नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाया कि पक्षों के बीच बिना स्टैम्प लगे या उचित स्टैम्प के अभाव वाले समझौतों में मध्यस्थता उपखंड लागू होता है क्योंकि इस प्रकार की कमी को दूर किया जा सकता है और इस खामी से करार अवैध नहीं हो जाता. अनुबंध के पक्षकारों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता उपखंड वाले कॉरपोरेट और अन्य समझौतों के लिए महत्वपूर्ण एवं दूरगामी परिणाम वाला यह फैसला इस साल अप्रैल में दिए गए पांच-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को खारिज कर देता है.
पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने अप्रैल में 'मेसर्स एन एन ग्लोबल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड और अन्य' शीर्षक वाले मामले में 3:2 के बहुमत से सुनाए गए फैसले में कहा था कि मध्यस्थता उपखंड वाले स्टैम्प रहित या उचित स्टैम्प रहित समझौते लागू नहीं हो सकते. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इस फैसले को खारिज करते हुए कहा कि किसी समझौते पर स्टैम्प न लगने या उचित स्टैम्प नहीं लगने का दस्तावेज की वैधता से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि इस खामी को दूर किया जा सकता है.
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल रहे. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति कौल, न्यायमूर्ति गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यायमूर्ति मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि स्टैम्प नहीं होने से समझौता अमान्य या अप्रवर्तनीय नहीं हो जाता, लेकिन इसे सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता.