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बुलंद हौसलों की मिसाल थे गुलाम भारत के 'तिलक' और 'आजाद', जानिए इनके कुछ दिलचस्प राज

भारत की आजादी के दो मतवाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और शेर दिल चंद्रशेखर आजाद 21वीं सदी में भी हर भारतीय के दिलों में बसते हैं. तभी तो जन्म दोनों महापुरुषों का जिक्र आता है, तो जिंदादिली का जो भाव दिल में आता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.

Chandra Shekhar Azad, Bal Gangadhar Tilak Birth Anniversary
बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद

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Published : Jul 23, 2021, 6:01 AM IST

हैदराबाद: 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा' व 'दुश्मन की गोलियों का करेंगे सामना, आजाद ही रहे हैं, आजाद रहेंगे' ये दोनों ही नारे आज भी किसी भी इंसान को जोशीले बना देते हैं, जितना तब जब भारत गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था. देश भले ही पराधीन था पर भारत मां के दोनों वीर सपूतों क्रमश: बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद ने अपने उक्त नारों से अपनी स्वतंत्र सोच के बारे में ब्रितानी हुकूमत को रुबरू कर दिया था.

इन दोनों ही सपूतों के कारनामों के डर से अंग्रेज कांपते थे. पर क्या आपको पता है कि आजाद भारत के लिए कांतिकारी भाव से ओतप्रोत ​लोकमान्य तिलक को समाज सुधारक, दार्शनिक, प्रखर चिंतक, शिक्षक और पत्रकार के तौर पर भी जाना जाता है. युवा तुर्क व जोशीले चंद्रशेखर यारों के यार और बेहद ही शेर-दिल क्रांतिकारी थे. आज दोनों ही महापुरुषों की जयंती पर आइए जानते हैं इनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को...

भारत मां के वीर सपूत चंद्रशेखर तिवारी जो बाद में आजाद के उप नाम से देशवासियों ​के दिलों पर राज करने लगे, उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव (अब चंद्रशेखर आजाद नगर) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उसके बाद बेहद कम उम्र में ही उन्होंने अपने परिजनों को अपने देश प्रेम की भावना के बारे में बता दिया था. देश की आजादी के यज्ञ में मात्र 24 साल में अपनी प्राणों की आहुति देने वाले आजाद की 2 ख्वाहिशें थीं, जो कभी पूरी न हो सकीं. उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश देश की आजादी की तो पूरी हुई, लेकिन उनके जीते-जी नहीं.

आजाद की पहली ख्वाहिश

कहते हैं कि देश को आजाद कराने के लिए चंद्रशेखर रूस जाकर स्टालिन से मिलना चाहते थे. उन्होंने अपने जानने वालों से यह बात कही भी थी कि खुद स्टालिन ने उन्हें बुलाया है. लेकिन रूस की यात्रा के लिए 1200 रुपये की जरूरत थी, जो उनके पास नहीं थे. उस समय 1200 रुपये बड़ी रकम हुआ करती थी. वह इन रुपयों का इंतजाम कर पाते, उसके पहले ही शहीद हो गए.

दूसरी इच्छा थी भगत सिंह से जुड़ी

चंद्रशेखर आजाद की दूसरी ख्वाहिश थी अपने साथी क्रांतिकारी भगत सिंह को फांसी से बचाना. इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की और बहुत लोगों से मिले भी, लेकिन उनकी शहादत के एक महीने के भीतर ही उनके साथी भगत सिंह को भी फांसी दे दी गई.

यारों के यार थे आजाद

चंद्रशेखर आजाद दोस्तों पर जान भी न्योछावर करने को तैयार रहते थे. उनके एक दोस्त का परिवार उन दिनों आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. जब यह बात चंद्रशेखर को पता चली तो वह पुलिस के सामने सरेंडर को तैयार हो गए ताकि उनके ऊपर रखी गई इनाम की राशि दोस्त को मिल सके और उनका गुजर-बसर सही से हो सके.

प्रयागराज के आजाद पार्क में चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा

चंद्रशेखर तिवारी वाराणसी में बने 'आजाद'

बात साल 1921 की है जब जलियावाला बाग की घटना देशवासियों के अंदर जबरदस्त आक्रोश भर दिया था. गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया था. क्रांतिकारियों के गढ़ बनारस में छात्रों का एक गुट विदेशी कपड़ों की दुकान के बाहर प्रदर्शन कर रहा था. तभी वहां पहुंची पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया. लहूलुहान साथियों को देख एक 15 साल के बालक का खून खौल उठा और आव न देखा ताव दे मारा एक दारोगा के सिर पर पत्थर.

ये बालक कोई और नहीं आजाद ही थे. आजाद पकड़े गए और उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो उन्होंने अपने परिचय में मां का नाम धरती, पिता का नाम स्वतंत्रता और घर जेल बताया था. मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई. जेल से बाहर आने के बाद उनकी बहादुरी के चर्चे पूरे बनारस में थे. इसी के बाद बनारस के ज्ञानवापी में हुई एक सभा में चंद्रशेखर तिवारी का नामकरण चंद्रशेखर आजाद किया गया.

