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Kangaroo Mother Care Therapy: कंगारू मदर केयर थेरेपी बनी वरदान, मां के सीने से लगकर बची बच्चे की जान !

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Published : Jan 25, 2023, 6:57 AM IST

कंगारू मदर केयर में बच्चे को मां की त्वचा से अपने शरीर के तापमान को बनाये रखने में मदद मिलती है. संक्रमण से बचाव में कंगारू मदर केयर काफी कारगर है. इसमें बच्चा बाहरी संक्रमण से भी बचा रहता है. बार बार स्तनपान कराने में सुविधा होती है. 31 अक्टूबर 2022 जब जिला अस्पताल दंतेवाड़ा के प्रसूति कक्ष में संतो ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. ये बच्चे बहुत ही कमजोर और प्रीमेच्योर थे. जिनका इलाज कंगारू मदर केयर थेरेपी से किया गया है. अभी बच्चे की स्थिति में काफी सुधार देखा गया है.Benefits of Kangaroo Mother Care Therapy

Kangaroo Mother Care Therapy
कंगारू मदर केयर

दंतेवाड़ा:दंतेवाड़ा के विकासखंड कुआकोंडा के ग्राम टिकन पाल की रहने वाली संतो आज खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ जीवन जी रही है. अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में भर्ती बच्चे को लगभग 68 से 70 दिन बाद परिवार को सुपुर्द करते हुए अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है. बच्चे को स्वस्थ देख परिवार के सदस्यों की आंखें भर आई. सभी ने बच्चे को गोदी में लेकर खूब प्यार और दुलार किया. एक समय ऐसा भी था, जब परिजन बच्चे के बचने की दुआएं कर रहे थे. पर आज सब कुछ अच्छा देख सभी खुश है.

कमजोर और प्रीमेच्योर थे दोनों बच्चे: 31 अक्टूबर 2022 जब जिला अस्पताल दंतेवाड़ा के प्रसूति कक्ष में संतो ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. ये बच्चे बहुत ही कमजोर और प्रीमेच्योर थे. पहला बच्चे का वजन 930 ग्राम था, जिसकी जन्म लेते ही मृत्यु हो गई. दूसरा शिशु भी कमजोर और उसका कम वजन कम था. उसका वजन 1085 ग्राम था. जिसे तत्काल एसएनसीयू दंतेवाड़ा में भर्ती कराया गया. बच्चा कमजोर होने की वजह से स्तनपान करने और सांस लेने में काफी परेशानी हो रही थी.

965 ग्राम हो गया था बच्चे का वजन:एसएनसीयू के शिशु रोग विशेषज्ञ डा राजेश ध्रुव ने शिशु की जांच की. लगभग 14 दिनों के बाद शिशु में संक्रमण होता प्रतीत हुआ. जिसमें जांच करवाने के बाद पचा चला कि शिशु को डेंगू और बुखार है. जिसमें रक्त संक्रमण होने पर प्लेटलेट काउंट कम हो गया. यह एक गंभीर स्थिति थी. शिशु को एसएनसीयू मेडिकल कॉलेज जगदलपुर को रेफर किया गया, ताकि बच्चे का उचित उपचार किया जा सके. मेडिकल कॉलेज में उपचार के पश्चात 24 नवंबर 2022 को शिशु को फिर से एसएनसीयू जिला अस्पताल दंतेवाड़ा में लाया गया. इस समय शिशु का वजन और कम होकर 965 ग्राम हो गया था.

कंगारू मदर केयर से बच्चे का इलाज: एसएनसीयू चिकित्सक एवं नर्सिंग स्टाफ के लिए यह बड़ा मुश्किल समय था. गंभीर रूप से बीमार शिशु का उचित प्रबंधन करना. एसएनसीयू दंतेवाड़ा के शिशु रोग विशेषज्ञ एवं नर्सिंग स्टाफ की कोशिश से नवजात शिशु के प्रबंधन में जुट गए. शिशु को सर्वप्रथम ओरल ट्यूब के माध्यम से मां का दूध एवं विशेष आहार दिया. साथ ही मां एवं बुआ के द्वारा कंगारू मदर केयर से बच्चे का लगातार वजन बढ़ाने का प्रयास किया गया. गांव के रहने वाले संतो का परिवार काफी दिनों से घर से बाहर थे. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इलाज में सहयोग किया.

1455 ग्राम हुआ शिशु का वजन: विशेष रूप से कंगारू मदर केयर से प्रतिदिन 10 से 14 घंटे तक बच्चे का देखभाल किया और जिससे धीरे-धीरे बच्चे का वजन बढ़ने लगा. प्रतिदिन शिशु का कुछ ग्राम वजन बढ़ना या कम होने का क्रम चलता रहा. 23 जनवरी 2023 को शिशु का वजन 1455 ग्राम हो चुका है. शिशु पूरी तरह से स्वस्थ है उसके वायटल स्टेबल हैं, स्तनपान कर रहा है. भारतीय एसएनसीयू गाइडलाइन के अनुसार शिशु ने डिस्चार्ज का मानक प्राप्त कर लिया है. अत: 68 दिन इलाज एवं प्रबंधन के बाद, शिशु को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है और संतो अपने परिवार के साथ आज खुशहाल जिंदगी जी रही है.

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क्या होती है कंगारू केयर थैरेपी: कंगारू केयर इन दिनों काफी प्रचलित है. आइए जानते हैं कि कंगारू केयर थैरेपी कैसे काम करता है. इस थैरेपी में मां और शिशु के बीच स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट कर थैरेपी दी जाती है. इसलिए इसे कंगारू थैरेपी कहते हैं. इसमें एक मां अपने बच्चे को अपने सीने से लगाकर रखती है. इस थैरेपी में मां के स्पर्श से बच्चे की सेहत को फायदा होता है. इसके जरिए मां और बच्चे का स्नेह तो बढ़ता ही है. इस थैरेपी के सेशन में मां अपने बच्चे को कुछ घंटे के लिए सीने से लगाकर रखती है. इस दौरान बचा सिर्फ डायपर पहने रहता है. उसे कोई कपड़ा नहीं पहनाया जाता है.

कैसे इस थैरेपी का हुआ जन्म: जैसा कि कंगारूओं के शरीर पर एक पाउच होता है. जिसमें वह अपने बच्चे को लेकर इधर से उधर जाते हैं. इस पाउच में दिन भर कंगारू अपने बच्चे को रखते हैं. उसकी तरह मां के बैली पाउच में बच्चा अपने आप को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है. यही थैरेपी को विकसित कर इसे कंगारू थैरेपी कहा गया है. आज के मॉर्डन ट्रीटमेंट की दुनिया में इस थैरेपी का काफी महत्व है.

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