गुवाहाटी: असम की विपक्षी पार्टियों ने शनिवार को केंद्र की उस घोषणा का विरोध किया जिसमें कहा गया था कि पूर्वोत्तर के आठों राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं. उन्होंने इस कदम को 'सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की ओर बढ़ाया गया कदम' करार दिया. कांग्रेस और एजेपी सहित विपक्षी पार्टियों ने यह फैसला वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि यह क्षेत्र के लोगों के हितों के खिलाफ है.
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सात अप्रैल को नयी दिल्ली में संसदीय आधिकारिक भाषा समिति की बैठक में कहा था कि पूर्वोत्तर के सभी राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि क्षेत्र की नौ जनजातियों ने अपनी बोली को लिखने के लिए देवनागरी का इस्तेमाल शुरू किया है और पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंदी विषय के 22 हजार शिक्षकों की भर्ती की जा रही है. असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने कहा कि शाह का बयान ‘केंद्र सरकार के तानाशाही रवैये का’ तमाचा है और हिंदी को अनिवार्य बनाने का कोई भी फैसला पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों के लिए शिक्षा और रोजगार के संबंध में उन लोगों के मुकाबले हानिकारक होगी जिनकी मातृभाषा हिंदी है.
केंद्र से हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए कांग्रेस विधायक सैकिया ने राज्य सरकार से भी हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाने के खिलाफ दिल्ली पर दबाव बनाने की मांग की. उन्होंने लोगों से भी अपनी असहमति जताने की अपील की. कांग्रेस नेता ने कहा, ‘शिक्षा राज्य का विषय है. केंद्र को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. यह हमारे संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ जाता है. हम इसकी निंदा करते हैं और चाहते है कि इस फैसले को वापस लिया जाए. हमारा संविधान दूसरे की कीमत पर किसी क्षेत्र या भाषा का पक्ष लेने की अनुमति नहीं देता.'