नई दिल्ली :यूक्रेन के रूस पर हमले को लेकर रूस की सैन्य रणनीति को लेकर भ्रम की स्थिति बनी थी. जबकि रूसी सैन्य रणनीति मोटे तौर पर दो तरह की है. इसमें एक दुश्मन पर निगाह रखने के साथ ही उसे भ्रमित करने का रुख अपनाए रखना, जिससे अंतिम मिनट तक विरोधी महज अनुमान लगाते रहे. अब जबकि रूस ने यूक्रेन पर हमले तेज कर दिए हैं ऐसे में या तो रूस यूक्रेन पर कब्जा कर लेता है और रूस प्रभुत्व वाले डोनबास इलाके पर कब्जा कर लेता है या कीव में एक सरकार स्थापित कर सकता है जो मॉस्को के लिए उदार हो.
पश्चिमी शक्तियों के बीच रूस के द्वारा यूक्रेन पर हमले करने की बहस चल ही रही थी कि इसी बीच रूस ने सुबह 5 बजे ही यूक्रेन की राजधानी कीव के अलावा खार्किव और ओडेसा में बड़े पैमाने पर अचानक हमला बोल दिया. हालांकि हमले को लेकर अमेरिका पहले से ही इसे तय मान रहा था. जबकि कई पश्चिमी शक्तियों का मानना था की रूस सिर्फ अड़ियलपन की नीति का पालन कर रहा था और यूक्रेन को तीन तरफ से घेरने वाली अपनी सेना की भारी तैनाती के बावजूद एक चौतरफा युद्ध शुरू नहीं करेगा.
1948-49 के बर्लिन संकट के दौरान, सोवियत प्रीमियर जोसेफ स्टालिन पश्चिमी शक्तियों पर अनुमान लगाते रहे कि द्वितीय विश्व युद्ध जीतने के ठीक बाद बर्लिन पर सोवियत रुख क्या था - चाहे बर्लिन एक एकीकृत जर्मन राजधानी हो या विभाजित हो विजेताओं के बीच प्रभाव के क्षेत्रों में? और फिर, 1949 में अचानक, स्टालिन ने बर्लिन की बैरिकेडिंग का आदेश दिया ताकि इसे पश्चिमी शक्तियों से अवरुद्ध किया जा सके. यद्यपि रूस अपनी कमजोरियों और पूंजीवादी गठबंधन की संयुक्त ताकत के कारण हार गया. हालांकि बर्लिन संकट ने शीत युद्ध की शुरुआत करने वाली सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक के रूप में कार्य किया. वहीं 1948-49 में प्रसिद्ध 'बर्लिन एयरलिफ्ट' प्रयास का सहारा लेकर पश्चिमी सहयोगियों की बर्लिन तक निरंतर पहुंच सोवियत संघ को लगातार मारती रही और बाद में पश्चिम जर्मनी ने नाटो की ओर रुख किया.