वाराणसी:'जय हरिहरा, गंगाधर गिरिजावर, गंगाधर गिरिजावर, हरि शिव ओंकारा. हर-हर-हर महादेव.' समूची सृष्टि के पालनहार देवाधिदेव महादेव के रात्रि विश्राम का समय हो जाने पर भक्त उन्हे सुलाने के लिए लोरियां सुनाते हैं. तीनों लोक के कर्ताधर्ता को रात के 11 बजे के बाद लोकगीत गाकर सुलाया जाता है. भक्त भाव विभोर होकर करतल ध्वनि पर नाचते हैं. अनादि काल से चली आ रही काशी की ये ऐसी परंपरा है, जिससे महादेव मोहित होते हैं.
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री काशी विश्वनाथ का एक रहस्य ये भी है. बाबा विश्वनाथ को दुनिया का इकलौता ऐसा ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जहां पर लोरियां गाकर उन्हें रात्रि विश्राम कराया जाता है. यह लोरी बाबा विश्वनाथ को शयन आरती में सुनाई जाती है. इस आरती में न कोई पुजारी होता है न अर्चक. न कोई घंट बजता है न घड़ियाल. न ही डमरू की डम-डम सुनाई देती है. बाबा के भक्त तालियों की मधुर आवाज से अपने ईष्ट को लोरी गाकर सुनाते हैं. काशी में सबसे बड़ा कोई है तो वो हैं बाबा विश्वनाथ. बाबा को प्रसन्न रखने के लिए उनके भक्त सदियों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं.
लोक गायन और वाद्य यंत्रों का होता है प्रयोग: काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि काशी अल्हणों और औघड़ों की नगरी है. काशी देवताओँ की नगरी है और काशी मां गंगा की नगरी है. ये रचा-बसा है बाबा भोलेनाथ के आस-पास. और जहां खुद भोलेबाबा होंगे वहां पर संगीत भी होगा. काशी में ये सब रचा बसा हुआ है. उन्होनें बताया कि काशी में लोक संगीतों, लोक गान और लोक वाद्य का प्रयोग महादेव के दरबार में चली आ रही सनातन परंपरा है. हर मौसम के हिसाब से भगवान को गान करके भक्तगण रिझाते हैं. श्री काशी विश्वनाथ में बाबा को सुलाने और जगाने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. रात में 11 बजे के बाद भगवान की शयन आरती: भगवान के पूजन की वैदिक परंपरा रही है. सुबह मंगला आरती से लेकर भोग आरती, मध्याह्म सप्तर्षि आरती, श्रृंगार आरती होती है. रात में भगवान जब विश्राम के लिए जाते हैं, तब रात में 11 बजे के बाद भगवान को शयन आरती कराई जाती है. इसमें वैदिक मंत्रों का नहीं बल्कि लोकगीतों का प्रयोग किया जाता है. भगवान के नैमी भक्त लोरी के माध्यम से करतल ध्वनि से आरती करते हैं. वाद्य यंत्रों का प्रयोग नहीं किया जाता है. इसके बाद भगवान के पास शैया रख दी जाती है. इसके साथ ही आवश्यक वस्तुएं रख दी जाती हैं. भगवान मंत्रों से ज्यादा भाव से प्रसन्न हो जाते हैं. ये लोगी सुनाते हैं भक्त: पंडित त्रिपाठी बताते हैं कि,शयन आरती के समय भगवान के भक्त काशीवासी भगवान को लोरी गाकर सुनाते हैं, 'जय हरिहरा, गंगाधर गिरिजावर, गंगाधर गिरिजावर, हरि शिव ओंकारा. हर-हर-हर महादेव. हर-हर-हर महादेव.' इस तरह से भक्त भगवान को सुलाते हैं. भक्त भाव विभोर होकर सारी लज्जा को त्यागकर करतल ध्वनि पर नृत्य करने लगते हैं. उनकी आंखों से आंसू आ जाते हैं. उस समय भगवान विष्णु का नाम लेकर भक्त महादेव को सुलाते हैं. महादेव भगवान हरि के भक्त हैं. इसलिए सारा माहौल हरिमय हो जाता है.