नई दिल्ली :अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने एक आभासी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बुधवार को संयुक्त रूप से सैन्य गठबंधन ऑकस (AUKUS) की घोषणा कर एक नए अध्याय की शुरुआत की. इस रणनीतिक कदम को मुख्य रूप से चीन विरोधी माना जा रहा है.
साथ ही यह इस तथ्य की मौन स्वीकृति भी है कि चीन 'मलक्का डिलेमा' (Malacca Dilemma) को खत्म कर चुका है. दरअसल चीन जिस पारंपरिक और अपरिहार्य स्थिति का सामना कर रहा था कि उसे संकीर्ण मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से कंटेनर, कार्गो, ईंधन और गैस से लदे अपने जहाजों को निकालना पड़ रहा था, वह स्थिति खत्म हो गई है. म्यांमार और अफगानिस्तान में अचानक हुए घटनाक्रम ने चीन के लिए हिंद महासागर तक सीधे पहुंचने के लिए स्थिति को बहुत अनुकूल बना दिया है. यही वजह है कि इन देशों को ऑकस गठबंधन करना पड़ा.
ऊर्जा की कमी और ईंधन की खपत करने वाले चीन की शानदार जीडीपी वृद्धि और तेजी से विकास ने तेल और गैस को आयात की एक गैर-परक्राम्य वस्तु (non-negotiable commodity) बना दिया है जिसे वह रूस और ईरान जैसे रणनीतिक भागीदारों से खरीदता है. यह मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से है कि इन वस्तुओं को ले जाने वाले जहाज गुजरते हैं. न केवल 70 प्रतिशत ऊर्जा मदों बल्कि कुल चीनी व्यापार प्रवाह का 60 प्रतिशत इस मार्ग का उपयोग करते हैं. लेकिन यह मार्ग चीनी जहाजों के लिए एक चोक पॉइंट की तरह भी है. मलक्का जलडमरूमध्य अंडमान और निकोबार द्वीपों के लिए खुला है. ऐसे में अमेरिका के अलावा भारत भी शत्रुता के मामले में नाकाबंदी के संभावित खतरे पैदा कर सकता है.
नतीजतन, चीन हमेशा 'दुविधा' से बचने के लिए मार्गों की तलाश में रहा है. जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना जो मुख्य भूमि चीन को जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की एक प्रमुख परियोजना है. पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक उसकी जरूरी पहुंच बन गई है. इस बीच चीन और मार्गों की तलाश में भी था. उस पृष्ठभूमि में पिछले साढ़े छह महीनों के अचानक हुए घटनाक्रम ने चीन को 'मलक्का डिलेमा' (Malacca Dilemma) से उबरने का एक शानदार अवसर प्रदान किया है. म्यांमार और अफगानिस्तान में अचानक हुए घटनाक्रम ने चीन के लिए हिंद महासागर तक सीधे पहुंचने के लिए स्थिति को बहुत अनुकूल बना दिया है.
म्यांमार
1 फरवरी, 2021 को म्यांमार की सेना जिसे तामदौ भी कहा जाता है ने तख्तापलट किया और नायपीताव (Naypyitaw) में सरकार की बागडोर संभाली. बीजिंग के बहुत करीब माने जाने वाले म्यांमार के इस घटनाक्रम ने पश्चिमी देशों और भारतीय हितों को कमजोर कर इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ा दिया है. 26 अगस्त 2021 को चीन ने एक महत्वपूर्ण रेल का उद्घाटन किया, जो चेंगदू के वाणिज्यिक और सैन्य केंद्र को सीमावर्ती शहर लिनकांग (Lincang) से जोड़ती है. ये म्यांमार के शान राज्य में सीमावर्ती शहर चिन श्वे हॉ के सामने स्थित है.
ये समुद्री-सड़क-रेल लिंक को पूरा करती है जो सिंगापुर को चेंगदू से जोड़ता है. चेंगदू के लिए सीधी रेल तक जाने से पहले माल सिंगापुर से म्यांमार के यांगून बंदरगाह तक पहुंचेगा, जहां से सड़क मार्ग से म्यांमार के खासे हिस्से को पार करने के बाद चीन के युन्नान प्रांत में चिन श्वे हॉ के माध्यम से लिनकैंग पहुंचेगा.
चीन के लिए खास बात ये है कि सिंगापुर से चेंगदू के लिए शिपिंग समय करीब 20 दिन कम हो गया है. यही नहीं सबसे महत्वपूर्ण ये है कि नया लिंक चीन को हिंद महासागर से सीधे पश्चिम एशिया, यूरोप और अटलांटिक क्षेत्र के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने में सक्षम करेगा.
पहले से ही 770 किलोमीटर लंबी समानांतर तेल और गैस पाइपलाइन बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के क्यौकफ्यू द्वीप से युन्नान प्रांत के रुइली तक है जो बाद में 2,800 किलोमीटर तक गुआंग्शी तक फैली हुई है.
चीन की एक अन्य प्रमुख ढांचा परियोजना जो चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे का भी एक हिस्सा है, वह चीन के दक्षिण-पश्चिमी युन्नान प्रांत के साथ रखाइन में क्यौकफ्यु में गहरे समुद्री बंदरगाह के बीच की कड़ी है.