नई दिल्ली: रूस के इस आरोप से कि अमेरिका 7 जनवरी के संसदीय चुनावों के बाद बांग्लादेश में अराजकता पैदा करने की योजना बना रहा है, भारत पूर्वी पड़ोसी में स्थिरता को लेकर चिंतित होगा. इस सप्ताह की शुरुआत में जारी एक बयान में रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने यह आरोप लगाया था कि 'डरने के गंभीर कारण हैं कि आने वाले हफ्तों में प्रतिबंधों सहित दबाव का और भी व्यापक शस्त्रागार बांग्लादेश सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, जो पश्चिम के लिए अवांछनीय है.'
ज़खारोवा ने कहा कि 'प्रमुख उद्योगों पर हमला हो सकता है, साथ ही कई अधिकारी भी जिन पर 7 जनवरी, 2024 को आगामी संसदीय चुनावों में नागरिकों की लोकतांत्रिक इच्छा में बाधा डालने का बिना सबूत के आरोप लगाया जाएगा. यदि लोगों की इच्छा के परिणाम संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए संतोषजनक नहीं हैं, तो स्थिति को और अस्थिर करने का प्रयास किया जाता है.'
अरब स्प्रिंग लोकतंत्र समर्थक विद्रोहों, विरोध प्रदर्शनों और प्रदर्शनों की एक श्रृंखला को संदर्भित करता है, जो 2010 के अंत में शुरू होकर अरब दुनिया भर में, मुख्य रूप से मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में हुए थे. दिसंबर 2010 में ट्यूनीशिया में विरोध प्रदर्शन की लहर शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप जनवरी 2011 में ट्यूनीशिया के लंबे समय तक राष्ट्रपति ज़ीन अल आबिदीन बेन अली को पद से हटा दिया गया.
ट्यूनीशियाई विद्रोह की सफलता ने अन्य अरब देशों में इसी तरह के आंदोलनों के लिए प्रेरणा का काम किया. विरोध तेजी से मिस्र, लीबिया, यमन, सीरिया और बहरीन जैसे देशों में फैल गया. इस सप्ताह की शुरुआत में विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) द्वारा बुलाए गए नाकेबंदी का जिक्र करते हुए, ज़खारोवा ने ऐसा कहा कि 'रूस इन घटनाओं और ढाका में पश्चिमी राजनयिक मिशनों की भड़काऊ गतिविधि के बीच सीधा संबंध देखता है.'
बता दें कि उस नाकेबंदी दौरान बसें जला दी गईं और विपक्षी राजनीतिक कार्यकर्ता पुलिस से भिड़ गए थे. इस संबंध में उन्होंने बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास के बयानों और गतिविधियों का विशेष उल्लेख किया. ज़खारोवा ने कहा कि दुर्भाग्य से, इस बात की बहुत कम संभावना है कि वाशिंगटन होश में आएगा और एक संप्रभु राज्य के आंतरिक मामलों में एक और घोर हस्तक्षेप से बचेगा.
हालांकि, हमें विश्वास है कि बाहरी ताकतों की तमाम साजिशों के बावजूद, बांग्लादेश में सत्ता का मुद्दा अंततः इस देश के मित्रवत लोगों द्वारा तय किया जाएगा, और कोई नहीं. अमेरिका पर रूस का आरोप भारत के लिए चिंता का सबब होगा. मॉस्को और वाशिंगटन दोनों नई दिल्ली के करीबी सहयोगी हैं. भारत का कहना है कि बांग्लादेश में चुनाव उसका आंतरिक मामला है. हालांकि, चुनावी प्रक्रिया में वाशिंगटन के हस्तक्षेप के कारण अमेरिका बांग्लादेश में जनता के बीच अपनी लोकप्रियता खो रहा है.
बांग्लादेश में सत्ताधारी अवामी लीग सरकार को जिस बात ने परेशान किया है, वह है चुनावों से पहले पश्चिमी शक्तियों, खासकर अमेरिका का लगातार हस्तक्षेप. इस साल की शुरुआत में, अमेरिका ने लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया को कमजोर करने के लिए बांग्लादेशी अधिकारियों और राजनीतिक पदाधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध लगा दिया था.
बीएनपी ने चुनावी प्रक्रिया पर चिंताओं का हवाला देते हुए चुनाव में भाग नहीं लेने का विकल्प चुना है. विपक्ष मांग कर रहा है कि निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव वर्तमान सरकार-प्रशासित चुनाव आयोग के बजाय एक तटस्थ कार्यवाहक सरकार के तहत कराया जाए. जबकि चुनावों का संचालन आम तौर पर संप्रभु राष्ट्रों के लिए एक आंतरिक मामला माना जाता है, ढाका में ऐसा प्रतीत नहीं होता है.
बांग्लादेश की चुनावी प्रक्रिया में पश्चिमी देश शामिल रहे हैं, जिसमें अमेरिका सबसे प्रत्यक्ष भागीदार रहा है. अक्टूबर में हुई हिंसा, जो बांग्लादेश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की मांग से जुड़ी थी, के जवाब में, अमेरिका ने चिंता व्यक्त की और इस घटना की राजनीतिक हिंसा के रूप में निंदा की.