वाराणसी: ज्ञानवापी परिसर के सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी जिला जज अजय कृष्णा विश्वेश की अदालत में पेश करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने एक बार फिर तीन सप्ताह का समय मांगा है. प्रार्थना पत्र पर मंगलवार को कंडोलेंस होने के करण सुनवाई नहीं हो पाई. अब जिला जज 29 को इस मामले की सुनवाई करेंगी. इस दौरान ज्ञानवापी से संबंधित फाइल भी पेश होगी. वहीं, ज्ञानवापी प्रकरण से संबंधित पांच वादनी महिलाओं के मुकदमे की सुनवाई 29 को नवंबर होगी.
दोनों पक्ष के अधिवक्ता पहुंचे कोर्ट
वाराणसी जिला जज अजय कृष्णा विश्वेश की अदालत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी पहुंच गए हैं. बता दें कि 17 नवंबर को ज्ञानवापी सर्वे की रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में सौंपने का आदेश इसके पहले कोर्ट ने दिया था, लेकिन एएसआई की टीम ने कोर्ट में एक एप्लीकेशन देकर 15 दिन का अतिरिक्त वक्त मांगा था.
कोर्ट ने दिया था 10 दिन का समय
सर्वे के दौरान मिली हनुमान, गणेश समेत शंकर और पार्वती इत्यादि की खंडित मूर्तियों के अलावा शिखर और फूल इत्यादि की कलाकृतियों के टूटे हुए हिस्से के अलावा अन्य चीजों को भी संरक्षित करने का आदेश कोर्ट ने देकर जिलाधिकारी को उसकी जिम्मेदारी सौंपी थी. कोर्ट ने इस रिपोर्ट के अलावा 17 नवंबर को एएसआई द्वारा तिथि बढ़ाए जाने की एप्लीकेशन पर सुनवाई करते हुए 15 की जगह 10 दिन का समय दिया था. साथ ही 28 नवंबर तक रिपोर्ट सबमिट करने का आदेश दिया था. उस वक्त एएसआई के वकील की यह दलील थी कि रिपोर्ट तैयार है, बस तकनीक की पहलुओं और रडार सिस्टम के इस्तेमाल के बाद उसकी रिपोर्ट को तैयार करने में वक्त लग रहा है.
हैदराबाद की टीम ने किया जीपीआर का प्रयोग
फिलहाल ज्ञानवापी परिसर में हुए सर्वे के दौरान हैदराबाद से आई एक्सपोर्ट टीम ने ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार यानी जीपीआर का उपयोग किया था. हैदराबाद की टीम ने लगभग 120 पन्ने की रिपोर्ट एएसआई को दी है. इसके बाद जिसकी संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार करने के साथ ही रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी.
रिपोर्ट डिजिटल और फिजिकल होगी पेश
फिलहाल यहां पर सर्वे के दौरान टीम ने दोनों तहखाना, मुख्य गुंबद, मुख्य हाल और अन्य जगहों पर एक्सरे के साथ जीपीआर तकनीक का प्रयोग करके जमीन के अंदर छुपी सच्चाई को भी जानने की कोशिश की है.
350 साल पुराना है विवाद
हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर ध्वस्त करके मस्जिद बनाई गई थी. वाराणसी जिला कोर्ट में पहली याचिका स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से दाखिल की गई थी. इसमें परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी. 1936 में ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व पर बहस आगे बढ़ी. उसी समय तीन मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने पूरे क्षेत्र को मस्जिद का हिस्सा घोषित करने की मांग की. सुनवाई में मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी में नमाज अदा करने का अधिकार दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि पूरे परिसर में कहीं भी नमाज पढ़ी जा सकती है.
हाईकोर्ट से याचिका हुई थी खारिज
1942 में इस फैसले के खिलाफ हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हिंदू पक्ष को झटका लग गया था. हाईकोर्ट में 1942 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और याचिका खारिज कर दिया था.