बस्तर: बस्तर दशहरा की शुरुआत आज हरेली तिहार के साथ हो गई है. हरेली पर्व पर पाट जात्रा का रस्म निभाया जाता है. इस रस्म के साथ बस्तर दशहरा की शुरुआत हो गई है. दशहरा शब्द से लोग रावण दहन या फिर राम भगवान के रावण पर विजय को पर्व समझते हैं. हालांकि बस्तर दशहरा में ना तो राम भगवान की पूजा होती है और ना ही रावण का पुतला जलाया जाता है. ये दशहरा देवी मां को समर्पित होता है.
बस्तर दशहरा पर निकलती है मां दंतेश्वरी की रथ यात्रा:बस्तर दशहरा में रथ यात्रा निकाली जाती है. इन रथों पर देवी मां सवार होती हैं. रथ को लकड़ी से तैयार किया जाता है. इसे स्थानीय बोली में ठुरलु खोटला या फिर टीका पाटा कहते हैं. हरेली अमावस्या को माचकोट जंगल से लाई गई लकड़ी की पूजा की जाती है. इस रस्म को पाट जात्रा रस्म कहते हैं. आज बस्तर में पाट जात्रा की रस्म निभाई गई. इसी के साथ बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत हो चुकी है.
हर साल की तरह इस साल भी हरेली अमावस्या के दिन पाट जात्रा रस्म निभाकर बस्तर दशहरा का शुभारंभ किया गया. इस बार बस्तर दशहरा 75 दिनों का नहीं बल्कि 107 दिनों का होगा, जो काफी चुनौतीपूर्ण रहता है. बस्तर दशहरा शांतिपूर्वक निपटने की हम कामना करते हैं.- लखेश्वर बघेल, अध्यक्ष, बस्तर विकास प्राधिकरण
107 दिनों तक मनाया जाएगा ये पर्व:आमतौर पर बस्तर दशहरा पर्व 75 दिनों तक मनाया जाता है. हालांकि पुरुषोत्तम मास होने के कारण ये पर्व 107 दिनों तक मनाया जाएगा. आज पाट जात्रा रस्म के साथ इस पर्व की शुरुआत हुई है. यह रस्म जगदलपुर शहर के दंतेश्वरी मंदिर परिसर के सामने निभाया गया. जगदलपुर शहर से कुछ दूर पर स्थित विशेष गांव बिलोरी से साल के वृक्ष का मजबूत तना लाया जाता है. इस तना को 'ठुरलू खोटला' कहा जाता है.