नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने केरल राज्य विधानसभा में 2015 में कथित बर्बरता के लिए प्रमुख भाकपा नेताओं के खिलाफ मामले को वापस लेने की याचिका बुधवार को खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2015 के केरल विधानसभा हंगामे के मामले में आरोपी माकपा के छह सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा वापस नहीं लिया जा सकता है.
केरल राज्य और आरोपी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के निर्णय (जिसने राज्य द्वारा सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजक द्वारा दायर आवेदन को खारिज करने के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को मंजूरी दे दी थी) को संज्ञान में रखा.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसले के अंशों को पढ़ते हुए कहा कि विशेषाधिकार और उन्मुक्ति आपराधिक कानून से छूट का दावा करने का प्रवेश द्वार नहीं है और यह नागरिकों के साथ विश्वासघात होगा. कहा कि याचिका अनुच्छेद 194 की गलत धारणा के आधार पर दायर की गई थी.
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बेंच ने फैसला सुनाते समय महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी की हैं. न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति नष्ट करने के कृत्यों की विधायकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या विपक्ष के सदस्यों को वैध रूप से उपलब्ध विरोध के तरीकों से तुलना नहीं की जा सकती. इन परिस्थितियों में मामलों को वापस लेने की अनुमति देना गलत कारणों से न्याय की सामान्य प्रक्रिया में हस्तक्षेप होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेषाधिकार और उन्मुक्ति आपराधिक कानून से छूट का दावा करने का प्रवेश द्वार नहीं है और यह नागरिकों के साथ विश्वासघात होगा. आपराधिक कानून से सदस्यों की बाहर करने का उद्देश्य उन्हें बिना किसी बाधा, भय या पक्षपात के कार्य करने में सक्षम बनाना है. सदन का विशेषाधिकार, उस प्रतिरक्षा स्थिति का प्रतीक नहीं है जो उन्हें असमान पायदान पर खड़ा करता है.
पीठ ने केरल सरकार की याचिका समेत वे याचिकाएं खारिज कर दीं. इनमें केरल विधानसभा में हंगामा करने के संबंध में एलडीएफ विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले वापस लेने की याचिका खारिज करने के उच्च न्यायालय के 12 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई थी.