नई दिल्ली :उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से व्यापक तरीकों से लैंगिक समानता की भूमिका को बढ़ावा मिलता है. उन्होंने कहा कि विशेष रूप से न्यायिक क्षेत्र में वरिष्ठ स्तर पर महिलाओं की नियुक्तियां लैंगिक रूढ़ियों को बदल सकती हैं, जिससे पुरुषों और महिलाओं की उचित भूमिकाओं के प्रति दृष्टिकोण और धारणा में बदलाव होगा.
न्यायमूर्ति नागरत्ना 2027 में भारत की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश बन सकती हैं. उन्होंने कहा, न्यायिक अधिकारियों के रूप में महिलाओं की भागीदारी, सरकार की विधायी और कार्यकारी शाखाओं जैसे अन्य निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व का मार्ग प्रशस्त कर सकती है.
न्यायमूर्ति नागरत्ना उच्चतम न्यायालय की महिला अधिवक्ताओं द्वारा शीर्ष अदालत के नौ नवनियुक्त न्यायाधीशों के अभिनंदन के लिए आयोजित एक समारोह में बोल रही थीं, जिसमें तीन महिला न्यायाधीश भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, मैं कहना चाहूंगी, भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने रास्ता दिखाया है कि क्यों अन्य शाखाओं चाहे वह विधायिका हो या कार्यपालिका की शाखाओं में महिलाएं अदृश्य अवरोधकों नहीं तोड़ सकतीं.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, मैं विस्तार से नहीं बोल सकती, लेकिन इतना कह सकती हूं कि न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से व्यापक तरीकों से लैंगिक समानता की भूमिका को बढ़ावा मिलता है. विशेष रूप से न्यायिक क्षेत्र में वरिष्ठ स्तरों पर महिलाओं की नियुक्तियां लैंगिक रूढ़ियों को बदल सकती हैं जिससे पुरुषों और महिलाओं की उचित भूमिकाओं के प्रति दृष्टिकोण और धारणा में बदलाव होगा.
न्यायमूर्ति नागरत्ना के साथ नियुक्त शीर्ष अदालत की एक अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि हाल में गुजरात में एक समारोह में उन्होंने कहा था. कि जब न्यायाधीश मंच पर होते हैं तो उनका कोई लिंग नहीं होता.