नई दिल्ली:रंगो को त्योहार होली,चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को खेला जाता है, जबकि शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है. इस बार होली 18 मार्च को खेली जाएगी एवं होलिका दहन 17 मार्च को किया जाएगा. होली से पहले होलिका पूजन महत्वपूर्ण होता है. इस दौरान लगे होलाष्टक में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं.
होलिका दहन पर रहेगा भद्रा का साया :पंचांग के अनुसार 17 मार्च को होलिका दहन(holika dahan time) के लिए लोगों के पास केवल 1 घंटा 10 मिनट का समय रहेगा. इस दिन रात 9.02 से 10.14 तक जब भद्रा का पूंछ काल रहेगा, उस समय होलिका दहन किया जा सकता है. जो लोग इस अवधि में होलिका दहन न कर पाएं वे रात डेढ़ बजे के बाद होलिका दहन कर सकते हैं. फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दोपहर 1:29 से प्रारंभ होकर अगले दिन दोपहर 12.47 तक रहेगी. वहीं उदया तिथि में 18 मार्च को पूर्णिमा रहने पर इसी दिन होली खेली जाएगी. शास्त्रानुसार होलिका दहन में भद्रा टाली जाती है किंतु भद्रा का समय यदि निशीथकाल के बाद चला जाता है तो होलिका दहन (भद्रा मुख को छोड़कर) भद्रा पूंछ काल या प्रदोष काल में करना श्रेष्ठ बताया गया है. निशीथोत्तरं भद्रासमाप्तौ, भद्रामुखं त्यकतवा भद्रायामेव.
भद्रा में नहीं होते शुभ कार्य :पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है. भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं. उनके स्वभाव को नियंत्रित करने भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया है. पंचांग के 5 प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण होते हैं. करण की संख्या 11 होती है. ये चर-अचर में बांटे गए हैं. इन 11 करणों में 7वें करण का नाम ही भद्रा है. मान्यता है कि ये तीनों लोकों में भ्रमण करती हैं और जब ये मृत्यु लोक में होती हैं, तो अनिष्ट करती हैं. भद्रा योग कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में चंद्रमा के विचरण पर भद्रा विष्टिकरण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती हैं.