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पुलिस व सेना का जवान बनकर युवा जोड़ों को परेशान करने वाले की जमानत खारिज

खुद को पुलिस या सेना का जवान बताकर युवा जोड़ों को परेशान करने व वसूली करने वाले आरोपी को जम्मू-कश्मीर कोर्ट जमानत देने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते समय गंभीर टिप्पणियां भी कीं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

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Published : Aug 17, 2021, 8:51 PM IST

जम्मू :जम्मू-कश्मीर की एक कोर्ट ने उस आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी जो पुलिस या सेना का जवान बनकर युवा जोड़ों को परेशान करता था. आरोपी, दो अन्य लोगों के साथ झेलम के निचले हिस्से में आने वाले आगंतुकों को पीटता था और कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर उनसे कीमती सामान और नकदी की वसूली करता था.

उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले में युवा जोड़ों को परेशान करने, धमकी देने और उनसे कीमती सामान, नकद की मांग करने के लिए खुद को पुलिस या सेना के जवान बताता था. कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज कर दी. यह आदेश न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी बोनियार शाहबर अयाज ने पारित किया.

पुलिस रिपोर्ट से पता चला कि विश्वसनीय सूत्रों से मिले इनपुट के आधार पर जानकारी मिली कि गांव चेहलान में एम इलियास खान (आरोपी नंबर 2) कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ गुप्त रूप से लोगों के वीडियो बनाते थे. खासकर उन युवा जोड़ो के जो झेलम के निचले हिस्से में घूमने आते थे.

वे खुद को पुलिय या सेना का जवान बताकर वहां आने वालों को पीटते थे, उन्हें परेशान करते थे और पैसे की मांग करते थे. उनकी मांगें नहीं मानने पर कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर उनसे कीमती सामान और नकदी छीन लेते थे.

इसके बाद पुलिस द्वारा तीनों आरोपियों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में आपराधिक मामला दर्ज किया गया. तीनों आरोपियों में से एक (आरोपी नंबर 1) सेना जीडीएचसी में कार्यरत पाया गया. पुलिस ने आरोपी नं. 2 और 3 और उनके मोबाइल फोन जब्त किए जिनमें कई रिकॉर्ड किए गए ऑडियो-वीडियो क्लिप और चैट पाए गए.

अदालत ने विशेष रूप से एक उदाहरण का उल्लेख किया जिसमें आरोपी नंबर 1 ने अपनी आधिकारिक वर्दी और आईडी कार्ड का दुरुपयोग किया और लड़की को परेशान करने के लिए बारामूला गया और उसे धमकी दी.

कोर्ट ने कहा आरोपी व्यक्ति दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाएगा लेकिन सभी मामलों में जमानत नहीं दी जा सकती. खासकर उन मामलों में जहां जनहित जुड़ा है और सार्वजनिक संपत्ति शामिल है.

कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों व परिस्थितियों में मेरा विचार है कि यह सामान्य नियम के अपवाद को लागू करने का उपयुक्त मामला है. अभियुक्त को गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता निःस्संदेह अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति का मूल्यवान अधिकार है.

लेकिन कानून के तहत स्थापित प्रक्रिया के अनुसार इसे अस्वीकार किया जा सकता है. किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को पूरे समाज के हित के खिलाफ संतुलित करने की आवश्यकता है और समाज के हित को व्यक्तिगत हित पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आरोपित अपराध समाज पर खराब प्रभाव डाल सकते हैं और व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं.

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न्यायाधीश ने आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानून उम्मीद करता है कि न्यायपालिका इस तरह के आरोपी व्यक्ति को बड़े पैमाने पर स्वीकार करते समय सतर्क रहेगी.

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