कानपुर : राममंदिर आंदोलन की शुरुआत 1985 में सरयू के तट से हुई थी. 1989 से 90 के दौर में तब एक नारा हम लोगों को दिया गया था. 'आगे बढ़ो, जोर से बोलो और रामलला का ताला खोलो'.इस नारे के साथ हर रामभक्त खुशी से झूम उठता था. 1992 में अयोध्या में रामभक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा था. अब रामलला का भव्य मंदिर तैयार हो चुका है. हमें गर्व है कि हम मंदिर के लिए किए गए आंदोलन के साक्षी बने. यह कहना है शहर के तेजाब मिल कैंपस निवासी अनूप अवस्थी का. उन्होंने राम मंदिर आंदोलन के कई किस्से ईटीवी भारत के साथ साझा की. उन्होंने उस दौर की कई यादों को आज भी सहेज कर रखा है.
सरयू के तट से हुई थी आंदोलन की शुरुआत :कार सेवक अनूप अवस्थी ने बताया कि हमारे लिए 22 जनवरी का दिन रामभक्तों के लिए ऐतिहासिक है. अयोध्या में रामलला का मंदिर सैकड़ों साल बाद बना. इसका पूरा श्रेय लाखों रामभक्तों को दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी वो काम करके दिखाया, जिसे किसी ने सोचा तक नहीं था. कार सेवक ने बताया कि राम मंदिर के लिए हर राम भक्त का खून उबाल मार रहा था. मेरे हिसाब से 1985 में सरयू के तट से ही राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई थी. साल दर साल यह आगे बढ़ता रहा. साल 1989 से 90 के बीच 'आगे बढ़ो, जोर से बोलो और रामलला का ताला खोलो'यह नारा रामभक्तों में जोश भरने लगा था. यह नारा बजरंग दल और विहिप ने दिया था. इसके बाद रामजानकी यात्राएं निकलने लगी. साल 1992 में उस समय कहा गया था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता. इसके बावजूद रामभक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ. राम मंदिर के लिए काफी लोगों ने बलिदान दिया. कई ने जान भी गंवा दी. वो जहां भी होंगे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा देख काफी खुश होंगे.