गुवाहाटी : असम की राजनीति में यह किसी युग के अंत से कम नहीं है. असम के सबसे मजबूत और सबसे प्रसिद्ध क्षेत्रीय नेता प्रफुल्ल कुमार महंत ने आगामी चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है. हालांकि, महंत की पत्नी ने महंत को पार्टी से टिकट न मिलने पर पिछले कुछ दिनों में वर्तमान एजीपी नेतृत्व के खिलाफ मुखर रही हैं.
उन्होंने बार-बार कहा कि वह या तो अलग पार्टी के टिकट पर या निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ेंगे. फिर भी महंत ने बुधवार को घोषणा कर दी कि वे अब चुनाव नहीं लड़ेंगे. अपनी लोकप्रियता या बदनामी के बावजूद महंत असम की राजनीति से अविभाज्य हैं. उन्होंने असम में क्षेत्रीय पार्टी की सरकारों का दो कार्यकाल के लिए नेतृत्व किया है. उन्होंने चार बार असम विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी पारी खेली है. असोम गण परिषद (एजीपी) के संस्थापक अध्यक्ष महंत ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सबसे अधिक अवधि के दौरान राज्य का नेतृत्व किया है.
चुनौतियों भरा रहा कार्यकाल
1952 में नागांव में जन्मे महंत ने छह साल लंबे चले असम आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और असम के मुख्यमंत्री बने. 1985 में महंत भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. महंत के राजनीतिक करियर में गंभीर चुनौतियां देखी गईं, क्योंकि 1985 से 1990 के बीच महंत की अगुआई वाली सरकार के पहले कार्यकाल में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) जैसे प्रतिबंधित संगठनों की गतिविधियां कई गुना बढ़ गईं थी.
उग्रवाद विरोधी अभियान चलाया
विद्रोही गतिविधियों को रोकने के लिए भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन बजरंग' चलाया. जो कि असम में उस स्थिति को रोकने के लिए अपनी तरह का पहला उग्रवाद विरोधी अभियान था. बजरंग के बाद ऑपरेशन राइनो भी चलाया गया, जिसमें राज्यभर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले सामने आए. इस अवधि के कई दौरान असाधारण हत्याओं के आरोप भी लगाए गए. यद्यपि क्षेत्रीय पार्टी 1991 का चुनाव हार गई, लेकिन उसने 1996 में महंत ने मुख्यमंत्री के रूप में फिर से वापसी की.
दूसरे कार्यकाल में लगे गंभीर आरोप