बस्तर:आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर अपने आप में काफी खास है. बस्तर के रीति रिवाज की अगर हम बात करें तो यहां हर पर्व त्यौहार लोगों को आकर्षित करता है. आदिवासियों की कला, संस्कृति, वेशभूषा, रीति रिवाज पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है.
बस्तर मिट्टी का त्यौहार: भले ही ये संभाग नक्सल प्रभावित हो लेकिन पर्यटक बस्तर को करीब से देखने के लिए खींचे चले आते हैं. पतझड़ के मौसम के बाद आम के पेड़ों में फल फलना शुरू हो जाता है. जैसे ही यह फल बड़ा होता है, बस्तर में आदिवासियों का त्यौहार भी नजदीक आने लगता है. बस्तर के आदिवासी गर्मी के मौसम में माटी त्यौहार मनाते हैं.
माटी त्यौहार काफी खास: बस्तर में इन दिनों माटी त्यौहार की धूम मची हुई है. बस्तर के हर एक ग्राम पंचायत में एक दिन छोड़ कर आदिवासी अलग-अलग दिनों में माटी त्यौहार मनाते हैं. माटी के इस त्यौहार में आदिवासी बेहद ही उत्साह के साथ शामिल होते हैं. बस्तर के लोगों की मानें तो माटी त्यौहार मनाने के 1 दिन पहले रात में जिंदा सुअर को गांव के गुड़ी परिसर में बने सुरंग में डाल दिया जाता है. जिस तरह बस्तर दशहरे में काछन गादी से अनुमति ली जाती है. वैसे ही माटी त्यौहार मनाने के लिए गांव के पुजारी जलनी देवी से अनुमति लेते हैं. ये प्रथा है. अनुमति मिलने के बाद अगले दिन माटी त्यौहार मनाने की तैयारी शुरू की जाती है.
ऐसे मनाया जाता है माटी पर्व:ग्रामीणों के अनुसार माटी त्यौहार मनाने के लिए, अपने घरों से धान की पुड़िया बनाकर पूजा स्थल में लाया जाता है. दोपहर के वक्त पुजारी फसल की पूजा करते हैं. पूजा स्थल पर मुर्गी या अन्य जीव की बलि दी जाती है. जिसके बाद बलि दी गई सभी वस्तुओं को पूजास्थल के पास ही ग्रामीण पकाते हैं. फिर सभी मिलकर उसे खाते भी हैं. पूजा स्थल के पास कीचड़ तैयार किया जाता है. जिसमें ग्रामीण बैठते हैं. पुजारी पूजा की गई धान की पोटली को ग्रामीण के हाथों में सौंपता है. जिसके बाद चिल्लाकर मिट्टी के लेप को अपने शरीर में लगाया जाता है. फिर धान को पोटली को लेकर वापस अपने घर जाया जाता है. अगले दिन ग्रामीण नया फल खाते हैं. जिसमें आम और प्याज का नया फल शामिल होता है. इसके साथ ही पंचायत के एक बड़े तालाब में बच्चे, युवा, पुरुष, महिला, बुजुर्ग पंचायत के मुखिया सभी मिलकर साथ सामूहिक रूप से मछली पकड़ते हैं.