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अरुणाचल का बांस संसाधन विकास के लिए क्रेड्यूस और एचसीपीएल के साथ समझौता - बांस का वृक्षारोपण को हरा सोना की खेती कहते हैं

अरुणाचल ने बांस संसाधन विकास के लिए क्रेड्यूस और एचसीपीएल के साथ समझौता किया. ऐसा माना जा रहा है कि इससे आने वाले 10 वर्षों में 100 मिलियन कार्बन क्रेडिट की खेती होगी.

अरुणाचल का बांस संसाधन विकास
अरुणाचल का बांस संसाधन विकास

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Published : May 11, 2022, 1:51 PM IST

ईटानगर : अरुणाचल प्रदेश सरकार ने बुधवार को राज्य में बांस संसाधनों की खेती और विकास के लिए क्रेड्यूस एवं हाइडल कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड (एचसीपीएल) के साथ एक समझौता किया है. एक अधिकारी ने दावा किया कि यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी द्वारा दुनिया का सबसे बड़ा बांस की खेती का अभियान है. इस समझौते में एक लाख हेक्टेयर वन और गांव की जमीन पर बांस का वृक्षारोपण करना शामिल है, जिसे 'हरा सोना' भी कहा जाता है. अरुणाचल प्रदेश बांस संसाधन और विकास एजेंसी (एपीबीआरडीए) ने यहां आयोजित एक समारोह में राज्य सरकार की ओर से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. अधिकारी ने कहा कि समझौता ज्ञापन राज्य को हरित विकास चरण में ले जाने के लिए तैयार है, जिससे देश और दुनिया कार्बन तटस्थता की ओर अग्रसर होगी.

इस समझौते के माध्यम से, हम 10 वर्षों में 100 मिलियन कार्बन क्रेडिट की खेती करने में सक्षम होंगे, जिसका मूल्य लगभग $1.5 बिलियन होगा. ये कार्बन क्रेडिट सार्वजनिक संसाधनों के लिए कब्जा और साझा किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे. क्रेड्यूस के प्रबंध निदेशक शैलेंद्र सिंह राव ने कहा कि राज्य और देश की मदद करने का अवसर मिलने से हम गर्वान्वित महसूस कर रहे हैं. हम इस प्रयास का अधिकतम लाभ उठाएंगे. संयुक्त उद्यम का लाभ 30 से अधिक वर्षों तक मिलेगा, जिसे प्रत्येक 10-10 वर्षों के तीन फेज में विभाजित किया जाएगा. आने वाले कई अन्य राज्यों में यह पहला प्रयास है क्योंकि पूर्वोत्तर के सभी राज्य बांस की खेती के लिए उपयुक्त हैं.

एचसीपीएल के प्रबंध निदेशक कार्तिक उपाध्याय ने कहा कि हम अरुणाचल प्रदेश जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों द्वारा प्रस्तुत हरित अवसर मिलने से बेहद उत्साहित हैं. उनके पास स्थानीय लोगों के बीच बदलाव लाने और भारत की हरित क्रांति के ध्वजवाहक के रूप में उभरने के लिए आवश्यक भूमि और एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति है. हमें गर्व है ऐसी पेशेवर सरकारी एजेंसियों के साथ भागीदार बनने पर हमें गर्व है. बांस की खेती और खेती एक प्रभावी कार्बन सिंक और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए एक अनोखा प्रकृति-आधारित एप्रोच है. कई अध्ययनों से पता चला है कि बांस और उसके उत्पादों का एक हेक्टेयर रोपण प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 10,000 किलोग्राम कार्बन को कम कर सकता है. जिससे वे प्रभावी हरे सोने के उद्यम बन सकते हैं.

इस अवसर पर बोलते हुए, APBRDA के अध्यक्ष तुंगरी एफा ने कहा, हमें इस रोमांचक नई परियोजना के अग्रदूत होने पर गर्व है. यह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के अनुरूप है, जिन्होंने 2030 तक भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने का संकल्प लिया है. 'ग्रीन गोल्ड' के विकास और वृक्षारोपण से राज्य को लाभ होगा क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा. साथ ही लोगों को उनकी जड़ों (अपनी जमीन) से भी जोड़ेगा. 2012 में स्थापित, क्रेड्यूस जलवायु परिवर्तन और कार्बन परिसंपत्ति प्रबंधन के क्षेत्र में भारत का अग्रणी सेवा प्रदाता है.

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पीटीआई

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