रायपुर :एक तरफ पूरा विश्व कोरोना की चपेट में आ चुका है. तो दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले बैगा आदिवासियों से कोरोना कोसों दूर है.
चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा करंगरा गांव है. जहां बैगा जनजाति के लोग विशेष रूप से रहते हैं. पूरी तरह से जंगल और प्रकृति पर आश्रित यहां के लोग शहर की चमक-दमक से काफी दूर है. मिट्टी के चूल्हे पर बना खाना खाते हैं. झिरिया का पानी पीते हैं. खास बात ये हैं कि कभी बीमार होने पर खुद ही अपना इलाज कर लेते हैं. किसी को एक छींक आने पर भी तुरंत वे जंगल से जड़ी-बूटी लाकर तुरंत उसका सेवन करते हैं जिससे कुछ ही देर में उनकी बीमारी दूर हो जाती है.
बहुत जरूरत होने पर ही जाते हैं शहर
शायद पूरी तरह से प्रकृति के बीच रहने के कारण ही इस गांव में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को अब तक कोरोना नहीं हुआ है. ऐसा नहीं है कि वे बिल्कुल भी गांव से निकलकर शहर नहीं जाते हैं. बल्कि गांव में कई ऐसे लोग है जिनका रोज शहर आना-जाना होता है. लेकिन फिर भी कोरोना उन्हें छू नहीं पाया है. इस गांव की खास बात ये है कि यहां के लोग ज्यादातर गांव के काम आपस में ही मिलकर पूरा करते हैं. गांव में अगर किसी को घर बनवाना है तो शहर से मिस्त्री या मजदूर नहीं बुलाए जाते. गांव के ही लोग मिलकर वो काम पूरा करते हैं. किसी का बाल भी काटना है तो वो शहर नहीं जाता बल्कि गांव के लोग ही बाल भी काट लेते हैं.
जंगल में मिलने वाली जड़ी-बूटी से ही करते हैं इलाज