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अनुच्छेद 370 पर गुलाम नबी आजाद की दलील में है दम, चुनाव को देख विरोधी दल बोलेंगे झूठ

गुलाम नबी आजाद को जम्मू कश्मीर के राजनीतिक भविष्य का अंदाजा होने लगा है और वह झूठ व केवल भाजपा का विरोध करके अपनी राजनीति को नहीं चमकाना चाहते हैं, बल्कि बदले हालात में बदली सोच के साथ काम करना चाहते हैं.

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अनुच्छेद 370

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Published : Sep 12, 2022, 7:39 PM IST

नई दिल्ली : जम्मू और कश्मीर से 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 हटाई गई थी. तब से ही कई राजनीतिक दल एकबार फिर से इसकी बहाली का राग अलाप रहे हैं. जैसे जैसे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की आहट सुनाई दे रही है, वैसे वैसे इस मामले में एकबार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म होगा. एक ओर जहां अनुच्छेद 370 को लेकर राजनीतिक माहौल गरमाने की विरोधी दलों के द्वारा पूरी तैयारी की जा रही हो, लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हैं, जिन्हें यह लगने लगा है कि अनुच्छेद 370 को बहाल करा पाना किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान काम नहीं होगा. इसीलिए पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने अपने नए राजनीतिक एजेंडे में अनुच्छेद 370 को बहाल करने का वादा नहीं करते हुए विरोधी दल के लोगों को भी राजनीतिक हकीकत से अवगत कराने की कोशिश की. एक तरह से यह बताने की कोशिश की है जम्मू कश्मीर में फिर से अनुच्छेद 370 बहाल कराना झूठा ख्वाब दिखाने जैसा है.

दलील में है दम, आंकड़ों की सच्चाई भी
उत्तरी कश्मीर के बारामूला शहर में रविवार को जनसभा को संबोधित करते हुए आजाद ने कहा, "अनुच्छेद 370 को बहाल करने के लिए लोकसभा में लगभग 350 वोट और राज्यसभा में 175 वोटों की आवश्यकता होगी. यह एक संख्या है जो किसी भी राजनीतिक दल के पास नहीं है या कभी भी मिलने की संभावना नहीं है. कांग्रेस 50 से कम सीटों पर सिमट गई है और अगर वे अनुच्छेद 370 को बहाल करने की बात करते हैं, तो वे झूठे वादे कर रहे हैं." गुलाम नबी आजाद का यह बयान विरोधी दलों की हकीकत को आइना दिखाने के साथ साथ जम्मू कश्मीर की जनता हकीकत से रुबरू कराने वाला है. इसीलिए वह अपनी क्षेत्रीय पार्टी को क्षेत्रीय मुद्दों तक सीमित रखकर अपनी नयी राजनीतिक पारी शुरू करना चाहते हैं. वह जानते हैं कि राजनीतिक लाभ लेने के लोग इस झूठ का सहारा लेंगे लेकिन ऐसा करना किसी के लिए आसान नहीं होगा.

कहा जा रहा है कि धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में केंद्र के 890 कानून लागू हो गए हैं. पहले बाल विवाह कानून, जमीन सुधार से जुड़े कानून और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू हो गए हैं. इससे लोगों को केन्द्र सरकार पर भरोसा बढ़ेगा और वहां के हालात में और भी बदलाव होंगे.

गुलाम नबी आजाद

चुनाव से मिलेगा एक संदेश
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद इसे जम्मू-कश्मीर और लददाख नाम के दो केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया गया था. इनमें से जम्मू-कश्मीर में दिल्ली और पुडुच्चेरी की तरह विधानसभा बनाए जाने का भी प्रस्ताव रखा गया था. तभी से यहां के लोगों को चुनाव होने का इंतजार है. जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में केंद्र शासित प्रदेश के राजनीतिक दलों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है, जहां भाजपा जीत हासिल करने की तैयारियों में जुटी हुई है, वहीं अब्दुल्ला, मुफ्ती और दूसरे नेता फिर से सत्ता पर कब्जा जमाने का ख्वाब देख रहे हैं. भाजपा जहां अनुच्छेद 370 हटने के फायदे गिना कर लोगों से वोट मांगेगी तो वहीं विरोधी दल इसके विरोध में बोलेंगे. साथ ही साथ अपनी सरकार बनने पर इसको फिर से लागू कराने का ऐलान करेंगे. कुछ दल तो इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल कर सकते हैं. भाजपा ने 2014 के विधानसभा चुनावों में तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में 'मिशन 44-प्लस' के साथ 87 सदस्यीय सदन में बहुमत हासिल करने के अपने इरादे को चिन्हित किया है. भाजपा अपने दम पर नहीं लेकिन सहयोगियों के साथ मिलकर यह आंकड़ा छूने की कोशिश करेगी.

