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आजाद ने किया किसान आंदोलन का समर्थन, जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने की मांग

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद एक कार्यक्रम में शामिल होने उत्तराखंड के मसूरी पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल किए जाने की मांग उठाई. साथ ही किसान आंदोलन का भी समर्थन किया.

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Published : Sep 27, 2021, 10:40 PM IST

मसूरी :कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग उठाई है. उन्होंने कहा है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने के बाद वहां चुनाव कराए जाने चाहिए.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद सोमवार को शहीद ए आजम भगत सिंह को लेकर आयोजित एक सम्मान समारोह में शामिल होने मसूरी आए थे. उन्होंने कहा कि देश की जितनी भी स्टेट है, 70-72 साल पुरानी है. जबकि जम्मू-कश्मीर स्टेट 176 साल पुरानी है, जो 1846 में बनी थी. उन्होंने कहा कि सबसे पहले उनकी एक ही मांग है कि जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल किया जाए और चुनाव कराए जाए. इसके बाद बाकी की मांगें है.

जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा हो बहाल.

वहीं किसानों आंदोलन पर भी उन्होंने अपना बयान दिया. गुलाम नबी आजाद ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने नेता राज्यसभा के रूप में भी अपने संबोधन में यह मामला उठाया था. सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कहा कि अंग्रेजों के राज में छह ऐसे आंदोलन हुए थे, जो साल-साल भर चले थे. आखिर में अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और कानून वापस लेना पड़ा.

कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार के समय में भी 1988 में राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने आंदोलन किया था. हालांकि उनके पैरलर 10 लाख किसानों को लेकर उन्हें भी आंदोलन करना था, लेकिन उससे दो दिन पहले ही महेंद्र सिंह टिकैत हुक्का और चारपाई लेकर पचास हजार किसानों के साथ वोट क्लब में आ गए थे.

गुलाम नबी आजाद ने मोदी सरकार को सुझाव दिया है कि उन्हें कृषि कानूनों को वापस ले लेना चाहिए. वहीं उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि संसदीय राजनीति और व्यक्तिगत राजनीति दोनों अलग-अलग होती है. संसद में हम एक-दूसरे के कार्यों की आलोचना करते है. सरकार ने किसान बिल गलत लाया, आंदोलन उसके खिलाफ है.

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इसका मतलब यह नहीं कि किसी मंत्री को गाली दें. इस बात का सभी को ध्यान रखना चाहिए कि संसद के सदस्य हैं और उन्हें जनता ने चुनकर भेजा है. देश की आजादी में भी मतभेद थे. गांधी जी का अलग रास्ता था. अशफाक उल्ला खां और सुभाष चंद्र बोस का अलग रास्ता था, लेकिन सभी का मकसद एक था.

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