दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

भारत-जापान के बीच रणनीतिक साझेदारी का प्रमुख केंद्र बना असम

पूर्वोत्तर क्षेत्र में असम, भारत और जापान के बीच रणनीतिक गठजोड़ के लिए महत्वपूर्ण भौगोलिक केंद्र बन रहा है. क्या है असम की रणनीतिक आवश्यकता, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ...

Assam
Assam

By

Published : Feb 16, 2021, 9:28 PM IST

नई दिल्ली : सीमा रेखा पर भारत-चीन सैन्य वृद्धि को तेज करने के बाद भारत और जापान ने आधारभूत संरचना खड़ा करने के लिए रणनीतिक कदम उठाए हैं. जो भारत के पूर्वोत्तर में प्रभाव फैलाने के चीनी प्रयासों को झटका देगा. साथ ही आगे भारत की प्रमुख 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को भी संजीवनी प्रदान करेगा.

बहुत कुछ 1826 के यंडाबू की संधि की तरह है, जिसने ब्रिटिश भारत को सुदूर पूर्व के साथ आगे के संबंधों के लिए म्यांमार के तटों तक पहुंच प्रदान की थी. साथ ही असम, मणिपुर और नागा हिल्स पर ब्रिटिश नियंत्रण की अंतिमता स्थापित हुई. कुछ ऐसी ही कल्पना भारत और जापान द्वारा की जा रही है. असम, मणिपुर और नागालैंड के विद्रोह के साथ भारत-चीन और सुदूर पूर्व की सड़कें पहले से कहीं अधिक शांति के लिए चिह्नित की गई हैं.

समावेशी इंडो-पैसिफिक की वकालत

बीते सोमवार को असम की राजधानी गुवाहाटी में एक बैठक हुई, जिसमें भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, भारत में जापान के राजदूत सुजुकी सातोशी के अलावा असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित कई नेताओं ने भाग लिया. राजदूत सुजुकी ने अपने संबोधन में कहा कि जापान हमेशा अपनी कूटनीति में एक नयनाभिराम दृष्टिकोण रखता है. एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक (एफओआईपी) की दृष्टि इसके केंद्र में है और असम सहित भारत का उत्तर पूर्व इस दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है.

बुनियादी ढांचे के विकास की दरकार

जापानी दूत का बयान दोनों देशों के बीच बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय ऊर्जा और लोगों से जुड़ाव के साथ सर्वांगीण विकास की साझा प्रतिबद्धता पर आधारित रणनीतिक सहयोग की द्योतक है. उद्देश्य यह है कि पूर्वोत्तर और असम में विशेष रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में मददगार होगा. यह कदम एक बहु-ध्रुवीय एशिया की इच्छा को रेखांकित करना चाहता है, न कि चीन के प्रभुत्व वाले एशिया की. भारत और जापान पहले से ही अमेरिका समर्थित ग्रुप क्वाड समूह का हिस्सा हैं. जिसमें से ऑस्ट्रेलिया भी एक हिस्सा है. 'क्वाड' को चीन विरोधी मंच माना जाता है जो पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विरासत थी.

डेवलपमेंट ऑफ नॉर्थईस्ट संस्था का गठन

क्वाड के अलावा भारत और जापान विभिन्न स्तरों और प्लेटफार्मों पर साथ हैं. जिनमें '2 प्लस 2' सबसे महत्वपूर्ण है. जहां दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्री एक दूसरे से मिलते हैं. भारत का AEP दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ जुड़ने के लिए पूर्वोत्तर भारत के करीबी सांस्कृतिक और जातीय संबंधों का लाभ उठाना चाहता है. दूसरी ओर जापान इस क्षेत्र में निवेश करने का इच्छुक है और इस क्षेत्र में आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए 2017 में भारत-जापान समन्वय फोरम फॉर डेवलपमेंट ऑफ नॉर्थईस्ट नामक संस्था का गठन कर चुका है.

पूर्वी भारत की समृद्धि व सुरक्षा जरूरी

एईपी को भारत-जापान आर्थिक और रणनीतिक नीति के अभिसरण के लिए एक मंच के रूप में बताते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि यह पूर्वोत्तर और फिर आस-पास के म्यांमार और बांग्लादेश से परे असम के भीतर संपर्क बनाने के लिए एक दृष्टिकोण है. लेकिन अंततः सड़क मार्ग से, समुद्र द्वारा, वियतनाम से जापान तक सभी रास्ते खुले हैं. मंत्री ने कहा कि भारत एक महान देश था, जब पूर्वी भारत समृद्ध और सुरक्षित था. यह पुनरुद्धार फिर से होना चाहिए और असम में मोदी सरकार की प्रतिबद्धता के मूल में बहुत कुछ है.

यह भी पढ़ें-देशवासियों को 'सुरक्षा कवच' पहनाने के लिए हो युद्धस्तर पर कोविड टीकाकरण

दोनों देश सहयोग को प्रतिबद्ध

दिलचस्प बात यह है कि धुबरी-फूलबाड़ी पुल, स्वच्छता, जल आपूर्ति और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को विकसित करने के अलावा, जापान भी असम में जापानी भाषा की शिक्षा शुरू करने का इच्छुक है. AEP को और अधिक उत्साह प्रदान करने के लिए 15-17 दिसंबर 2019 को गुवाहाटी में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और उनके तत्कालीन जापानी समकक्ष शिंजो आबे के बीच एक शीर्ष स्तर की बैठक, नागरिकता संसोधन बिल पर असम के व्यापक हिंसा की वजह से नहीं हो पाई थी.

For All Latest Updates

TAGGED:

ABOUT THE AUTHOR

...view details