देवाधिदेव भगवान शंकर को प्रिय है संगीत: वहीं, विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पंडित श्रीकांत बताते हैं कि प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में पूजन-अर्चन का क्रम शुरू होता है. पौने तीन बजे भोर में श्रृंगार उतारने का क्रम शुरू होता है. 15 मिनट में भगवान के रात का श्रृंगार जब उतरता है उसी श्रृंगार को उतारते समय भगवान को गान करके सुनाया जाता है. संगीत प्रियो शिव:. भगवान विश्वनाथ देवाधिदेव भगवान शंकर को संगीत प्रिय कहा गया है. इनका संगीत से प्रेम होने के कारण इनके सारे पूजन संगीतमय होते हैं. रात के सुलाने के समय संगीतमय आरती गाई जाती है. प्रात: काल जगाने के लिए भी उनको संगीत के द्वारा ही जगाया जाता है.'जगाय हारी, भोले बाबा न जागैं': बाबा विश्वनाथ को ब्रह्म मुहूर्त में जगाया जाता है. जगाने के बाद उनको सबसे पहले दूध का भोग लगाया जाता है. फिर सोडसोपचार पूजन और आरती का क्रम शुरू होता है. फिर उनका श्रृंगार साज-सज्जा करके आम दर्शनार्थियों के लिए मंदिर का कपाट खोल दिया जाता है. रोज की तरह निरंतर दर्शन-पूजन का क्रम चलता है. उस दौरान गाया जाता है- 'जगाय हारी, भोले बाबा न जागैं. जगाय हारी, भोले बाबा न जागैं. गंगा जगावैं, यमुना जगावैं, गंगा जगावैं, यमुना जगावैं. त्रिवेणी जगावैं लहरमारी, भोले बाबा न जागैं, जगाय हारी. औघढ़दानी न जागैं, जगाय हारी.'काशीवासी के हृदयस्थल में बसते हैं शिव: भगवान भोलेनाथ को सावन का यह पावन महीना अत्यंत प्रिय है. इसके कारण इसमें कजरी भी गाई जाती है. पंडित श्रीकांत बताते हैं कि बाब को जगाने के लिए मौसम के हिसाब के गान गाया जाता है. क्योंकि ये लोक के भी देवता हैं. लोक के देवता होने के कारण जो लोक संगीत हैं वही गाकर उनको जगाया जाता है. देवाधिदेव महादेव विश्वनाथ यहां पर हर काशीवासी के हृदयस्थल में बसते हैं. काशी वासी के रोम-रोम में और मन में बसते हैं. इसलिए भगवान विश्वनाथ के प्रति उनका ऐसा समर्पण का भाव रहता है. काशीवासी महादेव को प्रसन्न करते हैं.'बेल के पतैया में कौन गुन बाय, शिव गइने लुभाय': श्री काशी विश्वनाथ को अलग अलग मौसम में भक्त कई तरीके से लोक गीत गाकर सुनाते हैं. उनमें से एक सावन में कजरी गीत ये भी है- 'अरे कवन गुन बाय, शिव गइने लुभाय. बेल के पतैया में कवन गुन बाय. पूड़ी-मिठाई शिव मन ही न भावे, अरे भांग-धतूरा में कवन गुन बाय. शिव गइने लुभाय. हाथी और घोड़ा शिव मन ही न भावे, बुढवा बैलवा में गवन गुम बाय. शिव गइने लुभाय, बेल के पतैया में कौन गुन बाय. माल अटारी शिव मन ही न भाए, अरे टुटई मड़इया में कवन गुन बाय. शिव गइने लुभाय, बेल के पतैया में कौन गुन बाय.'वर्षों से चली आ रही बाबा को सुलाने-जगाने की परंपरा: प्रमुख अर्चक पंडित श्रीकांत बताते हैं कि बाबा विश्वनाथ का पूजन करने के लिए जो नियुक्त अर्चक हैं हम सब भी मिलकर इस कार्यक्रम को संपन्न करते हैं. हमारे पूर्ववर्ती भी जो लोग रहे हैं उन सभी जो परंपरा शुरू की है. वही परंपरा आज भी जो अनादि है-अनंत है जो न जाने कितने वर्षों से परंपरा चली आ रही है, उसी परंपरा से भगवान को सुलाने और जगाने का क्रम चलता है. सप्तर्षि आरती भी गान और वाद्य के साथ संगीतमय आरती होती है. भगवान को इसी गान के साथ अर्चकगण मिलकर रोजाना पूजन के दौरान यह प्रक्रिया करते हैं.