हैदराबाद : विपक्षी दलों के सदस्यों और कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को सरकार पर अशोक की लाट के 'मोहक और राजसी शान वाले' शेरों की जगह उग्र शेरों का चित्रण कर राष्ट्रीय प्रतीक के रूप को बदलने का आरोप लगाया. उन्होंने इसे तत्काल बदलने की मांग की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को नये संसद भवन की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया था. इस दौरान आयोजित समारोह में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश उपस्थित थे.
क्या कहा विपक्षी पार्टियों ने - तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा ने आरोप लगाया है कि वर्तमान में बनाए गए शेरों की मुद्रा अशोक काल के समय में बनाए गए शेरों की मुद्रा से अलग है. उनके अनुसार इसे आक्रामक मुद्रा में बनाया गया है. महुआ ने अपने ट्वीट में लिखा है कि सच कहा जाए तो हम सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते तक पहुंच गए हैं. लंबे समय से आत्मा में पड़ा संक्रमण बाहर आ गया है.
कांग्रेस ने कहा कि नए संसद भवन में लगे राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण के मौके पर विपक्ष को नहीं बुलाया जाना अलोकतांत्रिक है. इस पर सत्यमेव जयते न लिखा होना भी बड़ी गलती है. इसे अभी भी ठीक किया जा सकता है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरीने ट्वीट किया, 'नरेंद्र मोदी जी, कृपया शेर का चेहरा देखिए. यह महान सारनाथ की प्रतिमा को परिलक्षित कर रहा है या गिर के शेर का बिगड़ा हुआ स्वरूप है. कृपया इसे देखिए और जरूरत हो तो इसे दुरुस्त कीजिए.'
तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जवाहर सरकार ने राष्ट्रीय प्रतीक के दो अलग-अलग चित्रों को साझा करते हुए ट्वीट किया, 'यह हमारे राष्ट्रीय प्रतीक का, अशोक की लाट में चित्रित शानदार शेरों का अपमान है. बांयी ओर मूल चित्र है. मोहक और राजसी शान वाले शेरों का. दांयी तरफ मोदी वाले राष्ट्रीय प्रतीक का चित्र है जिसे नये संसद भवन की छत पर लगाया गया है. इसमें गुर्राते हुए, अनावश्यक रूप से उग्र और बेडौल शेरों का चित्रण है. शर्मनाक है. इसे तत्काल बदलिए.'
इतिहासकार एस इरफान हबीब ने भी नये संसद भवन की छत पर स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, 'हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के साथ छेड़छाड़ पूरी तरह अनावश्यक है और इससे बचा जाना चाहिए. हमारे शेर अति क्रूर और बेचैनी से भरे क्यों दिख रहे हैं ? ये अशोक की लाट के शेर हैं जिसे 1950 में स्वतंत्र भारत में अपनाया गया था.'
वरिष्ठ वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा, 'गांधी से गोडसे तक, शान से और शांति से बैठे हमारे शेरों वाले राष्ट्रीय प्रतीक से लेकर सेंट्रल विस्टा में निर्माणाधीन नये संसद भवन की छत पर लगे उग्र तथ दांत दिखाते शेरों वाले नये राष्ट्रीय प्रतीक तक. यह मोदी का नया भारत है.'
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पीएम मोदी को संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था. यह तो लोकसभा अध्यक्ष के अधीन आता है. पीएम ने संवैधानिक मानदंडों का अल्लंघन किया है. आप सासंद संजय सिंहने भी आपत्ति जताई. आप के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि संवैधानिक धरोहर के साथ किसी को भी छेड़छाड़ की इजाजत नहीं देनी चाहिए.
भाजपा ने किया बचाव- भाजपा आईटी सेल के अध्यक्ष अमित मालवीय ने कहा कि ओरिजिनल और इस मूर्ति में कोई भेद नहीं है. उन्होंने कहा कि विपक्ष ने एक प्रिंट 2डी मॉडल देखा था, और अब वे इसकी तुलना त्रि-डी आकृति से कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि विपक्ष पूरी तरह से भटक गया है.
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि संविधान तोड़ने वाले अशोक स्तंभ पर क्या कहेंगे. जो लोग देवी काली का सम्मान नहीं कर सकते हैं, वे अशोक स्तंभ का क्या सम्मान करेंगे. भाजपा के मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी ने कहा कि विपक्षी दलों के आरोप राजनीति से प्रेरित हैं.
क्या कहते हैं मूर्तिकार - मीडिया रिपोर्ट में इस मूर्ति को बनाने वाले कलाकार का एक बयान सामने आया है. उन्होंने एक चैनल से बातचीत करते हुए कहा कि उन्हें इस मूर्ति के बारे में किसी ने ब्रीफ नहीं किया था और न ही भाजपा की ओर से कॉन्ट्रैक्ट मिला था. सुनील देवरे नाम के इस मूर्तिकार ने कहा कि उनका अनुबंध टाटा कंपनी से था और उन्हें जो कॉपी सौंपी गई थी, उसने हुबहू वही मूर्ति बनाई है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि जब भी एक मूर्ति की प्रतिकृति बनाई जाती है, तो थोड़ी बहुत भिन्नता हो जाती है, इसलिए इस विवाद में कोई दम नहीं है.
नई मूर्ति की खासियत- ऊंचाई- साढ़ें छह मीटर. कांसे से बनी है मूर्ति. इसका वजन 9500 किलो है. इसे सहारा देने के लिए 6500 किलो स्टील का उपयोग किया गया है. 100 से ज्यादा शिल्पकारों ने किया काम.
अशोक स्तंभ पर एक नजर- अशोक स्तंभ का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था. इसे देश के कई जगहों पर बनवाया गया था. भारत ने इसे अपने प्रतीक चिन्ह के रूप में मान्यता दी है. मूल रूप में इसकी प्रतिकृति वाराणसी स्थित सारनाथ संग्रहालय से ली गई है. हमने अपने प्रतीक चिन्ह को 26 जनवरी 1950 को अपनाया था. सभी सरकारी लेटरहेड पर यह अंकित होता है. आप इसे करेंसी, पासपोर्ट और अन्य जगहों पर देख सकते हैं. अशोक स्तंभ के नीचे अशोक चक्र है. इसे आप राष्ट्रीय झंडे में भी देखते होंगे. यह मुख्य रूप से भारत की युद्ध और शांति की नीति को प्रदर्शित करता है.
सम्राट अशोक मौर्यकाल से सबसे शक्तिशाली सम्राट थे. उन्हें चक्रवर्ती कहा जाता था. इसका मतलब होता है- सम्राटों के सम्राट. उनका शासन आज के अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था. दक्षिण में मैसूर तक उनका दायरा था. पूर्व में बांग्लादेश तक उनका राज्य विस्तृत था. अशोक स्तंभ को सम्राट अशोक की शक्ति का प्रतीक माना जाता था. इसका सीधा संदेश यह था कि राजा की नजर आप पर बनी हुई है, इसलिए विद्रोह के बारे में सोचिएगा मत. माना जाता है कि वैशाली और लौरिया में बनवाया गया स्तंभ सारनाथ और सांची के स्तंभ से थोड़ा भिन्न है. इसकी वजह थी, अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का स्वीकार किया जाना. अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद सारनाथ और सांची में शेर को शांतिप्रिय मुद्रा में बनवाया था.