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मार्गदर्शी के वकीलों की HC में दलील- 'रजिस्ट्रार के पास नोटिस जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं'

मार्गदर्शी चिटफंड कंपनी के मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मार्गदर्शी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नागामुथु और दम्मलापति श्रीनिवास ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि चिटफंड अधिनियम फोरमैन को चिट प्रबंधन में किसी भी त्रुटि को सुधारने का अधिकार देता है.

Margadarsi chit groups
मार्गदर्शी चिटफंड कंपनी

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Published : Aug 8, 2023, 6:26 PM IST

अमरावती:मार्गदर्शी चिटफंड कंपनी (Margadarshi Chitfund Company) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नागामुथु और दम्मलपति श्रीनिवास ने हाईकोर्ट में दलील दी कि चिटफंड अधिनियम फोरमैन को चिट प्रबंधन में किसी भी त्रुटि को सुधारने का अधिकार देता है. उन्होंने कहा कि यदि चिटफंड शाखाओं में निरीक्षण करने वाले सहायक रजिस्ट्रार को कोई त्रुटि मिलती है, तो चिट अधिनियम की धारा 46 (3) के प्रावधानों के अनुसार उन्हें सही करने के लिए फोरमैन को 'नोटिस' देना चाहिए.

उन्होंने कहा कि खामियां दूर नहीं होने पर ही धारा 48 (एच) के तहत चिट ग्रुप को रोकने के लिए कदम उठाया जा सकता है. लेकिन, सहायक निबंधक ने फोरमैन को नोटिस नहीं दिया. इस संदर्भ में, चिट समूहों के निलंबन पर चिट रजिस्ट्रार/उप रजिस्ट्रार से आपत्ति प्राप्त होने का कोई सवाल ही नहीं है. रजिस्ट्रार ऑफ चिट्स द्वारा आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए जारी किया गया सार्वजनिक नोटिस अमान्य है. चिट फंड अधिनियम के अनुसार, सहायक रजिस्ट्रार और डिप्टी रजिस्ट्रार भी 'रजिस्ट्रार' की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं.

केवल जांच अधिकारी (सहायक रजिस्ट्रार) को ही दोषों को सुधारने के लिए फोरमैन को नोटिस देना चाहिए. इसके विपरीत, चिट्स रजिस्ट्रार ने एक सार्वजनिक सूचना में कहा है कि सहायक रजिस्ट्रार की सिफारिश के अनुसार चिट्स समूहों के निलंबन के संबंध में आपत्तियां आमंत्रित की जा रही हैं.

उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार के पास नोटिस जारी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और यह अमान्य है. उन्होंने कहा कि कानून 'सिफारिशें' करने का अधिकार नहीं देता. यह अदालत के ध्यान में लाया गया कि सार्वजनिक नोटिस चिट समूहों को रोकने और मार्गदर्शक को नुकसान पहुंचाने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से जारी किए गए थे.

सोमवार को हुई सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें समाप्त होने के बाद राज्य सरकार की ओर से एजी श्रीराम की बहस के लिए सुनवाई स्थगित कर दी गई. हाई कोर्ट के जज जस्टिस एन जयसूर्या ने सोमवार को इस संबंध में आदेश दिया.

मार्गदर्शी चिट फंड कंपनी के अधिकृत प्रतिनिधि पी राजाजी ने इस साल 30 जुलाई को चिट्स रजिस्ट्रार द्वारा जारी सार्वजनिक नोटिस के आधार पर चिट समूहों के निलंबन को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. जिसमें ग्राहकों से सरकारी वेबसाइट पर चिट समूहों के संबंध में आपत्तियां उठाने के लिए कहा गया था. गुंटूर, कृष्णा और प्रकाशम जिलों के चिट समूहों के मामले में जारी सार्वजनिक नोटिस को चुनौती देते हुए तीन अलग-अलग मुकदमे दायर किए गए थे. सोमवार को हुई सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कृष्णा और प्रकाशम जिलों के चिट समूहों में दायर मामलों में दलीलें सुनीं.

ग्राहकों के पैसे 100% सुरक्षित : वरिष्ठ अधिवक्ता नागामुथु ने तर्क दिया कि ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए चिट फंड अधिनियम के प्रावधान हैं. उन्होंने कहा कि 'चिट फंड अधिनियम की धारा 46 (3) चिट समूहों को इस आधार पर निलंबित नहीं करने के इरादे से सुधार का प्रावधान करती है कि छोटी-मोटी त्रुटियां हुई हैं. यदि त्रुटियां पाई जाती हैं तो उन्हें सुधारने के लिए नोटिस जारी करने की जिम्मेदारी चिट्स रजिस्ट्रार की है. यहां निरीक्षण करने वाले सहायक रजिस्ट्रार ने त्रुटियों को सुधारने के लिए कोई नोटिस जारी नहीं किया. कानून के मुताबिक ग्राहकों के पैसे को 100 फीसदी सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है. इसलिए उनके हितों को लेकर कोई दिक्कत नहीं होगी.'

नोटिस देने से पहले निलंबन आदेश : एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता धम्मलपति श्रीनिवास ने कहा कि अधिकारियों ने प्रकाशम जिले में चिट समूहों के संबंध में सार्वजनिक नोटिस देने से पहले कुछ समूहों को रोकने के आदेश दिए थे. इसके बाद आपत्तियां आमंत्रित की गई हैं. अदालत के ध्यान में यह लाया गया कि यह कानून के प्रावधानों के खिलाफ है.

उन्होंने तर्क दिया कि 'एक ही तरह के आरोपों के साथ घिसे-पिटे तरीके से आदेश जारी किए गए. निरीक्षण करने वाले चिट अधिकारी को यदि कोई त्रुटि मिलती है, तो विवरण बताते हुए त्रुटियों को सुधारने के लिए एक और नोटिस जारी करना चाहिए. उस नीति का पालन न करके उन्होंने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत कार्य किया है. चिट समूहों को रोके रखने का मामला काफी गंभीर हो गया है. नियम यह स्पष्ट करते हैं कि ऐसी कार्रवाई करने से पहले नोटिस दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया कि वित्तीय मामलों में बिना नोटिस दिए सीधी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. इन बातों को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक सूचना के आधार पर अधिकारियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों को रोकें.'

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