पटना :बिहार में हुए एक नरसंहार ने पूरे देश के साथ ही राजनीति में भी हलचलें भी बढ़ा दी थी.इस जघन्य अपराध से देश की सत्ता और तस्वीर तो बदल गई लेकिन गांव की सीरत आज तक नहीं बदली है. पटना जिले के बाढ़ विधानसभा क्षेत्र के बेलछी गांव में 27 मई 1977 की सुबह गांव में ही एक समाज के लोगों ने दलित समाज के एक दर्जन लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया था. फिर उसे एक जगह इकट्ठा कर जला दिया था.
बेलछी नरसंहार को याद कर सिहर उठे जनक पासवान: पीड़ित और घटना के प्रत्यक्षदर्शी जनक पासवान ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बेलछी नरसंहार को याद किया. इस दौरान उनकी आंखें भर आईं. उन्होंने कहा कि 1977 में वे काफी यंग थे. पूरी घटना उनके आंखों के सामने हुई थी. यह घटना एक दूसरे से खुद को ऊंचा दिखाने की थी. एक जमीन के टुकड़े और खेतों में पटवन को लेकर जघन्य नरसंहार जैसी वारदात को अंजाम दिया गया.
"मामला एक दूसरे से खुदको बड़ा बताने का था. खेत के पटवन और एक कट्ठा जमीन को लेकर शुरू हुआ विवाद 11 लोगों की मौत से शांत हुआ. लोगों को घर से भागने का भी मौका नहीं मिला. 60 से 70 लोगों ने घर को घेर लिया और सभी पर गोलियों की बौछार कर दी. फिर 11 लोगों को एक जगह इकट्ठा कर पेट्रोल डीजल डालकर आग के हवाले कर दिया."- जनक पासवान, पीड़ित
डर से लोगों ने गांव से किया पलायन: घटना के बाद डर के कारण दूसरे समाज के लोगों ने गांव से पलायन कर लिया था. जब इसकी जानकारी पूर्व प्रधानमंत्री आयरन लेडी इंदिरा गांधी को मिली तो उस वक्त लाव-लश्कर के साथ वे पटना पहुंचीं. 13 अगस्त 1977 को पटना पहुंचने के बाद जब वह घटनास्थल पहुंचना चाहीं तो उस समय रास्ते में गाड़ी जाना बहुत मुश्किल था. साथ ही घनी बारिश हो रही थी, लेकिन इंदिरा गांधी पैदल आगे बढ़ने लगीं.
"मेरे नंदोसी को मारा गया था. रूम में सबको खाने-पीने को बुलाया गया फिर गोली मार दी गई. फिर आग में सभी लाशों को झोंक दिया गया. मेरे घर के दो लोगों की हत्या की गई थी. इंदिरा गांधी घटना के बाद गांव में हाथी पर सवार होकर आई थी. एक सखी (प्रतिभा पाटिल) भी साथ थी. कुछ नहीं कहकर गई थी. बोलीं थी जमीन वापस दिलाएंगे. जमीन दी गई फिर वापस कब्जा कर लिया गया."- सुदमिया देवी, पीड़ित
हाथी पर सवार होकर पहुंचीं थीं इंदिरा गांधी: इंदिरा गांधी के साथ उनका काफ़िला भी साथ चलने लगा. उसी वक़्त एक स्थानीय व्यक्ति से उसका हाथी मंगवाया गया और हाथी में सवार होकर इंदिरा गांधी बेलछी गांव पहुंचीं. जब इंदिरा गांधी बेलछी गांव पहुंचीं तो सैकड़ों की संख्या में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा और इंदिरा गांधी अपने हाथी पर ही बैठी रहीं और पीड़ित परिवार का दर्द सुनकर उनके भी आंखों से आंसू निकल आए. इस दौरान इंदिरा गांधी ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात भी की.
नौकरी और मुआवजे का लगाया गया मरहम:पीड़ित परिवारों को इंदिरा गांधी ने आश्वासन दिया कि हर संभव मदद दी जाएगी और मृतकों का गांव में ही एक स्मारक बनाया जाएगा. गांव में कुछ लोगों को जमीन और पीड़ित के घर से एक व्यक्ति को नौकरी भी मिली, लेकिन आज भी वे लोग उस समय को याद कर सहम उठते हैं.