विकलांग व्यक्ति के रूप में घोषित किया गया है और 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पुरस्कार प्रदान किया जाएगा. नागपुर से हमारे प्रतिनिधि धनंजय टिपले ने उनसे बातचीत की और आज उनकी सफलता का राज जानने की कोशिश की.
दोनों पैरों के बिना भी जयसिंह चव्हाण की लगन और कुछ कर गुजरने की जिद ने उन्हें चैन से बैठने नहीं दिया. शुरुआत में उन्होंने घर-घर जाकर साबुन बेचना शुरू किया. यहां से शुरू हुआ उनका सफर आज करोड़ों की इंडस्ट्री बन चुका है. आज उनकी गिनती नागपुर में एक सफल उद्यमी के रूप में होती है. राष्ट्रीय विकलांग दिवस के अवसर पर हमने उनके संघर्ष को समझने की कोशिश की है.
नागपुर के जय सिंह चव्हाण ने एक सफल उद्यमी के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. बचपन में गलत पोलियो का टीका दिए जाने के कारण जयसिंह कई तरह की शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हो गए. धीरे-धीरे इन बीमारियों से पार पाते हुए वे आज एक बड़े उद्यमी के रूप में काम कर रहे हैं. उनके काम के लिए उन्हें सरकार द्वारा विभिन्न पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है.
बचपन में दी गई एक गलत खुराक ने जयसिंह चव्हाण को हाथ, पैर और सिर में शारीरिक बीमारियों के साथ छोड़ दिया. इससे वह पूरी तरह से परेशान हो गए. बेहद गरीब परिवार में जन्मे जय सिंह नागपुर में एक छोटी सी चाली में रहते थे. शारीरिक दुर्बलता के कारण वे अन्यत्र नहीं जा रहे थे. धीरे-धीरे, उन्होंने अपना मन बना लिया और 18 साल की उम्र में 'अपना ही काम करूंगा' की सोच के साथ व्यवसाय शुरू किया. सबसे पहले उन्होंने साबुन बेचना शुरू किया.
हमारे पास एक लोकप्रिय कहावत है 'इच्छा का एक तरीका है'. यदि कोई नई आशा देना चाहता है तो इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है. इसे साकार करते हुए जयसिंह चव्हाण ने अपनी शारीरिक व्याधियों में भी सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए शून्य से एक संसार रचा है. कभी-कभी वह सिरों को पूरा करने के लिए किसी भी कार्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाता था. हालांकि शारीरिक अक्षमता के कारण उनके लिए काम मिलना भी मुश्किल था. हालांकि इस बीमारी को अपने जीवन की कमजोरी न बनने देकर जयसिंह चव्हाण ने करोड़पति बनने का सफर तय किया है.