नंदीग्राम : पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम के एक बाजार की गली में एक ओर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा दूसरी ओर उनके पूर्व सहयोगी और अब पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो चुके शुभेंदु अधिकारी के लगे कट-आउट इलाके में मौजूदा राजनीतिक माहौल को प्रतिबिम्बित करते हैं, जो मुख्यमंत्री बनर्जी के यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से फिर सुर्खियों में है.
बनर्जी और अधिकारी दोनों ही नंदीग्राम आंदोलन के नायक रहे हैं. इस आंदोलन में टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी पथ प्रदर्शक के तौर पर रहीं तो अधिकारी जमीनी स्तर पर उनके सिपहसालार रहे, जो विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के खिलाफ जन रैलियों का आयोजन करते थे. इस एसईजेड में इंडोनेशिया के सलीम समूह द्वारा रसायनिक केंद्र स्थापित किया जाना था.
नंदीग्राम की जमीन ने पश्चिम बंगाल की सियासत में बनर्जी के पांव जमाने में अहम भूमिका निभाई और यहां शुरू हुए आंदोलन से ही उन्होंने सड़कों से सत्ता तक का सफर तय किया.
करीब 14 साल पहले तृणमूल का गढ़ बना नंदीग्राम इस बार 'अपनी दीदी और अपने दादा' के बीच किसी एक का चयन करने को लेकर दुविधा की स्थिति में है. इस बार विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बनर्जी का मुकाबला नंदीग्राम आंदोलन में उनके सिपहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी से होने की संभावना है.
'ममता की घोषणा से बदला नंदीग्राम का परिदृश्य'
हालांकि, भाजपा ने नंदीग्राम से अधिकारी को खड़ा करने संबंधी अभी कोई घोषणा नहीं की है, लेकिन मौजूदा विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिकारी ने चुनौती को स्वीकार करने की इच्छा व्यक्त की है.
नंदीग्राम के कई स्थानीय लोगों को लग रहा था कि उन्हें भुला दिया गया है और उनका तृणमूल से मोहभंग हो गया था, लेकिन बनर्जी के स्वयं को उम्मीदवार घोषित करने से यहां का परिदृश्य अचानक बदल गया है.
भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति (बीयूपीसी) का हिस्सा रहे अनिसुर मंडल ने कहा, 'हम आंदोलन के मुश्किल समय को भूल नहीं सकते, जब वह (बनर्जी) और शुभेंदु दा हमारे रक्षक बने.'