अमित शाह व नरेन्द्र मोदी (फाइल फोटो)

इस तरह बदल रहा है कश्मीर

1. आतंकी घटनाओं में कमी आने का दावा
धारा 370 हटाए जाने के तीन साल पूरे होने पर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक आंकड़ा साझा करते हुए कहा था कि इस दौरान हिंसा व आतंकी गतिविधियां कम हुयी हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 5 अगस्त 2016 से 4 अगस्त 2019 के बीच 930 आतंकी घटनाएं हुई थीं, जिसमें 290 जवान शहीद हुए थे और 191 आम लोग मारे गए थे. वहीं, 5 अगस्त 2019 से 4 अगस्त 2022 के बीच 617 आतंकी घटनाओं में 174 जवान शहीद हुए और 110 नागरिकों की मौत हुई.

2. मिलने लगी नौकरियां
पिछले 3 अगस्त को गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया था कि 2019 से जून 2022 तक जम्मू-कश्मीर में 29,806 लोगों को पब्लिक सेक्टरमें भर्ती किया गया है. इसके साथ साथ सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कई योजनाएं भी शुरू की हैं. सरकार का अनुमान है कि स्व-रोजगार योजनाओं से 5.2 लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है.

3. राजनीतिक मैप में भी फेरबदल
राज्य की विधानसभा सीटों को लेकर परिसीमन आयोग ने रिपोर्ट दी थी. इसमें आयोग ने जम्मू-कश्मीर में 7 विधानसभा सीटें बढ़ाने का सुझाव दिया है. इनमें से 6 सीटें जम्मू और एक सीट कश्मीर में बढ़ाने की सिफारिश की गई है. लद्दाख के अलग होने के बाद जम्मू-कश्मीर में 83 सीटें बची हैं. अगर आयोग की सिफारिशें लागू होती हैं तो कुल 90 सीटें हो जाएंगी. जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 विधानसभा सीटें होंगी. 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर या पीओके में हैं. वहीं, जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की सीटें 5 ही रहेंगी, लेकिन एक सीट में जम्मू और कश्मीर दोनों के इलाके शामिल करने की सिफारिश है. जम्मू में जम्मू और उधमपुर जबकि कश्मीर में बारामूला और श्रीनगर लोकसभा सीट होगी. एक अनंतनाग-राजौरी सीट भी होगी, जिसमें जम्मू और कश्मीर दोनों रीजन के इलाकों को शामिल किया जा रहा है.

4. जमीन की खरीद शुरू
धारा 370 हटने के बाद अब वहां दूसरे राज्य के लोगों के लिए संपत्तियां खरीदना भी खरीदना आसान हो गया है. पहले वहां सिर्फ स्थानीय लोग ही संपत्ति खरीद सकते थे. 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में दूसरे राज्य के 34 लोगों ने संपत्तियां खरीदी है. ये संपत्तियां जम्मू, रियासी, उधमपुर और गांदरबल जिलों में खरीदी गई हैं. इससे इस बात का संकेत मिलने लगा है कि वहां पर बाहर के लोग जाकर बस सकते हैं.

फारूख अब्दुल्ला के साथ गुलाम नबी आजाद

बनने लगा है चुनावी माहौल
गृह मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो अगले साल जम्मू कश्मीर में चुनाव कराए जा सकते हैं. वहीं जानकारी के मुताबिक, गृहमंत्री अमित शाह भी सितंबर के अंत में जम्मू-कश्मीर का दौरा कर सकते हैं. वहीं चुनाव आयोग भी मतदाता सूची को लेकर अपने काम में जुटा हुआ है, तो वहीं केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी चुनाव करवाने को लेकर एक कदम आगे बढ़ाते हुए सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करनी शुरू कर दी है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो जाड़े का मौसम बीतते ही अगले साल मार्च या अप्रैल के महीने में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं। सूत्रों की मानें तो इस बैठक में अमित शाह ने भाजपा नेताओं से चुनाव के लिए तैयार रहने और संगठन को जम्मू के अलावा कश्मीर में भी बढ़ाने की बात कही थी. इसीलिए ऐसा माना जा रहा है कि घाटी में चुनाव की घोषणा जल्द की जा सकती है.

गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग को जम्मू कश्मीर में नवंबर अंत तक फाइनल मतदाता सूची प्रकाशित करने की तारीख दी है. इसके बाद चुनाव करवाने के लिए कदम आगे बढ़ाया जाएगा.

भाजपा को करिश्मे की उम्मीद
भाजपा 2020 में पहली बार डीडीसी चुनावों में 3 सीटें जीतकर घाटी में दस्तक देने की कोशिश की है. लेकिन 140 में से 3 सीटें जीतने वाली भाजपा को घाटी में अच्छा प्रदर्शन करना उतना आसान नहीं होगा. 2011 की जनगणना के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश में मुसलमान 69 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन एक क्षेत्रीय विभाजन भी है. सिर्फ कश्मीर की बात करें तो यहां 96 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है और केवल 2.5 प्रतिशत हिंदू हैं, जबकि जम्मू में 62 प्रतिशत से अधिक हिंदू हैं और 33.5 प्रतिशत मुसलमान हैं. यह धार्मिक विभाजन ही है जो उस समय के परिणामों में दिखा. 2014 में देश में आई मोदी लहर ने जम्मू-कश्मीर के हिंदू बहुल इलाकों को भी पछाड़ दिया, जिससे बीजेपी को 37 में से 25 सीटें मिलीं थीं.

केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद जम्मू के लिए चीजें बदल गई हैं. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर की स्थिति बदलने से पहले, जम्मू और लद्दाख केंद्र के फोकस में नहीं थे. राज्य के विघटन के बाद अब लद्दाख की अपनी स्वतंत्र पहचान है, जबकि जम्मू ने भाजपा को व्यापक समर्थन दिया है. परिसीमन के बाद जम्मू में विधानसभा सीटों की संख्या में छह और कश्मीर में एक की वृद्धि हुई है. जम्मू को विकास का अपना हिस्सा मिला है, जो पिछली सरकारों में कश्मीर को मिलता था.

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लगातार बढ़ रहा भाजपा का वोट प्रतिशत
जम्मू को भी एम्स, आईआईटी, औद्योगिक क्षेत्र समेत कई लाभ मिले हैं. 2014 में जो हुआ, वह 2019 के लोकसभा चुनाव में दोहराया गया. भाजपा ने जम्मू में दो लोकसभा सीटें जीतीं और संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में अपने वोट शेयर में भी सुधार किए, जो 2014 में 34.40 प्रतिशत से 2019 में 46.4 प्रतिशत हो गया.

कहा जा रहा है कि परिसीमन और मतदाता सूची के अपडेशन के बाद जम्मू में भाजपा की संभावनाएं और बेहतर होंगी. नए मतदाताओं के अलावा, पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) से आए 54,945 शरणार्थी परिवारों को भी 75 साल में पहली बार विधानसभा चुनाव में वोट देने का अधिकार मिलेगा.

जहां जम्मू भाजपा का पसंदीदा बना हुआ है, वहीं कश्मीर चुनौती है। कश्मीर घाटी की 47 सीटों पर बीजेपी के लिए खाता खोलना आसान नहीं होगा। भाजपा पार्टी को बड़े पैमाने पर हिंदू समर्थक के रूप में देखा जाता है। कश्मीर के मुस्लिम बहुमत का वोट पारंपरिक दल नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी या अन्य के पक्ष में जाने की संभावना है.

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गठबंधन भी कर सकती है भाजपा
कश्मीर भाजपा के पक्ष में नजर नहीं आ रहा है, जिसके चलते पार्टी को सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा हासिल करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. इसलिए, भाजपा के पास कश्मीर में सत्ता हासिल करने के लिए गठबंधन का साथ लेना होगा. शायद भाजपा को गुलाम नबी आजाद के राजनीतिक क्षेत्र में आने से फायदा हो सकता है. अपनी पार्टी और सज्जाद लोन की पार्टी भी है, जिसे आम तौर पर केंद्र के समर्थन के रूप में देखा जाता है. भाजपा के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव देश और दुनिया को दिखाने के लिए एक मिशन हो सकता है.

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