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क्या बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं अल्पसंख्यक हिंदू ?

भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू पिछले 70 साल से भारत की ओर पलायन कर रहे हैं, मगर अब उन पर जुल्म की घटनाएं बढ़ गई हैं. हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी संगठनों के हमले और हिंदू धार्मिक स्थलों में तोड़फोड़ से आशंका जताई जा रही है कि यह अल्पसंख्यक खासकर हिंदू आबादी को डराकर पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा है. क्यों निशाने पर हैं बांग्लादेश में अल्पसंख्यक, पढ़ें रिपोर्ट ...

minority Hindus the target of fundamentalists in Bangladesh
minority Hindus the target of fundamentalists in Bangladesh

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Published : Oct 16, 2021, 7:32 PM IST

हैदराबाद : बांग्लादेश में हिंदू और हिंदू मंदिर कट्टरपंथी दंगाइयों के निशाने पर हैं. वहां पहले कोमिल्ला के दुर्गा पूजा स्थल पर हमला हुआ, फिर नोआखाली इलाके के इस्कॉन मंदिर में तोड़फोड़ की गई. वहां 200 से अधिक कट्टरपंथी हमलावरों ने एक शख्स को बेरहमी से मार डाला. कुरान के कथित अपमान का आरोप लगाकर दंगाइयों ने देश के अन्य इलाकों में भी पूजा पंडालों पर भी हमले किए, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई. अभी भी वहां हिंदुओं के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आवश्यक कार्रवाई का भरोसा देते हुए कहा है कि कोमिल्ला में दुर्गा पूजा स्थल और हिन्दू मंदिरों पर हमला करने वाले बचेंगे नहीं. इस्कॉन (ISKCON) के नेशनल कम्युनिकेशन डायरेक्टर व्रजेंद्र नंदन दास का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदू के त्योहारों पर बहुसंख्यक मुसलमान जानबूझकर हंगामा करते हैं. माना जा रहा है ऐसी हरकतों से भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में यह हालात हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर किया जा रहा है.

1947 से ही हिंदू बांग्लादेश छोड़ने को मजबूर :पाकिस्तान का हिस्सा बनने के बाद हिंदुओं पर जुल्म बढ़े. धार्मिक हिंसा और भय के कारण हिन्दुओं की बड़ी संख्या में बांग्लादेश से पलायन हुआ. एक रिपोर्ट के मुताबिक 1947 से 1958 के बीच 4.12 मिलियन हिंदुओं ने जान बचाकर भारत में शरण ली. बड़ी संख्या में पलायन का सिलसिला कभी थमा ही नहीं. 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान एक करोड़ बांग्लादेशी भारत आए, जिनमें 80 फीसद हिंदू थे. 1971 में नए मुल्क बनने के बाद भी हिंदुओं को राहत नहीं मिली. बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों ने हत्या और रेप जैसी घटनाओं को अंजाम दिया. 2013 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने ऐसे अपराध के लिए जमातों को दोषी ठहराया था. स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्क की प्रोसेफर सांची दस्तीदार के मुताबिक, करीब 1947 से 2001 के बीच 4.9 करोड़ हिंदू बांग्लादेश से चले गए. एक बांग्लादेशी अखबार के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच 10 लाख हिंदुओं ने पलायन किया.

photo courtesy - Bangladesh Hindu Unity Council

लगातार घटते गए हिंदू, 25 साल में एक भी नहीं बचेगा:अप्रैल 2021 में जारी सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरलिज्म एंड ह्यूमन राइट्स (CDPHR ) की रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि अगले 25 साल में एक भी हिंदू बांग्लादेश में नहीं बचेगा. सीडीपीएचआर ने भारत के सात पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका और तिब्बत में मानवाधिकार को लेकर यह रिपोर्ट तैयार की थी. रिपोर्ट में बताया गया था कि बांग्लादेश से 2.3 लाख से ज्यादा लोग हर साल पलायन करने के मजबूर हो रहे हैं. बांग्लादेश में हिन्दू आबादी करीब 8.5 फीसदी हैं. 1974 में वहां की कुल आबादी के 13.5 प्रतिशत हिंदू थे. यह तादाद 1991 में घटकर10.51 प्रतिशत हो गई. अगले दस साल यानी 2001 में हिंदू घटकर कुल आबादी के 9.60 प्रतिशत ही रह गए.

