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Basant Panchami 2023 : बसंत पंचमी के दिन बच्चों के लिए जरूर करें यह काम

जिस दिन सरस्वती पूजा की जाती है, आम तौर पर उसी दिन हम अपने बच्चों की पढ़ाई की शुरुआत करते हैं. यह दिन शुभ मुहूर्त वाला दिन होता है. क्या कहते हैं हिंदू शास्त्र, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Jan 20, 2023, 12:56 PM IST

saraswati puja
सरस्वती पूजा

नई दिल्ली : हमारे यहां हिंदू शास्त्रों में किसी भी अच्छे कार्यों की शुरुआत करने से पहले मुहूर्त देखने की प्रथा है. आम तौर पर हम शुभ मुहूर्त में ही अपने कार्यों की शुरुआत करते हैं. अगर ऐसा नहीं करते हैं, तो बहुत संभव है कि आपके मन में दुविधा चलती रहेगी. कम-से-कम उन लोगों के मन में यह जरूर दुविधा रहती है, जो आस्तिक हैं. अनेकों शुभ कार्यों में से सबसे अहम है बच्चों की पढ़ाई-लिखाई. किसी भी व्यक्ति की सफलता का आधार उसका ज्ञान होता है. इसलिए यह जानना बहुत जरूरी है कि बच्चों की पढ़ाई की शुरुआत कब से की जाए.

आपके घर में छोटे बच्चे कब से अपनी पढ़ाई शुरू करेंगे, शास्त्रों में इस पर विस्तार से लिखा गया है. यह मान्यता है कि अगर कोई बच्चा वसंत पंचमी के दिन अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत करता है, तो वह उसके लिए शुभ होता है. कई बार कुंडली के जानकार भी माता-पिता को उनके बच्चों के बारे में ऐसी ही सलाह देते हैं. उनके अनुसार अगर ऐसा करेंगे, तो बच्चों के कुंडली दोषों का निवारण जरूर होगा. हमारा शास्त्र कहता है कि कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में होता है, तो उसके परिणाम भी अच्छे होंगे. इसलिए बच्चों की शिक्षा शुरू करने के लिए माघ शुक्ल पंचमी तिथि सबसे अच्छी तिथि मानी जाती है. यानी उसी दिन जिस दिन हम देवी सरस्वती की पूजा करते हैं.

वेदों में भी कहा गया है कि इसी दिन देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वीणा से स्वर को जन्म दिया था. पुराणों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही माता सरस्वती का जन्म हुआ था. भगवान ब्रह्मा के मुख से वसंत पंचमी के दिन ही ज्ञान की देवी मां सरस्वती प्रकट हुई थीं. इसलिए इस दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा की जाती है. कुछ सालों पहले तक जब गुरू-शिष्य परंपरा अपने यहां प्रचलित थी, तब माता-पिता अपने बच्चों को सरस्वती पूजन के दिन गुरू के पास ले जाते थे. बच्चे पहली बार उसी दिन लिखने की शुरुआत करते थे. वे पहली बार स्लेट पर लिखते थे. और आम तौर पर उनसे सबसे पहले 'ऊँ' शब्द लिखवाया जाता था. मान्यता यह है कि ब्रह्माण्ड में सबसे पहले यही शब्द गूंजा था. इसे ब्रह्माक्षर भी कहा जाता है. इसका उच्चारण करने से ध्यान भी लगता है.

पुराणों में सरस्वती देवी की पूजा के लिए इस मंत्र का जिक्र किया गया है.

'सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।

वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।

विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।'

एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र : ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः

रामचरित मानस में भी लिखा है - वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ'- इसका अर्थ हुआ कि अक्षर, शब्द, अर्थ और छंद का ज्ञान देने वाली देवी सरस्वती तथा मंगलकर्ता विनायक की मैं वंदना करता हूं.

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