ग्वालियर : जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से मन बहलाते हैं या वीडियो गेम पर टाइम पास करते हैं, उम उम्र में अद्रिका और कार्तिक ने वो कर दिखाया जो बड़े बड़े नहीं कर पाते. चारों तरफ डर और हिंसा की आग के बीच जब लोगों ने खुद को घरों में बंद कर लिया था, तब 10 साल के इन दोनों बच्चों ने भूख और प्यास से तड़प रहे लोगों की जान बचाई. इनके अदम्य साहस और सेवा भाव के लिए राष्ट्रपति भी इन्हें सम्मानित कर चुके हैं. आइए जानते हैं बालवीर अद्रिक और कार्तिक की हौसलों की वो कहानी, जो लोगों के लिए मिसाल बन गई है.
साहस और समाजसेवा की मिसाल बने अद्रिका और कार्तिक
उम्र अनुभव देती है, लेकिन बहादुरी और साहस उम्र के बंधन से परे हैं. ये साबित किया है मुरैना के रहने वाले अद्रिका और उसके भाई कार्तिक ने. 10 साल की उम्र में जब बच्चे खेलने कूदने में मस्त रहते हैं, उस समय अद्रिका और कार्तिक ने लोगों का दर्द महसूस किया. इन्होंने समाज सेवा और साहस की वो मिसाल पेश की है, जिसके लिए 2019 में राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित किया. उन्हें बहादुरी और समाज सेवा के लिए नेशनल चिल्ड्रन अवार्ड से नवाजा गया.
भूखे प्यासों के लिए जागा दर्द
2 अप्रैल 2018 का दिन था. ग्वालियर चंबल अंचल में दलित आंदोलन की हिंसा भड़क रही थी. मुरैना जिले में भी हिंसा और दहशत का माहौल था. डर के मारे लोग घरों में कैद थे. उपद्रवियों की भीड़ जहां तहां हिंसा और मार-काट मचाने को उतारू थी. कई जगहों पर पथराव हो रहा था. आंदोलनकारियों ने रेल की पटरियों पर कब्जा कर लिया था. कई ट्रेनें रेलवे स्टेशन पर खड़ी हो गईं. इन ट्रेनों में हजारों लोग फंस गए. हजारों यात्री भूख प्यास से बेहाल थे. 10 साल की अद्रिका और उसका भाई कार्तिक अपने घर टीवी पर ये सब देखसुन रहे थे. इनका घर स्टेशन के ठीक सामने था. बहन अद्रिका ने भाई कार्तिक से कहा कि हमें कुछ करना चाहिए. ट्रेन में फंसे लोग भूख प्यास से तड़प रहे हैं. फिर दोनों ने तय किया कि हम इनकी मदद करेंगे.
10 साल की उम्र और हैरान करने वाला साहस
दोनों बहन-भाई ने घर से ही खाने पीने का सामान इकट्ठा किया. एक थैले में सामान भरा और माता-पिता को बताए बिना चल पड़े पटरियों की तरफ. जब दोनों रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो पुलिस वालों ने उन्हें रोका और कहा, कि यहां से चले जाओ, जान का खतरा है. लेकिन अद्रिका और कार्तिक तड़पते लोगों की मदद करने की ठान चुके थे. दोनों अलग-अलग रास्ते से होते हुए किसी तरह ट्रेन में जा पहुंचे. अद्रिका ने बताया कि हम भी डर रहे थे, लेकिन फिर सोचा कि कुछ गलत नहीं कर रहे हैं तो डरना किस बात का.
अद्रिका और कार्तिक के आगे पिता को भी झुकना पड़ा
ट्रेन में फंसे यात्री बुरी तरह डरे हुए थे, शुरू में उन्होंने डिब्बे के गेट भी नहीं खोले. लेकिन जब देखा कि दो छोटे बच्चे कुछ खाने का सामान लाए हैं, तो उनकी जान में जान आई. जो भी सामान वो घर से लाए थे, वो सब यात्रियों में बांट दिया. इसी बीच अद्रिका और कार्तिक के माता भी उन्हें ढूंढते हुए वहां पहुंच गए. दोनों को वहां से चलने के लिए कहा, लेकिन बच्चों ने घर जाने से मना कर दिया. बल्कि अपने पापा से कहा कि घर में जितना भी खाने-पीने का सामान है, सब ले आओ. हम इन्हें यहां भूख प्यास से तड़पते नहीं छोड़ सकते. पिता को भी बच्चों की बात माननी पड़ी. वे घर गए, खाने पीने का सामान जुटाया और आस-पास के लोगों के साथ फिर स्टेशन पर पहुंच गए.