photo courtesy - Bangladesh Hindu Unity Council

हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का राजनीतिक पहलू भी समझ लें :बांग्लादेश में 3 मुख्य राजनीतिक दल हैं, शेख हसीना की बांग्लादेश आवामी लीग, बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी और जातीय पार्टी (इसकी स्थापना जनरल इरशाद ने की थी). साथ ही वहां छोटे दलों की संख्या करीब 20 है. जनरल इरशाद बांग्लादेश के सैन्य तानाशाह शासक भी रहे हैं, जिनके कार्यकाल में देश को मुस्लिम देश घोषित किया. उनके कार्यकाल (1982-1990) में कट्टरपंथ को बढ़ावा मिला और अल्पसंख्यकों ने पलायन किया. 2001 से 2008 तक जातीय पार्टी के सपोर्ट से बेगम खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं. इस दौर में धार्मिक हिंसा और भय के कारण हिन्दुओं का पलायन हुआ. 2004 की अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट के अनुसार, 2001 के चुनाव के बाद चिटगांव में एक हिन्दू परिवार के 11 सदस्यों को ज़िंदा जला दिया गया था. बीएनपी के कार्यकर्ताओं पर हिन्दू महिलाओं के साथ रेप के भी आरोप लगे थे.

जनरल इरशाद, शेख हसीना और बेगम खालिदा जिया के शासन के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमले होते रहे.

शेख हसीना भी नहीं रोक सकीं अल्पसंख्यकों पर हमले :2009 में शेख हसीना दोबारा सत्ता में लौटीं मगर हिंदुओं पर हमले को नहीं रोक सकीं. बांग्लादेश जातीय हिंदू महाजोत (BJHM) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि 2017 में हिंदू समुदाय के कम से कम 107 लोग मारे गए और 31 लोग लापता हो गए. 782 हिंदुओं को या तो देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. 23 को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया. एक साल में 25 महिलाओं और बच्चों के साथ बलात्कार किया गया, जबकि 235 मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा गया.

  • 2017 में हिंदू समुदाय के साथ हुए अत्याचारों की कुल संख्या 6474 थी.
  • 2019 के बांग्लादेश चुनावों के दौरान ठाकुरगांव में हिंदू परिवारों के आठ घरों में आग लगा दी गई थी.
  • अप्रैल 2019 में, ब्राह्मणबरिया के काजीपारा में एक नवनिर्मित मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं, लक्ष्मी और सरस्वती की दो मूर्तियों को तोड़ दिया गया था.
  • 2021 में भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा के विरोध में हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम और अन्य कट्टरपंथी समूहों ने हिंदुओं के कई मंदिरों और 80 घरों को तोड़ दिया . 2020 में हिंदुओं पर हमले हुए.
    मार्च 2021 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के दौरान बांग्लादेशी कट्टरपंथी संगठन हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम ने तोड़फोड़ की थी.

हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम की बढ़ी सक्रियता, अल्पसंख्यक खतरे में :बांग्लादेश में भारतीय प्रधानमंत्री के दौरान हिंसा के बाद एक कट्टर संगठन हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम सुर्खियों में आया. यह संगठन अब बांग्लादेश का कट्टर राजनीतिक प्रेशर ग्रुप बन गया है, जिसका बीएनपी और जातीय पार्टी सपोर्ट करती है. यह पाकिस्तान के संगठन तहरीक-ए-लब्बैक की तरह है, जिसे हर राजनीतिक दल संतुष्ट करना चाहता है. हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम में हरकत उल जिहाद (HUJI) के सदस्य भी हैं. इस संगठन को पाकिस्तान, ओमान, कतर और सऊदी अरब के इस्लामिक ग्रुप फंडिंग करते हैं. देश में तोड़फोड़, अल्पसंख्यकों पर हमले और कई आतंकी हमलों में भी इस संगठन का नाम आया है. बताया जा रहा है कि बांग्लादेश में हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम का दायरा बढ़ रहा है, जिसके निशाने पर अल्पसंख्यक हैं.

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