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असम की विपक्षी पार्टियों ने हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने का किया विरोध - पूर्वोत्तर के 8 राज्य हिंदी को अनिवार्य बनाने पर सहमत

हिंदी भाषा को लेकर हाल में केंद्र सरकार की ओर से की गयी घोषणा का असम के विपक्षी दलों ने विरोध किया. इस घोषणा में कहा गया कि पूर्वोत्तर के आठ राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं.

Assam opp parties against Hindi as compulsory subject
असम की विपक्षी पार्टियों ने हिंदी अनिवार्य विषय बनाने के विरोध किया

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Published : Apr 10, 2022, 1:04 PM IST

Updated : Apr 10, 2022, 2:01 PM IST

गुवाहाटी: असम की विपक्षी पार्टियों ने शनिवार को केंद्र की उस घोषणा का विरोध किया जिसमें कहा गया था कि पूर्वोत्तर के आठों राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं. उन्होंने इस कदम को 'सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की ओर बढ़ाया गया कदम' करार दिया. कांग्रेस और एजेपी सहित विपक्षी पार्टियों ने यह फैसला वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि यह क्षेत्र के लोगों के हितों के खिलाफ है.

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सात अप्रैल को नयी दिल्ली में संसदीय आधिकारिक भाषा समिति की बैठक में कहा था कि पूर्वोत्तर के सभी राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि क्षेत्र की नौ जनजातियों ने अपनी बोली को लिखने के लिए देवनागरी का इस्तेमाल शुरू किया है और पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंदी विषय के 22 हजार शिक्षकों की भर्ती की जा रही है. असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने कहा कि शाह का बयान ‘केंद्र सरकार के तानाशाही रवैये का’ तमाचा है और हिंदी को अनिवार्य बनाने का कोई भी फैसला पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों के लिए शिक्षा और रोजगार के संबंध में उन लोगों के मुकाबले हानिकारक होगी जिनकी मातृभाषा हिंदी है.

केंद्र से हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए कांग्रेस विधायक सैकिया ने राज्य सरकार से भी हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाने के खिलाफ दिल्ली पर दबाव बनाने की मांग की. उन्होंने लोगों से भी अपनी असहमति जताने की अपील की. कांग्रेस नेता ने कहा, ‘शिक्षा राज्य का विषय है. केंद्र को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. यह हमारे संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ जाता है. हम इसकी निंदा करते हैं और चाहते है कि इस फैसले को वापस लिया जाए. हमारा संविधान दूसरे की कीमत पर किसी क्षेत्र या भाषा का पक्ष लेने की अनुमति नहीं देता.'

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असम जातीय परिषद (एजेपी) के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने भी केंद्र के इस कदम की निंदा की है. उन्होंने कहा, 'यह केंद्र के तानाशाही रवैये का प्रतिबिंब है. यह भाषा के जरिये सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की ओर कदम है. हम हिंदी का सम्मान करते हैं लेकिन हमारी अपनी मातृभाषा भी है और हमें उसके विकास पर भी ध्यान केंद्रित करना है.' एजेपी प्रमुख ने कहा कि राज्य सरकार को फैसला करना चाहिए कि उसके अधीन मौजूद स्कूलों में कौन सी भाषा पढ़ाई जानी चाहिए. उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से, नागरिक समाज संगठनों और आम लोगों से इस फैसले के खिलाफ केंद्र पर दबाव बनाने की अपील की.

असम साहित्य सभा ने हिंदी को अनिवार्य विषय बनाए जाने का विरोध किया:साहित्यिक संस्था असम साहित्य सभा (एएसएस) ने पूर्वोत्तर राज्यों में 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के कदम की आलोचना की है और सरकार से स्थानीय भाषाओं के संरक्षण एवं प्रचार पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है. एएसएस के महासचिव जाधव चंद्र शर्मा ने एक बयान में कहा कि यदि हिंदी को अनिवार्य बनाया जाता है, तो संपर्क भाषा के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं और असमिया भाषा का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा. उन्होंने कहा कि सभा सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में असमिया की पढ़ाई के लिए राज्य सरकार पर दबाव बना रही है, लेकिन इस संबंध में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Apr 10, 2022, 2:01 PM IST

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