आजाद ने कहा था 'नहीं आऊंगा जिंदा हाथ'

आजाद की अंतिम मुठभेड़ के बारे में सर्वविदित है कि एक बार स्वतंत्रता सेनानियों की बैठक में उन्होंने कहा था कि अंग्रेज कभी मुझे जिंदा नहीं पकड़ सकते हैं. हुआ भी ऐसा ही जब तत्कालीन इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में उन्हें अंग्रेजों ने 27 फरवरी 1931 को घेरा तो आजाद ने पहले जमकर मुकाबला किया. लेकिन जब आजाद के पास आखिरी गोली बची, तो उन्होंने अपनी कनपटी पर पिस्तौल से गोली चला दी और वीरगति को प्राप्त हुए.

यहां से आजाद ने बच्चे बच्चे के अंदर आजादी का वो बीज बोया जिसे अंग्रेज कभी जीते जी दबा नहीं सकते थे. आजाद की बातें और उनका खुद को शहीद कर देना ही उनके आजादी पसंद होने का प्रमाण था. आजाद का खौफ अंग्रेजों में इस कदर था कि जब आजाद मृत पड़े थे तब भी अंग्रेज उनके पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. जब उन्होंने तसल्ली कर ली कि वो मृत हो चुके हैं तब अंग्रेज उनके पास गए.

इतिहास में गलत ढंग से पेश किए गए लोकमान्य तिलक

23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (अब रत्नागिरी) के चिखली गांव में जन्मे बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य तिलक के नाम से भी जाना जाता है. कई इतिहासकारों ने उन्हें पुरातनपंथी, हिंसा का समर्थक, एक धर्म विशेष से नफरत करने वाले सांप्रदायिक व्यक्ति साबित करने की कोशिश की, जो कि सरासर गलत है. लोकमान्य तिलक जिस राष्ट्र का सपना देख रहे थे वह बहुलतावादी मिश्रित राष्ट्र का था, न कि केवल हिंदुओं का राष्ट्र था.

उनका दर्शन आर्दशों से संचालित था. उन्हें सांप्रादायिक कहा गया, लेकिन असल में वह उन पहले नेताओं में से थे. जिन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए सांप्रदायिक विभाजनों को समाप्त करने की वकालत की. लोगों को देशप्रेम का मतलब समझाने वाले तिलक के बारे में कुछ लोग कहते हैं कि वे हिंसा में यकीन रखते थे, लेकिन उन्होंने ही पहली बार अहिंसक राजनीति की अपील की.

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

सकारात्मक सोच के क्रांतिकारी

उन्हें क्रांतिकारी कहा जाता है, जो सच भी है, लेकिन ये सच है कि वे एक सकारात्मक क्रांतिकारी थे, जो बनाने में यकीन रखते थे, न की बिगाड़ने में. महाराष्ट्र में गणेशोत्सव से युवाओं को जोड़कर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला. तिलक समाजसेवी, राजनेता, क्रांतिकारी होने के साथ एक पत्रकार भी थे. कई बार अपने अखबार 'केसरी' में लेख लिखने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा. उन्हें 'लोकमान्य' और हिंदू राष्ट्रवाद का जनक भी कहा जाता है.

बाल गंगाधर तिलक के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  • तिलक बचपन से ही मेधावी छात्र थे और रत्नागिरी गांव से निकलकर आधुनिक कालेज में शिक्षा पाने वाले वे भारतीय पीढ़ी के पहले पढ़े लिखे नेता थे. कुछ समय तक उन्होंने स्कूल और कॉलेज के छात्रों को गणित की भी शिक्षा दी. उन्होंने देश में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए काफी काम किया, इसके लिए उन्होंने दक्कन शिक्षा सोसायटी की भी स्थापना की थी.
  • तिलक बाल विवाह के सख्त खिलाफ थे. साथ ही हिंदू राष्ट्रवाद के पिता कहे जाने वाले तिलक ने हिंदी को पूरे राष्ट्र की भाषा बनाने पर जोर दिया था. तिलक ने समाज सुधारक के रूप में भी कई कदम उठाए थे, वो बाल विवाह के सख्त खिलाफ थे.
  • महाराष्ट्र ही नहीं देश के प्रमुख पर्वों में से एक गणेशोत्सव को सबसे पहले महाराष्ट्र में शुरू करने का श्रेय तिलक को ही है. लोकमान्य को इसके लिए काफी मुश्किल और विरोध का सामना करना पड़ा था. अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने में सार्वजनिक गणेशोत्सव लोगों को एकजुट करने का ज़रिया बना. अंग्रेजों के खिलाफ लोगों की एकजुटता के लिए तिलक ने धार्मिक मार्ग चुना.
  • तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे. साल 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गई. गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल शामिल थे. इन तीनों को लाल, बाल और पाल के नाम से जाना जाने लगा.
  • वर्ष 1920 में मुंबई में लोकमान्य का देहांत हो गया, मरणोपरांत श्रद्धांजलि देते हुए गांधी जी ने उन्हें 'आधुनिक भारत का निर्माता' और पं. जवाहरलाल नेहरू ने 'भारतीय क्रांति का जनक' कहा था.

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