नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने स्वयंभू प्रवचनकर्ता आसाराम के बेटे एवं बलात्कार के दोषी नारायण साई को 14 दिन की 'फरलो' दिए जाने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को बुधवार को खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने साई को 'फरलो' देने के अदालत के 24 जून के आदेश को चुनौती देने वाली गुजरात सरकार की याचिका स्वीकार कर ली. शीर्ष अदालत ने कहा कि 'फरलो' कोई पूर्ण अधिकार नहीं हैं और इसे देना कई बातों पर निर्भर करता है. उसने कहा कि साई की कोठरी से एक मोबाइल फोन मिला था, इसलिए जेल अधीक्षक ने राय दी थी कि उसे 'फर्लो' नहीं दी जानी चाहिए.
न्यायालय ने साई को दो हफ्तों की 'फरलो' देने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर 12 अगस्त को रोक लगा दी थी. उसने गुजरात सरकार की याचिका पर नारायण साई को नोटिस दिया था. इस याचिका में उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गयी थी. न्यायालय ने अगले आदेश तक उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी. उसने कहा था कि बंबई 'फरलो' एवं पैरोल नियम 1959 के नियम 3 (2) में यह प्रावधान है कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को सात वर्ष वास्तविक कैद की सजा पूरी करने के बाद 'हर वर्ष' 'फरलो' पर रिहा किया जा सकता है. उच्च न्यायालय की एकल पीठ के 24 जून 2021 के आदेश में साई को दो हफ्तों के लिए फर्लो दी गयी थी, लेकिन खंडपीठ ने 13 अगस्त तक इस पर रोक लगा दी थी और इसके बाद राज्य ने 24 जून के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.
राज्य सरकार ने दलील दी थी कि नियमों और इस अदालत के आदेश के अनुसार भी ऐसा कहा गया है कि 'फरलो' कोई पूर्ण अधिकार नहीं है और इसे देना विभिन्न बातों पर निर्भर करता है. उसने कहा था कि साई और उसके पिता को बलात्कार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है और वे धन एवं बल के साथ काफी प्रभाव भी रखते हैं. सूरत की एक अदालत ने साई को 26 अप्रैल 2019 को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376 (दुष्कर्म), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (हमला), 506-2 (आपराधिक धमकी) और 120-बी (षड्यंत्र) के तहत दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनायी थी.